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लालतंत्र पर कब लगाम लगेगी

Shahid Naqvi
Shahid Naqvi
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छत्‍तीसगढ़ के बस्‍तर इलाके की दरभा घाटी मे लालतंत्र ने लोकतंत्र पर
हमला करके एक बार फिर शासन सत्‍ता को चुनौती दी है ।दरभा घाटी का सच ये
है कि नक्‍सली चुनाव और दूसरे महत्‍वपूर्ण मौकों पर खुफीया और सुरक्षा
प्रबंध को धता बता कर खूनी खेल खेलने वा दहशत फैलाने मे कामयाब हो जाते
हें ।पिछले कुछ सालों मे जिस तरह लाल घेरा बढ़ा यानी नक्‍सल प्रभावित
इलाका ,उससे तो यही लगता है कि नक्‍सली समस्‍या अब देश के लिए आतंकवाद से
भी बड़ा खतरा बन गयी है ।सरकार अब तक इसको हल करने के लिए ना तो कोई ठोस
कार्ययोजना बना सकी ओर ना ही सख्‍ती से इन्‍हें काबू कर सकी है ।हर हमले
के बाद नक्‍सल प्रभावित इलाकों मे सुरक्षाबल बढ़ा दिये जाते हैं लेकिन
लगातार इनकी तादात और ताकत क्‍यों बढ़ रही हे ,इस पर गौर नही किया जाता
।नक्‍सलियों के पास आधुनिक हथियार खरीदने और इतना बड़ा नेटवर्क संचालित
करने के लिए धन कहां से आता है ,इस पर भी मंथन नही किया जाता ।
दस राज्‍यों के 75 से अधिक ज़िलों के 330 थाना
क्षेत्रों मे फैल चुके नक्‍सली अब देश के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं
।सरकारी आंकड़ों के अनुसार सन 1980 के आसपास नक्‍सली वारदातें शुरू हुयीं
और सन 2012 तक नक्‍सली हमलों मे 11,700 से अधिक लोग शहीद हों चुके हैं
।पिछले पाचं सालों की वारदातों को देख कर यही लगता है कि नक्‍सलवाद अब
आतंकवाद से भी बड़ा खतरा बन गया है ।एक आंकड़े के मुताबिक पांच साल मे
963 जवान नक्‍सली हमलों मे शहीद हुए जबकि 2360 के करीब नागरिक वा दूसरे
लोग मारे गये ।वहीं कश्‍मीर मे हुई आतंकी घटनाओं मे 232 जवान शहीद हुए और
172 नागरीक भी मारे गये ।ये आंकड़े इस बात के सबूत हैं कि नक्‍सली सरकारी
सुरक्षातंत्र को भेदने मे हर बार कामयाब हो जाते हें ।उनकी सूचना इतनी
सटीक रहती है कि सुरक्षबलों को उनकि भनक नही लग पाती जबकि सुरक्षा बलों
की हर गतिविधियों की जानकारी उनके पास रहती है ।कहा जा रहा है कि इस बार
भी खुफीया विभाग ने केन्‍द्र और राज्‍य सरकार को नक्‍सलियों के मंसूबों
बता दिये थे फिर भी ज़रूरी सावधानी नही बर्ती गयी ।
गौरतलब है कि इसी क्षेत्र मे 6 अप्रैल 2010 को
नक्‍सलियों ने सीआरपीएफ की बटालियन पर हमला करक 76 जवानों को शहीद किया
था ।उस समय सरकारी तंत्र ने एलान किया था कि अब नक्‍सलियों से सख्‍ती की
जायेगी लेकिन नतीजा कुछ नही निकला ।बीच –बीच मे वह वारदात करके चुनौती
देते रहे ,लेकिन गत वर्ष 25 मई को 1000 नक्‍सलवादियों ने एक भयानक हमला
कर के अपने बढ़े हुए हौसले का परिचय दिया था ।इस हमले मे पूर्व
केन्‍द्रिय मंत्री वीसी शुक्‍ल और प्रदेश कांग्रेस के चार नेताओं सहित
कुल 31 लोग मारे गये थे ।दरभा घाटी के वीभत्‍स नेता संहार और नक्‍सलियों
के दुस्‍साहस को एक बार फिर संवेदनाओं वा बयानों मे भूला दिया गया । 11
मार्च को इसी इलाके मे नक्‍सलियों ने फिर हमला कर के ऐन लोकसभा चुनावों
के पहले शसनतंत्र को चुनौती दे डाली ।हांलाकि पिछले साल हुए विधान सभा
चुनावों मे नक्‍सलियों के बहिष्‍कार के फरमरन के बावजूद वहां 75 फीसदी से
अधिक मतदान हुआ । जो इस बात का सबूत है कि स्‍थानीय आदीवासी दिल से
नक्‍सलियों के साथ नही हे ।वह केवल भय और अन्‍य कारणें से नक्‍सलियों की
जानकारी सुरक्षा बलों को नही देतें हैं ।घने जंगलों का फायदा उठा कर वह
आसनी से भग निकलते हैं ।
काबिले गौर है कि इतनी बड़ी संख्‍या मे जवानों की मौत के
ज़िम्‍मेदार नक्‍सली अक्‍सर सबूतों के अभाव मे बरी हो जाते हैं और कहीं
कोई हैरानी या परेशानी महसूस नही कि जाती है ।दरअसल इसी वजह से
नक्‍सलीयों का दुस्‍साहस बेलगाम हो जा रहा है और वह कानून से बेखौफ हें
।नक्‍सलियों के प्रत्‍येक हमले के बाद शोक संवेदनाओं भरे बयान आते हैं और
उनकों निपटाने की बात की जाती हे लेकिन उनके दुस्‍साहस का मुंह तोड़ जवाब
देने के लिए कोई ठोस योजना अमल मे नही आ पाती है ।यह कई बार साफ हो चुका
है कि नक्‍सली न तो बातचीत के ज़रिए किसी समस्‍या का समाधान चाहतें हें
और न ही हिंसा का रास्‍ता छोड़ने वालें हैं ।इस सब के बावजूद केन्‍द्र और
राज्‍य सरकार के रवैये मे कहीं कोई बदलाव नही दिखता है ।हमारे
नीतिनियंताओं को ये बात भी समझ मे नही आती कि खोखले तौर तरीके आंतरिक
सुरक्षा की चुनोतियों को बढ़ाने के साथ –साथ सुरक्षाबलों के लिए भी
मुसीबत पैदा कर रहे हें । हमारे सुरक्षाबलों को नक्‍सलियों और वहां के
दुर्गम इलाकों के हालात से भी मुकाबला करना पड़ता हे ।कई बार घायलों को
अस्‍पताल ले जाने के लिए ठीक से साधन भी नही मिल पाते हैं । घने ज़गल और
इलाके के चप्‍पे -चप्‍पे से वाकिफ होने के कारण वह हरबार भरी पड़तें हैं।
इस समस्‍या की गम्‍भीरता का अंदाज़ा या एहसास किसे है ,इस का जवाब कोई
एकदम से नही दे सकता है ।नक्‍सलियों से निपटने मे भारी भारी भरकम धनराशि
खर्च की जाती है ,फिर भी वह अपने मिशन मे कामयाब हो जाते हें ।अब सवाल पैदा होता है कि सरकार कब तक इन नक्‍सिलयों को देश के बिगड़े हुए नवजवान मानती रहेगी ।सालाना करीब 600 करोड़ रू की लेवी लेने वरले नक्‍सली इन्‍ही कारणें से ताकतवर बन गयेहैं।अगर उनको देश के कनून और देश से लगाव होता तो वह अब तक कब के हिंसा का रास्‍ता छोड़ कर टेबल टाक करते।आदीवासियों और नक्‍सलियों मे फर्क करना होगा ।आदीवासी आज भी उतने ही सीधे और सरल हैं जितने पहले थे ।
इस लिए यहां ये भी ज़रूरी है कि आदिवासियों की ज़िंदगी की
हकीकत की ईमानदारी से पड़ताल की जाये ।उनके उत्‍थान के लिए आने वाला
करोड़ों रूपय का बजट कहां और कैसे खर्च होता है कि इतने दशकों बाद भी एक
बड़ा तबका दो वक्‍त की रोटी का मोहताज है ।विकास के नाम पर आदीवासी किसान
से मज़दूर बन रहे हैं । आंकड़ों के मुताबिक पिछले सालों मे विकास के नाम पर इनकी ज़मीन गयी तो ये लाखों की तादात मे किसान से मज़दूर बन गये। वहीं करीब 60 फीसदी को मैट्रिक से आगे की शिक्षा नही
मिल पाती है या मजबूरी मे छोड़ देतें हें ।इनक इलाज के लिए भी सरकारी इंतज़ाम नाकाफी हैं।आदीवासियों के विकास के बारे मे फिर से इ्रमानदारी से सोचना चाहिए । वहीं ज़रूरी है कि नक्‍सलियों को रास्‍ते पर लाने के लिए
निहत्‍ता और नि;शक्‍त किया जाये ।उनके गढ़ मे सरकारी अमला अपनी प्रभावी
मौजूदगी दर्ज कराये और आदीवासियों को भरोसे मे लेकर उनके दुष्‍प्रचार की
काट करे । उम्‍मीद की जानी चाहिए कि इतने जवानों को खोने और बेकसूर आम
नागरिकों की जान जाने के बाद शासन सत्‍ता हरकत मे आकर कोई ठोस और कड़ी
कार्यवाही ज़रूर अमल मे लायेगा ।इस बात की भी फिर पूरी उम्‍मीद है कि
पिछले साल हुए विधान सभा चुनाव की तरह स्‍थानीय निवासी नक्‍सीलियों के
खौफ को ठेंगा दिखा कर आगामी लोकसभा चुनावों मे भी भारी मतदान कर के अपनी
ओर से उनका हौसला पस्‍त करने मे भगीदार बनेगें ।
*शाहिद नकवी *

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