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संप्रग को वोट के लिए अब मुददों की तलाश

Shahid Naqvi
Shahid Naqvi
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चुनाव के लिए जनता के बीच वापस जाने से पहले संप्रग सरकार मंहगाई और
भ्रष्‍टाचार के साथ कई अन्‍य मोर्चे पर अपनी नाकामी को छिपाने के लिए ऐसे
मुददों की तलाश मे थी जिनके सहारे देश के लोगों से फिर वोट मांगा जा सके
।इसी लिए 15 वीं लोकसभा के अंतिम सत्र मे कांग्रेस और सरकार ने बड़ी
सक्रियता दिखायी वा कई ऐसे विधेयक पारित किए जो अर्से से लम्‍बित थे ।
इसके साथ ही कई ऐसे फैसले भी लिए जो केवल मतदाताओं को चुनाव के दौरान
गिनाये भर जा सकतें हैं ।दरअसल उनके अमल मे आने की सम्‍भावना ना के बराबर
है और ना ही सरकार के पास उनकों अमल मे लाने के लिए अब समय ही बचा है ।
सड़कों की पटरियों पर ज़िंदगी के बड़े-बड़े सपने बुनने वालों के लिए
लम्‍बित पड़े रेहड़ी पटरी अधिनियम का संसद से पास होना इसी कड़ी का एक
हिस्‍सा है । बहुप्रतिक्षित तेलंगाना बिल और सच्‍चर कमेटी की सिफारिश के
तहत अल्‍पसंख्‍यकों के लिए समान अवसर आयोग के गठन की मंज़ूरी का किस्‍सा
भी कुछ इसी तरह का है ।गौरतलब है कि समान अवसर आयोग के गठन का वायदा
सरकार के पिछले कार्यकाल मे किया गया था । इसी तरह महिला आरक्षण बिल भी
एक बार फिर फाइलों से बाहर नही निकल सका तो वहीं रायबरेली मे देश के पहले
महिला केन्‍द्रिय विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना का बिल भी बिना पास हुए रह
गया । जबकि इस बिल मे कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की खास दिलचस्‍पी
थी । सरकार के पिटारे से निकले इन बिलो का सीधा लाभ जनता को भले देर से
मिले ,लेकिन आगामी लोकसभा चुनावों मे गिनाने के लिए सरकार को बहुत कुछ
मिल गया है ।
चुनाव की पुर्वं संध्‍या पर ही राजनीतिक दलों को
सबसे ज्‍यादा आम आदमी की ज़रूरत पड़ती है ,इस लिए संप्रग सरकार को भी अब
आम आदमियों की सुध आयी ।देश मे शहरों और कस्‍बों की सड़क पटरियों पर आज
भी एक बहुत बड़ा तबका ज़िंदगी के सुनहरे सपने बुनता है ।कईयो की तो समूची
ज़िंदगी ही इन्‍ही पटरियों पर सपने बुनते बीत जाती है ।इनकी सही –सही
संख्‍या तो बता पाना कठिन है लेकिन एक अनुमान के मुताबिक देश मे 10 से 15
करोड़ लोग पटरियों पर करोबार करके जीवन यापन करते हें ।एक कानून ना होने
के कारण इनको अभी तक आये दिन अतिक्रमण के नाम पर ,शहर को सुंदर बनाने के
नाम पर या फिर किसी और कारण से उजाड़ा जाता था ।इन्‍हें स्‍थानीय निकायों
और पुलिस के शोषण का भी सामना पड़ता था । लेकिन 15 वीं लोकसभा मे
कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर जीविका का संरक्षण और पथ
विक्रय का विनियमन (पथ विक्रेता )विधेयक 2012 पास होने से इन करोड़ों
लोगों को आजीविका का कानूनी हक मिल गया ।
इस विधेयक के प्रावधानों के तहत कोई भी बालिग
व्‍यक्‍ति एक बार शुल्‍क जमा कर पंजीकरण करा सकता है । जिसके आधार पर वह
फेरी लगा कर तय वेंडिगं ज़ोन मे अपना कारोबार कर सकता है ।फेरीवाले देश
मे असेगठित क्षेत्र का एक अहम हिस्‍सा हैं ।एक अनुमान के मुताबिक देश के
लगभग सभी शहरों मे फेरीवालों की आबादी उस शहर की कुल आबादी का 2 प्रतिशत
हैं ।इसमे बड़ी संख्‍या मे महिलाएं भी शामिल हैं ।ये शहरी आबादी को
किफायती और सुलभ सेवा प्रदान करने का ज़रिया भी हैं ।गौरतलब है कि पिछले
महीने आप सरकार के दिल्‍ली प्रर्दशन के दौरान बड़ी संख्‍या मे रेहड़ी
वालों ने उसमे हिससा लिया था ।शायद इनको अपने से दूर जाता देख कर ही
संप्रग सरकार ने विधेयक को पास कराने मे दिलचस्‍पी दिखायी है ।अगर समय
रहते ये बिल पास हो जाता तो इसके अमल मे आने मे परेशानी नही होती ।
केन्‍द्र सरकार ने बिदाई की बेला मे अल्‍पसंख्‍यकों
को रिझाने के लिए बहुप्रतीक्षित समान अवसर आयोग के गठन के मसौदे को
मंज़ूरी दे दी है ।यह वैधानिक आयोग नौकरियों और शिक्षा मे अल्‍पसंख्‍यकों
के साथ होने वाले भेदभाव के मामलों की जांच करेगा । काबिले गौर है कि
जस्‍टिस सच्‍चर कमेटी ने समान अवसर आयोग के गठन की सिफारिश की थी और
संप्रग के पहले कायैकाल के दौरान ही इसके गठन का भरोसा भी दिया गया था
।लेकिन आयोग के मसौदे की मंज़री मे ही सरकार को पूरे दस साल लग गये ,वह
भी मंज़ूरी तब मिली जब सरकार के पास खुद इसको अमल मे लाने के लिए अब
वक्‍त ही नही बचा है । सच्‍चर कमेटी की ही रपट कहती है कि मुसलमान देश की
कुल आबादी का साढ़े 18 फीसद हिस्‍सा बनते हैं लेकिन नौकरशही मे उनकी
हिस्‍सेदारी ढ़ई प्रतिशत भी नही है । ऐसा तब हुआ जब कांग्रेस आज़ादी के
बाद से लगातार अल्‍पसख्‍यकों का पैरोकार वा हिमायती होने का दम भरती है
और देश मे करीब आधी सदी तक उसका शासन भी था ।
इसी तरह केन्‍द्र सरकार अपने इस कार्यकाल मे
राष्‍ट्रीय राजमार्गो को बनाने की रफ्तार तो बढ़ा नही सकी लेकिन चुनावों
के पहले उसने राजमार्गों के निर्माण के आंकड़े दुरूस्‍त करने का रास्‍ता
ज़रूर निकाल लिया है । केन्‍द्र ने अंतिम सत्र मे ही राज्‍यों के 7200
किलोमीटर लम्‍बे राजमार्गों को राष्‍ट्रीय राजमार्गों मे बदलने का फैसला
लिया है । वहीं नया वन क्षेत्र बनाने की भी घोषणा की गयी हे । लेकिन
प्रश्‍न यही पैदा होता है कि सरकार चाह कर भी इनके अमल की प्रक्रिया को
कैसे तेज़ करेगी । क्‍यो कि आम चुनावों की घोषणा कभी भी हो सकती है । ऐसे
मे सरकार की मंशा पर सवाल उठना लाज़मी हे । इसी लिए राजनीतिक हल्‍के मे
ये कहा जाने लगा है कि अ़तिम सत्र मे ये फैसले इस लिए लिये गये ताकि जनता
के बीच बताने के लिए सरकार की उपलब्‍धियों की फेरिस्‍त को लम्‍बा किया जा
सके ।
तेलंगाना बिल का सदन से पास होना भी इसी कड़ी का एक
हिस्‍सा है ।सन 2009 तक आंध्रप्रदेश कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था । लेकिन
समय के साथ उसकी छवि दरकी , पार्टी का विभाजन हुआ और जनाधार घटा तो आगे
के बढ़ने के लिए नया रास्‍ता राज्‍य के बंटवारे का निकाला गया ,जिसकी
मांग एक धड़े की तरफ से दशकों से की जा रही थी । संप्रग सरकार ने इसको
पूरा करने का वायदा भी वर्षो पहले कर भी दिया था । लेकिन राजनीतिक नफे
नुकसान के तहत इसके लिए भी उचीत समय अंतिम सत्र को चुना गया ,यहां भाजपा
भी उसकी बगलगीर हुयी । इससें ये तो देश के लोगों को समझ मे आगया कि
हंगामा चाहे कितना भी हो लेकिन राजनीतिक दलों के बीच पर्दे के पीछे भी
खूब खेल होतें हैं ।सरकारें साम – दाम – दडं भेद का भी खूब इस्‍तेमाल
करती हैं । भाजपा भी अपने नफे नुकसान के चलते ही इस मसले पर कांग्रेस की
बगलगीर बनी । बहरहाल अब तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस को
कामयाबी की बड़ी उम्‍मीद है ।वहीं सारे राजनीतिक दल अब एक बार फिर
चुनावों के लिए जनता की कसौटी पर हैं। वास्‍तव मे अगर देखा जाये तो 15
वीं लोकसभा का अंतिम सत्र राजनीतिक दलों की ओर से देशवासियों को भविष्‍य
के लिए कई संदेश दे गया । 15 वीं लोकसभा के अंतिम सत्र मे सदन मे जो कुछ
भी हुआ वह ये जानने के लिए काफी है कि राजनीतिक दल अपने से राजनीति के
शुध्‍दीकरण का बीड़ा उठाने वाले नही हैं ।
*शाहिद नकवी *

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