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भारत की मंगल विजय का मतलब

Shahid Naqvi
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भारत की स्‍वर्णीम सफलता से दुनिया चकित है ।उसका चकित होना लाज़मी भी है क्‍यो कि भारत ने वह कर दिखाया जो अमेरिका ,चीन ,जापान ,रूस और यूरोप के वह शक्‍तिशाली देश भी नही कर सके जो अपने आप को साधन सम्‍पन्‍न समझते है ।भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने महज़ चार सौ पचास करोड़ रूपए मे मंगल तक का सफर तय कर सचमुच करिश्‍मा कर दिखाया है ।ये करिश्‍मा इस लिए कहा जायेगा क्‍यों कि लाल ग्रह तक पहुंचने का पहला अभियान अभी तक दुनिया के किसी देश का सफल नही हो सका है ।जबकि मंगल तक पहुंचने का किसी भी ऐशियायी देश का अब तक मंसूबा ही पूरा नही हो सका है ।गुलामी की बेड़ियां टूटने के बाद तमाम दुश्‍वारियों के बीच एक छोटे से चर्च से चांद तारों का सफर शुरू करने वाले भारत ने अपने पांच दशक के अंतरिक्ष इतिहास मे जो मंज़िल हासिल की है वह अतूलनिय है । इसी लिए तो विश्‍व समुदाय ये मान रहा है कि अंतरिक्षके क्षेत्र मे भारत की मेघा शक्‍ति ने अपना परचम शान से फहरा कर एक इतिहास रच दिया है।दुनिया मे अब तक मंगल ग्रह के लिए करीब 51 मिशन भेजे गये लेकिन उसमे से केवल 21 को ही अपनी मंज़िल मिल सकी है ,इस लिए भारत के लिए भी मंगलयान को मंगल की कक्षा मे स्‍थापित करना आससान नही था ।
इस कामयाबी के बाद बढ़े हुए हौसले के साथ इसरो ने अपनी मंज़िल सूर्य और शुक्र तक पहुंचना तय की है ।एक जानकारी के मुताबिक इसरो का मकसद अब चंद्रमा की आबो हवा की बेहतर समझ हासिल करना और वहां जीवन की संभावनाऐं तलाश करना भी है ।इसके लिए अगले दो तीन साल मे चंद्रयान दो मिशन पर भेजने की उम्‍मीद की जा रही है ।उल्‍लेखनीय है कि साल 2008 मे इसरो के ही चंद्रयान -1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी की पहली बार पुष्‍टी की थी । कहा जाता है कि सूरज तक पह़ंचना काफी मुश्‍किल है लेकिन जब जोश और हौसला साथ हो तो हिम्‍मत खुद आजाती है ।ये बात इसरो के इसरो के अंतरिक्ष वैाज्ञानिकों पर भी लागू होती है ।इस लिए अब वह सौर पवन और चुंबकीय क्षेत्र का पृथ्‍वी पर असर आंकना चाहतें हें ।इसके अलावा और भी मिशन और मंज़िलें हैं जिनको हमारे वैज्ञानिक लांघना चाहतें हैं ।इस कामयाबी के बाद समूचे भारत मे देश भक्‍ती की भावना हिलोरें मार रही है और सवा सौ करोड़ लोगों की दोआऐं वा उम्‍मीदें भी इसरो के साथ जुड़ गयीं हैं इस लिए सचमुच किसी असंभव मिशन को संभव बनाना उनकी तकनीकी क्षमता के लिए मुश्‍किल नही होगा ।ये भी एक संयोग है कि परमाणु परिक्षण की तैयारियां कांग्रेस के शासनकाल मे शुरू की गयी लेकिन पोखरण मे परिक्षण हुआ साल 1999 मे अटल सरकार के दौरान ।इसी तरह मिशन मंगल की जद्दोजहद शुरू हुयी मनमोहन सिंह के कार्यकाल मे लेकिन लाल ग्रह तक तिरंगा पहुंचा मोदी के शासन के दौरान ।
मंगल मिशन की कामयाबी हमारी उस खगोलीय विरासत की कड़ी है जिसकी बुनियाद लगधा ,आर्यभट्ट ,भास्‍कर और ब्रहम्‍गुप्‍त ने डाली थी ।बाद मे जिसको भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक डाक्‍टर होमी भाभा और दूसरे वैज्ञानिकों ने आगे बढ़ाया ।केरल के छोटे सें गांव थुंबा की एक चर्च की छोटी इमारत से सन 1969 मे इसरो की कामयाबी का सफर शुरू हुआ ।अपनी शुरूआत के दिनों मे कभी साइकिल से तो कभी बैलगाड़ी से उपग्रह ले जाने वाले इसरो के वैज्ञानिकों ने सीमित संसाधनों के बावजूद अपने हौसले को बनाये रखा जिससे चांद तारों की दुनियां मे उसका कारवां लगातार बढ़ता गया और विश्‍व समुदाय उनका लोहा मानता गया ।साल 1999 मे पोखरण परमाणु विस्‍फोट के बाद एक समय ऐसा भी आया जब पश्‍चिमी देशों ने उसकी बढ़ी ताकत को देखते हुए कई प्रतिबंध भी ठोक दिये लेकिन इस पर भी उसकी कामयाबी का सफर जारी रहा ।इन वैज्ञानिकों की प्रतिभा की मेघा का ही नतीजा है कि आज इसरो की तरफ से छोड़े गये करीब 70 उपग्रह अंतरिक्ष मे काम कर रहे हैं ।बड़ी बात ये है कि इसमे 40 के करीब उपग्रह विदेशी हैं ।आज से 6 साल पहले भारत चंद्रमा पर पानी मौजूद होने की पुष्‍टी करने वाला संसार का पहला देश बना था ।अब आठ साल बाद पहले ही प्रयास मे मंगल की कक्षा मे दाखिल होने का कारनामा भी उसके नाम दर्ज हो गया ।इसरो की इस कामयाबी के मायने इस लिए भी ज्‍़यादा हैं कि उसने इस मिशन के लिए कम समय के साथ महज़ 450 करोड़ रूपये खर्च कर अपनी मंज़िल हासिल कर ली ।ये रकम हालावुड मे बनने वाली फिल्‍म पर खर्च होने वाली रकम से भी करोड़ों कम है ।दिलचस्‍प बात ये है कि मंगलयान ने अपने अब तक के सफर के दौरान 68 करोड़ किलोमीटर की दूरी तय की है । गणित के जानकारों के आंकड़ों के मुताबिक दूरी के हिसाब से रकम भारतीय सड़कों पर चलने वाले वाहनों के किराये मे खर्च होने वाली रकम के बराबर है ।जानकारों का ये भी कहना है कि भारत ने अपने दम पर चंद्र और मंगल पर कदम रख कर देश की जनता का अरबो डालर का खर्च बचाया है ।इसरो की ही बदौलत आज दूरसंचार ,रेडियो और टीवी प्रसारण के क्षेत्र मे क्रान्‍ती आ सकी है ।आज हम मौसम की सटीक जानकारी ,बाढ़ वा भूकंप जैसी अपदाओं का अर्लट देने और समुद्र मे होने वाले बदलावों को परखने मे सक्ष्‍म हैं ।इसी लिए आज इस अतुलनीय उप्‍लबधी पर सारे देश से इसरो के वैज्ञानिकों के लिए सलाम –सलाम की आवाज़ें आ रही हैं ।
यूं तो भारत का अंतरिक्षीय अनुभव बहुत पुराना है जब राकेट को आतशबाज़ी के रूम मे पहली बार प्रयोंग मे लाया गया था ।ऐतिहासिक प्रमाण के अनंसार जब टीपू सुल्‍तान ने मैसूर की लड़ाई मे अंग्रेज़ों को खदेड़ने के लिए राकेट का प्रयोग किया था ।इसे देख कर विलियम कंग्रीव काफी प्रभावित हुआ और उसने बाद मे 1804 मे कंग्रीप राकेट का अपिष्‍कार किया जो आज के आधुनिक तोपखाने की देन माना जाता है ।सन 1947 मे अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद होने के बाद भारतीय वैज्ञानिक भारत की राकेट तकनीक के सुरक्षा क्षेत्र मे उपयोग और अनुसंधान एवं विकास की बदौलत विख्‍यात हुए ।दरअसल भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम डाक्‍टर विक्रम सारा भाई की संकल्‍पना है और जिसे साकार करने के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अवसर प्रदान किये ।आज इसी का नतीजा है कि इसरो ने लगातार अपनी कामयाबी का सिलसिला जारी रखा है ।अभी उसके पास दर्जनों अंतरिक्ष मिशनों को संचालित करने की योजना हे जिनका बजट भी भारी भरकम है ।
अपने पहले ही प्रयास मे खुद की तकनीक से विकसित उपग्रह को लाल ग्रह तक पह़ुचाने मे कामयाब होने के बाद भारत उपग्रह प्रक्षेपण के मामले मे विकासशील देशें की पहली पसंद बन सकता है ।इस लिए ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे इसरो की आमदनी का एक रास्‍ता खुल सकता है ।एक अनुमान के अनुसार इस समय उपग्रह प्रक्षेपड़ यानी अंतरिक्ष यान लानचिगं का बाज़ार काफी बड़ा है ।कम लागत और भरोसेमंद तकनीक के कारण भारत करीब 300 अरब डालर के इस बाज़ार मे मज़बूती से खड़ा हो सकता हे ।बहरहाल देश के अंतरिक्ष वैज्ञानिक अभिनंदन के हकदार हैं और सवा सौ करोड़ लोगों के लिए जश्‍न मनाने का भी अवसर है ।इसी के साथ ये भी आस बंधती दिख रही है कि अब देश मे ऐसे माहौल का र्निमाण होगा नवजवानो और किशेरों मे विज्ञान के प्रति गहरी दिलचस्‍पी पैदा होगी और कोई युवा इसरो के दल मे शामिल हो कर दुनिया मे देश का नाम रोशन करेगा ।उम्‍मीद की एक और किरण दिख रही है कि देश उन क्षेत्रों मे भी कामयाबी हासिल कर आत्‍मर्निभर बनेगा जिन पर अभी हम को विदेशें की ओर देखना पड़ता है ।
**शाहिद नकवी **

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