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संविधान के मुताबिक भारत भले ही धर्मनिरपेक्ष देश है लेकिन धार्मिक
आस्थाओं के मामले में हमारा देश एक विचित्र देश है और यहां का जनमानस
भी बड़ा धर्म भीरू है । जीवन के सभी छोटे बड़े कार्य यहाँ धर्म के आधार
पर ही व्यवस्थित किये जातें हैं।धर्म में विश्वास रखना और ईश्वर में
विश्वास रखना समान गुणमाना जाता है । आस्था के इस देश में बड़े ही
अजब-गजब लोग पाए जाते हैं । हकीकत में देखा जाए तो आदमी की अधिकतम
आकांक्षा ईश्वर हो जाना ही होती है। इसीलिये आज जिसे भी देखिये आस्था के
नाम पर स्वयं को भगवान तुल्य घोषित कर पुजवाने का कार्य भी बढ़-चढ़ कर कर
रहा है। आस्था, श्रृद्धा, विश्वास के नाम पर जितना पाखंड, धोखे का खेल
पोंगा पंथियों ने किया शायद ही किसी ने किया हो।संविधान के मुताबिक देश
और प्रदेशों की सरकारों का धर्मनिरपेक्ष होना और जनता का बेहद धार्मिक
होने के बीच का यही विरोधाभास कभी सड़कों पर , कभी संतों या धर्मगुरूओं
के आश्रमों मे तो कभी धार्मिक स्थलों में नजर आता रहा है । धर्मगुरू
आस्था के नाम पर कानून को ठेंगे पर रखते आए हैं । हरियाणा मे संत रामपाल
के आश्रम में जो पहले होता रहा और जो अब हुआ है उसे किसी हालत में सही
नहीं ठहराया जा सकता । एक संत के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो रहे
हैं पर धर्म के नाम पर कानून की धज्जियां उड़ाई गयी ।शायद ये भारत जैसे
लोकतांत्रिक देश मे ही सम्भव है कि अदालत की लगातार अवमान्ना करने वाले
बाबा की गिरफ्तरी के लिए 30 हज़ार सुरक्षा कर्मियों की घेराबंदी करनी
पड़ी ।ये भी कितना अजीब है कि करीब हफ्ते भर चले हाई वोल्टेज ड्रामे
मे 6 बेकसूर लोगों को जानगवां पड़ी और सरकार के 70 करोड़ रूपये खर्च होने
के बाद हत्यारोपी रामपाल को हिसार के बरवाला स्थित उनके आश्रम से
गिरफ्तार किया जा सका ।एक ऐसे शक्स को संत या बाबा कैसे कहा जा सकता है
जिसने 40 से अधिकबार अदालत के आदेशों की अवहेलना की हो ।जिसका आश्रम
अलीशान हो , जिसमे वह सारी आधुनिक सुविधाऐं मौजूद है जो किसी रईस के महल
मे होती है और जिसका अपना हथियार बंद दस्ता हो ।
हरियाणा मे लोकतंत्र की संथाओं , कानून की सत्ता और संतो वा
धर्मगुरूओं के बीच जो खुला टकराव हुया वह अनोखा और अप्रत्याशित नही है
। कुछ इससे मिलता जुलता वाक्या दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद
अहमद बुखारी के साथ नजर आ चुका है । तमाम गैर जमानती वारंटों के बावजूद
दिल्ली पुलिस उन्हें अदालत के सामने नहीं पेश नहीं कर पाई थी । दिल्ली
पुलिस को जो डर था वही डर हिसार में सच साबित हो गया ।पिछले साल
आसारामबापू की गिरफ्तारी के समय भी ऐसा ही हुआ था ।इसके अलावा भी कई और
उदाहरण हैं जब दबंग बाबाओं , लोगों और समूहों ने कानून तोड़ा और मुनासिब
कार्यवाही नही हो सकी ।ऐसे मे ये धारणा बन गयी है कि कानून सिर्फ कमजोर
और साधनहीन के लिए है ।इसी लिए लोग ये भी मानने लगें हैं कि कानून को
ताकत और रसूख के सहारे झुकाया जा सकता है । भारत दुनियाभर के करीब 90
फीसदी से अधिक संतों और साध्वियों का घर है। यहां के स्वयंभू संत अपने
कार्यों और अपराधों से हमेशा ही सुर्खियों में बने रहते हैं। खुद को
भगवान के समान बताने वाले इनमें से अधिकांश संत और साध्वियां भक्तों को
आकर्षित करने के लिए अपने स्वयं के संप्रदाय की स्थापना करते हैं। इनके
अनुयायी भी बहुत अधिक संख्या में होते हैं। इन लोगों में से कुछ बाबा और
साध्वियों ने बहुत ही कम समय में भारी मात्रा में धन कमाया है। इनमें से
कुछ के अनुयायी तो दुनियाभर में फैले हैं और ये दान और फीस के माध्यम से
सैकड़ों करोड़ रुपए कमाते हैं। हाल के दिनों में, कई संत और साध्वियां को
कथित विभिन्न अपराधों के लिए कानून का सामना करना पड़ रहा है।इनमे से
आसाराम का मामला तो जगजाहिर है। स्वयंभू संत आसाराम पर यौन शोषण के
गंभीर आरोप लगे हैं। उनके ही आश्रम में पढ़ने वाली एक नाबालिग लड़की ने
आसाराम पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं।इसी के चलते वह एक साल से जेल मे है
।इसी तरह तांत्रिक चंद्रास्वामी को कई दिग्गज राजनेताओं और पूर्व
प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का बेहद करीबी माना जाता था। नब्बे के
दशक में चंद्रास्वामी उर्फ नेमीचंद जैन का दबदबा सभी मानते थे। सियासत के
पर भी इनका तगड़ा प्रभाव था। कई राजनेताओं के यह आध्यात्मिक गुरु माने
जाते थे। चंद्रास्वामी पर भारी वित्तीय अनियमितताओं का आरोप है। डेरा
सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम की भक्ति का साम्राज्य देश ही नहीं
विदेश तक फैला हुआ है और यही वजह है कि आस्था की दुनिया से लेकर राजनीतिक
के संसार तक बाबा राम रहीम का जलवा बरसों से बरकरार है। इतना सब कुछ होने
के बाद भी डेरा प्रमुख का नाम विवादों से अछूता नहीं है। राम रहीम पर
अपने आश्रम की साध्वियों के साथ बलात्कार करने के आरोप लगे थे।उन पर
हत्या और बलात्कार के मामलों की जांच सीबीआई कर रही है और बाबा राम रहीम
इन केसों में जमानत पर हैं ।इसी कड़ी मे सत्य साई बाबा ,स्वामी परमहंस
नित्यानंद ,र्निमलबाबा सहित कई अन्य धर्मगुरूओं का नाम लिया जा सकता है
जिनके पास अकूत दौलत है ।जिसके बल पर वह सरकार और कानून को चुनौती देतें
रहतें हैं ।कई बाबाओं ने कानून को नज़र अंदाज़ कर अपनी निजी सेनाओं तक का
गठन कर लिया हैं।सतलोक आश्रम के पास राष्ट्रीय समाज सेवा समिति के नाम से
निजी सेना है, उसी तरह सिरसा के डेरा सच्चा सौदा के पास ‘शाह सतनाम जी
ग्रीन ‘एस’ वेलफेयर फोर्स विंग’ है। वहीं पंजाब में जालंधर जिले के
नूरमहल कस्बे में दिव्या ज्योति जागृति संस्थान की भी अपनी निजी सेना है।
अपनी सेना के बदौलत ये संस्थान कई बार दूसरे संस्थाओं के साथ टकराव कर
चुके है। वहीं तरनतारन जिले में दमदमी टकसाल के पास भी हथियारबंद लोगों
की अपनी सेना है।इतना ही नहीं लिस्ट में कई और भी संत है। नामधारी परंपरा
का डेरा लुधियाना के गांव में है। इनके पास भी अपनी निजी सेना है। संतों
की ये सेना आम तौर पर तो सत्संगों और प्रवचनों के मौकों पर सड़कों का
बंदोबस्त अपने हाथ में ले लेती हैं, लेकिन जब स्थिति टकराव की आती है तो
ये आर्मी बन जाती है। जैसा हिसार मे रामपाल के मामले मे देखने को मिला
।सतलोक आश्रम मे बाबा रामपाल के 1000 से अधिक काली वर्दीधारी कमांडों ने
हरियाणा पुलिस से तगड़ा मोर्चा लिया ।पुलिस को अब तलाशी मे वहां बम और
हथियार भी मिले हैं जो इस बात की तस्दीक करतें हैं ।ऐसे में सवाल ये कि
क्या संतों पर देश का कानून नहीं लागू होता? क्या सरकार इन संतों के
सामने नतमस्तक होकर उन्हें अपनी प्राइवेट आर्मी रखने की इजाजत दे देती
हैं?
बहरहाल कई दिनों तक चले लम्बे नाटकीय घटनाक्रम के बाद तथाकथित
धर्म गुरु रामपाल बेशक पुलिस की गिरफ्त में आ गया हो, लेकिन यह सारा
घटनाक्रम अपने पीछे अनेक अनसुलझे सवाल छोड़ गया । आम जन मानस के मन में रह
रह कर यह सवाल कौंध रहा है आखिर कैसे एक कथित धर्मगुरु अपनी खुद की निजी
सेना और अपने अंध भक्तों की आस्था की ढाल लेकर सारे प्रशासनिक अमले और
कानून व्यवस्था को यूँ धता बता सकता है। रामपाल और उस जैसे अन्य स्वयंभू
धर्म गुरु लगातार भोली भाली जनता की सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक
इच्छाओं और लाचारियों का फायदा उठा उन्हें अपने शिकंजे में फंसा कर शोषण
करते रहे है। एक बड़ा अनुयायी समूह तैयार होने के बाद मौका मिलते ही ऐसे
स्वयंभू संत संवैधानिक ढांचे को चुनौती देने से बाज नहीं आते। वोट बैंक
की राजनीति के चलते विभिन्न राजनीतिक दल भी ऐसे बाबाओं का आशीर्वाद पाने
की होड़ में रहते हैं और सत्तारूढ़ होने पर इन्हें संरक्षण देने से भी पीछे
नहीं हटते। हालिया प्रकरण से सीख लेते हुए जहाँ आम जनता को अपने तथाकथित
गुरुओं के प्रति ऐसी अंध भक्ति से बचना चाहिए, वहीँ हमारे राजनेताओं को
भी वोट बैंक के मोह के कारण इन बाबाओं के चरणों में नतमस्तक होने से बचने
की आवश्यकता है। साथ ही एक बड़ी जरूरत है धर्म के नाम पर खुलने वाले ऐसे
डेरों पर समुचित नियन्त्रण की जो आस्था की आड़ लेकर वास्तव में असामाजिक
गतिविधियों के अड्डे बनते जा रहे हैं। जरूरी यह है कि धर्मगुरुओं और
संस्थाओं की संपत्ति को कानून के दायरे में लाया जाए। वहां जो पैसे की
अकूत बरसात होती उसकी जांच होनी चाहिए । धर्म में हथियारों और बाहुबलियों
की मौजूदगी को भी सख्ती से रोकना चाहिए। समाज में जो यह सोच पैदा हो गयी
है कि धर्म के नाम पर सब कुछ जायज है, इस को बदलना भी जरूरी है ।
वरना धार्मिकस्थलों और आश्रमों से चलाने वालों की समानांतर सत्ताएं भारत
गणराज्य के कानूनों को चुनौती देती रहेंगी और सरकारी धर्मिक स्थल को
अपनी मिल्कियत बताने वा सरकार की उपेक्षा कर विदेशियों को बुलाने की
परम्परा यूं ही चलती रहेगी । उम्मीद है कि देश और प्रदेशों की सरकारें
इस प्रकरण से सबक लेते हुए भविष्य में इस तरह के मामलों मे ठोस कदम
उठायेंगीं ।
** शाहिद नकवी **
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