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भाजपा क्‍या अपना दिल बड़ा करेगी

Shahid Naqvi
Shahid Naqvi
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भाजपा चाहती है कि अल्‍पसंख्‍यक खासकर मुसलमान उससे
जुड़ें और वोट भी दें । लेकिन वह हिंदुत्‍व के मसले पर तो खुल कर सामने
आती है और हमलावर हो जाती है ,पर जब बात मुसलमान हित की आती है तो वह उसे
तुष्‍टीकरण नज़र आने लगता है ।वह मुस्‍लिम हित की बात करने वालों को
कठघरे मे खड़ा कर देती हे। ठीक एक दशक दो साल बाद भाजपा के किसी बड़े
नेता ने पहली बार पार्टी की अतीत की गलतियों के लिए अल्‍पसंख्‍यक समुदाय
से माफी मांगने की पेशकश की ,लेकिन अगले ही दिन अपनी रणनीति के तहत भाजपा
ने अपना मुस्‍लिम चेहरा आगे कर के ये कहलवा दिया की भाजपा ने अतीत मे कोई
गलती कि ही नही तो माफी काहे के लिए मांगी जाए ।अब सवाल पैदा होता है कि
मुसलमानों के मामले मे एक कदम आगे और दो कदम पीछे चलने वाली भाजपा पर
आखिर मुसलमान कैसे और क्‍यों भरोसा करें ! इसी सियासी दांवपेंच के चलते
ही धर्मर्निपेक्षता का दामन थामे दूसरे राजनीतिक दल भी अल्‍पसंख्‍यकों के
मामले मे अक्‍सर केवल घोषणओं से काम चला लेते हैं ।
लगभग तीन दशक की राजनीति के बाद भाजपा को ये
अच्‍छे से समझ मे आ गया है कि देश की आम जनता भारतीय संविघान के अनुरूप
धर्मर्निपेक्ष है । उग्र हिंदुत्‍व उसे पहचान तो दिला सकता है लेकिन
लम्‍बे समय तक केन्‍द्र की कमान नही दिला सकता है ।इसके लिए
धर्मर्निपेक्षता का सहारा लेना ही पड़ेगा ।इसके अलावा वह ये भी जानती है
कि लोकसभा चुनावों मे मुसलमानो की अहमियत और 272 के जादुआई आंकड़े को
पाने के लिए भी धर्मर्निपेक्ष दलों को नकारा नही जा सकता है ।मतदाताओं के
चुनावी आंकड़ों मे बताया जाता है कि सन 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की
करीब 218 लोकसभा सीटों पर मुसलमान मतदाता चुनाव को प्रभावित करने की
भूमिका मे नज़र आते हैं ।इन सीटों पर मुसलमान वोटर 20 प्रतिशत वा उससे
अधिक हैं ।तीस फीसदी मुस्‍लिम वोटरों वाली लोकसभा सीटों की संख्‍या 35 के
करीब है और 38 सीटे ऐसी बतायी जाती है जहां पर मुस्‍लिम वोट 21 से 30
प्रतिशत के बीच हैं ।इसी लिए पांच राज्‍यों के विधान सभा चुनावों मे मिली
भारी सफलता ,मौजूदा केन्‍द्र सरकार और कांग्रेस को लेकर तमदाताओं मे भारी
नाराज़गी से भाजपा को लगता है कि अभी देश का सियासी माहौल उसके मुताबिक
है और अगर अल्‍पसंख्‍यकों कों साधने की रणनीति बना ली जाये तो लोकसभा
चुनावों के बाद वह सत्‍ता मे वापस लौट सकती है ।
भाजपा के अल्‍पसंख्‍यक सम्‍मेलन मे पार्टी
अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह की मुसलमानों से की गयी माफी की भावुक अपील इसी
रणनीति का अहम हिस्‍सा माना जाना चाहिए ।उन्‍होने मुसलमानों को लुभाने के
लिए गुजरात दंगों का नाम लिए बिना मुसलमानो से साफ कहा था कि अगर पार्टी
से कभी कोई गलती इुई हो तो वह सिर झुका कर माफी मांगने के लिए तैयार हैं
।लेकिन इसके अगले ही दिन भाजपा की ओर से साफ किया गया कि उसके अध्‍यक्ष
की मुस्‍लिम समुदाय से माफी की पेशकश को गुजरात दंगों से जोड़ कर देखना
गलत है । प्रवक्‍ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि माफी भविश्‍य मे अगर कोई
गलती हुई तो उसके लिए थी । पार्टी के मुस्‍लिम चेहरे शहनवाज़ हुसैन ने भी
कुछ इसी तरह की बात कही कि राजनाथ की माफी से सन 2002 के गुजरात दंगों से
कोई लेना देना नही है ।भाजपा की सहयोगी शिवसेना भी इस मसले पर भड़की ।
अब ऐसे मे गुजरात दंगों, राष्‍ट्रीय स्‍वंय सेवक
संघ से मज़बूत रिश्‍ते सहित कई अन्‍य मामलों मे उसे कठघरे मे खड़ा करने
वाले मुसलमान भाजपा पर कैसे भरोसा कर सकतें हैं ।इसी लिए मुसलमानों के
प्रति भाजपा के हर बार बदलते रूख को दिल बदलने से ज्‍़यादा राजनीतिक
मजबूरी या चुनावी दांव समझा जाता है ।मुसलमानों को साथ लेने की भाजपा की
रणनीति इस लिए भी कभी गम्‍भीर नही मानी जाती और ना परवान चढ़ती है
,क्‍यों कि पार्टी चुनावों के दौरान ही मुसलमानों को लुभाने के लिए कसरत
करती दिखती है । अमूमन ये देखा जाता है कि जब भी कोई सरकार मुसलमानों के
लिए किसी तरह की घोषणा करती है भाजपा हमलावर हो कर तुष्‍टीकरण का आरोप
लगाने लगती है ।इसी के चलते अक्‍सर मुसलमानों के लिए होने वाली घोषणाएं
फाईलों मे कैद होकर रह जाती हैं ।कांग्रेस जैसे कई राजनीतिक दल भाजपा के
इस रूख का खूब फायदा भी उठातें हैं और मुसलमानों को घोषणाओं का झुनझुना
थमा कर उसका जम कर प्रचार करतें हैं ताकि भारी विरोघ के चलते वह अमल तक
ना पहुंच सकें ।पिछले कुछ सालों मे देश ,पश्‍चिम बंगाल सहित कई प्रदेशों
मे ऐसा देखा गया है । इसी लिए हर बार ये सवाल उठता है कि क्‍या मुसलमान
और भाजपा के बीच अविश्‍वास की खाई भर पायेगी ।भाजपा बीच-बीच मे ऐसे संकेत
देंती रहती है कि वह अपनी ओर से इसे पाटने की कोशिश कर रही है । लेकिन
हकीकत यही है कि जब भी उसने इस सिलसिले मे एक कदम बढ़ाने की कोशिश की है
,तब पार्टी पर हावी कट्टरपंथी खेमा उसे अपने दो कदम पीछे खीचने के लिए
मजबूर कर देता हे ।राजनाथ सिहं के बयान के बाद पार्टी की ओर से दी गयी
सफाई को इसी नज़र से देखा जा रहा है ।
भाजपा 2014 के लोकसभा चुनावों मे 272 के आकंड़े को
मोदी की पीठ पर सवार हो कर पार करना चाहती है ।एक तरफ मोदी पार्टी को
सफलता दिखाते दिखते हें तो दूसरी तरफ इस संख्‍या को पार करने मे
धर्मर्निपेक्ष लोगों और दलों मे 2002 के बाद बनी उनकी छवि बड़ा रोड़ा बन
रही है । भाजपा रणनीतिकारों को लगता है कि अगर वह इस बार दिल्‍ली की
सत्ता तक नही पहुंच सकी तो फिर अगले कई चुनावों तक प्रधान मंत्री की
कुर्सी उससे दूर ही रहेगी । इस लिए मिशन सन 2014 उसके लिए और मोदी के लिए
भी अहम हे । भाजपा की कोशिश है कि किसी तरह मुसलमानों को रणनीतिक मतदान
करने से रोका जाए ।क्‍यो कि ऐसा होने पर उसे भारी नुकसान उठाना पड़ता है
।इसी के मद्देनज़र भाजपा ने मिशन 2014 के लिए मुसलमानों को लुभाने के लिए
पांच राज्‍यों के विधान सभा चुनावों से ही तैयारी शुरू कर दी थी ।मध्‍य
प्रदेश मे कई चुनावों के बाद उसने एक मुस्‍लिम प्रत्‍याशी को मैदान मे
उतारा था । जबकि राजस्‍थान मे चार लोगों को उसने उम्‍मीदवार बनाया था
।जिसमे से दो मुसलमान उम्‍मीदवारों को जीत मिली और डीडवाना के युनूस खान
को वसुंधरा मंत्री मंडल मे जगह भी दी गयी हे ।इसके पहले कर्नाटक ,गुजरात
सहित कई अन्‍य राज्‍यों के विधान सभा चुनावों मे भाजपा ने कोई मुस्‍लिम
प्रत्‍याशी नही उतारा था ।
इसी मिशन के तहत भाजपा ने अब तक अपने तीन प्रमुख
मुद्दे ,समान नागरिक सेहिेता ,धरा 370 और अयोध्‍या मे भगवान राम मंदिर को
भी नही उठाया हे ।अब देश के कई राजयों मे मोदी जी की रेलियो हो चुकी हें
लेकिन ये मुद्दे उनके भाषणों से गायब ही रहे ।जबकि 90 के दशक मे और उसके
बाद के वर्षो मे भी ये मुद्दे भाजपा की पहचान रहें हैं ।इन मसलों पर
चुप्‍पी साध कर भाजपा अभी और लोकसीभा चुनाव के बाद अपने दरवाज़े खुले
रखना चाहती है ।इससे साफ होता है कि भाजपा भी कुर्सी के लिए वह सब कर रही
है जिसके लिए वह दूसरे राजनीतिक दलों पर आरोप लगाती रही है । मुनासिब है
कि ऐसे मे भाजपा को मुस्‍लिमों का भरोसा जीतने के लिए अपना दिल ज़रा बड़ा
करना चाहिए ।साथ ही सच्‍चर कमेटी की इस सिफारिश को स्‍वीकार करना चाहिए
कि यह तबका ग़रीब ,अशिक्षित और देश मे उपेक्षित भी है ।यही नही मौजूदा
लोकसभा मे उनकी नुमाईनदगी मात्र 6 फीसद है और आज़ादी के 65 साल बाद भी
राजस्‍थान जैसे कई राज्‍यों से उनका कोई प्रतिनिधित्‍व लोकसभा मे नही है

*शाहिद नकवी *

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