- 135 Posts
- 203 Comments
संघ के रगं मे गहरे तक रगें नरेन्द्र मोदी ने देश के चुनावी रगंमंच पर
आने के बाद जब सब का साथ , सब का विकास का नारा दिया था तो तमाम लोगों के
साथ धर्मनिरपेक्षता की आवाज़ उठाने वालों को इस पर सहज भरोसा नही हुआ था
।लेकिन संघ के प्रचारक और भाजपा नेता से प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी
ने जब हेडगेवार ,गोवलकर और वीर सावरकर को छोड़ कर गांधी और नेहरू के
सहारे आगे बढ़ने की कोशिश की तो देश के 81 करोड़ मतदाताओं को एक नई रोशनी
दिखी ।एक उम्मीद जागी थी कि अब राजनीति का पुराना तौर तरीका बदलेगा ,
वोट बैंक की राजनीति बदलेगी , देश का विकास होगा ,भ्रष्टाचार कम होगा ,
युवाओं के लिए नौकरी के अवसर पैदा होगें ,मंहगायी कम होगी और बहुत कुछ
रफ्तार से होगा ।लेकिन अब महज़ दो सौ दिन बाद ही उनके सुशासन के दावों
,बदलाव के वायदों और विकास के नारों पर धर्म की राजनीति या यूं कहें कि
संघ का ऐजेंडा हावी हो गया ।संघ परिवार के इशारे पर पहले ‘लव जेहाद’ को
उछाला गया । फिर गांधी, नेहरु, पटेल, विवेकानंद और अलीगढ़ मुस्लिम
विश्वविद्यालय से जुड़ी राजा महेंद्र प्रताप की विरासत पर विवाद पैदा किया
गया ।संघ की हां मे हां मिलाने वाले नेताओं ने इन मामलों मे भड़काऊ
शब्दावली का प्रयोग किया ।वहीं अंतरराष्ट्रीय ख्याती के दर्शन ग्रन्थ
गीता को रष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने का शिगूफा छोड़ा गया।इससे भी आगे बढ़ कर
भाजपा के एक सांसद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे को देशभक्त
और राष्ट्रवादी बता दिया ।अदालत मे लम्बित अयोध्या में राम मन्दिर
निर्माण के मामले में सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन लोग नेताओं जैसे
बयान दे कर हैरानी पैदा कर रहे हैं । आगरा के वेद नगर में राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ के धर्म जागरण प्रकल्प और बजरंग दल ने धर्मांतरण का
कार्यक्रम आयोजित कर ना केवल देश की सियासत को गर्मा दिया बल्कि इस का
रूख भी अपनी मंशा के अनुरूप मोड़ दिया ।कहां विकास योजनाओं को अमली जामा
पहनाने और उनके नतीजों पर मंथन चल रहा था । अब वहीं धर्म की रानीति के
चलते मोदी की जगह सघं के प्रकल्प सुर्खीयां बटोर रहे हैं ।प्रतीक और
अलगाव की राजनीति का दौर शुरू हो गया ।
संसद के जिस सदन मे देश के लोगों को विकास पर बहस की
उम्मीद जागी थी वह विवादों के चलते इतिहास रच रहा है । संसद का मौजूदा
शीत सत्र शायद इतिहास रचने वाला है जिसमे पहली बार अब तक दस दिन के अंदर
ही सत्तारूढ़ पार्टी की राज्य मंत्री निरंजन ज्योति और भाजपा के लोकसभा
सदस्य साक्षी महाराज के अलावा तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी को
अपनी बदज़ुबानी के लिए माफी मांगनी पड़ी ।खुद प्रधानमंत्री ने दोनों
सदनों मे बयान दे कर अपेक्षा की थी कि सभी सदस्य अपनी भाषा का ख्याल
रखें ।इन मुद्दों पर गतिरोध के कारण बीमा संशोधन विधेयक जैसे कई दूसरे
विधेयक अटकते नज़र आ रहे हैं ।संसद के शातकालीन सत्र मे अब ज़्यादा समय
नही बचा फिर भी प्रधानमंत्री और दूसरे वरिष्ठ भाजपा नेताओं की अपील के
बाद भी ना बदजुबानी बंद हो रही है और ना ही धर्मांतरण या कथित घर वापसी
के कार्यक्रम पर रोक लग रही है ।कहा जा रहा है कि खुफिया विभाग ने उत्तर
प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार और केंद्र सरकार को धर्मांतरण के
मसले पर जो सूचना दी है, उसके मुताबिक बड़े दिन यानी 25 दिसंबर को करीब
चार हजार ईसाइयों और एक हजार मुसलमानों का धर्म परिवर्तन कराने की साजिश
रची जा रही है।उत्तर प्रदेश साकार की सख्ती के बाद खबर है कि अलीगढ़ की
जगह किसी दूसरे जिले मे ऐसे आयोजन के करने की बात कही जा रही
है।धर्मांतरण या घर वापसी के कायाक्रमों पर विराम लगाने के बजाय इसका
विस्तार कई अन्य जिलों मे भी करने की मंशा बतायी जा रही है ।
बहरहाल धर्मांतरण हो या संघ परिवार के
दूसरे अन्य ताजा मुद्दे, इनकी वजहों और उसका क्या लाभ भाजपा वा संघ
परिवार को हासिल होगा और धर्मनिरपेक्षता की पैरोकारी करने वाले दलों को
क्या नुकसान होगा यह तो भविष्य ही बताएगा। लेकिन एक बात हैरान करने वाली
है कि आखिर मोदी की भाजपा विकास के नारे पर दिल्ली में काबिज होने और
उसके बाद राज्यों की विधान सभाओं के चुनावों में भी जब मोदी के नारे
‘सबका साथ-सबका विकास’के जादू के चलते बड़ी जीत हासिल कर चुकी है ।यहां
तक कि मोदी के नारों के चलते आम जन ने सभी जातीय और कमोबेश धार्मिक
सीमाओं के बंधन को तोड़ दिया । तो उसके बावजूद संघ और भाजपा के सांसद व
नेता भड़काऊ शब्दावली और उन्माद पैदा करने वाले कामों को अंजाम देने पर
क्यों तुले हैं।जबकि इस राह पर चलने पर विधान सभा उप चुनावों मे उत्तर
प्रदेश ओर बिहार के मतदाता उन्हें नकार चुकें हैं ।
इसमें शक की कहीं कोई गुंजाईश नही कि
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का अब तक छह – सात महीने का
कार्यकाल भारतीय इतिहास के किसी भी दूसरे प्रधानमंत्री से ज्यादा सक्रिय
और जीवंत रहा है । इन चंद महीनों में मोदी ने एक ऐसी शक्सियत से देश को
रूबरू करवाया है जो रोज कुछ न कुछ नया करने कि कोशिश करता है, जिसके पास
नई-नई योजनाओं की भरमार है, जिसके बारे में कहा जाने लगा कि वह कभी थकता
नहीं है ।समाज के अंतिम आदमी के लिए भी सोचने वाला यह प्रधानमंत्री इतना
जागरूक है कि उन्हें अपने किसी कार्यक्रम या योजना मे नाकामी स्वीकार
नही । नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अब तक कई कारणों से सुर्खियां
बटोरी है । इस दौरान उन्होंने बहुत कुछ ऐसा किया जो भारतीय राजनीति मे
नया कहा जा रहा है । मतलब साफ है कि ये ऐसी चीजें हैं जो या तो पहले नहीं
हुईं थीं या उस रूप में नहीं की गईं थीं जिस रूप में मोदी ने उन्हें किया
है ।बहरहाल मोदी के ऐसे नए प्रयोगों की फेहरिस्त लंबी है और ये नये
प्रयोग असलियत मे सार्थक नतीजे देगें या फिर ये योजनाएं और अभि यान भी
अतीत में बनाई गई तमाम योजनाओं की भीड़ का हिस्सा भर बनेगीं ,इसका जवाब
भविष्य के गर्भ मे है ।ये भी सही है कि अब तक के कार्यकाल के दौरान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की ओर से ऐसा कोई काम अंजाम
नही दिया गया जो देश हित या विकास के दायरे से बाहर हो ।वहीं अब तक समाज
के किसी तबके से उपेक्षा की भी शिकायत नही सुनायी पड़ी है ।भाजपा की
राजनीति मे मोदी अकेले चुनाव जीताउू नेता हैं और उनके साथ भारी जन समर्थन
वा पूर्ण बहुमत है । फिर सवाल पैदा होता है कि आखिर उनकी ऐसी क्या
मजबूरी है जो इस तरह की घटनाओं पर रोक नही लग रही है और वह मौन हैं । अब
तक ऐसा भी नही लगा कि वह कमजोर हैं। राजनीतिक हल्के मे इसके कई कारण
गिनाये जा रहे हैं ।कहा जा रहा है कि संघ और भाजपा दोनों उत्तर प्रदेश
मे अपना मिशन 2017 हर हाल मे कामयाब देखना चाहतें हैं ।मोदी की योजनाओं
को अमल मे आने और नतीजे के लिए समय चाहिए ।कहीं ना कहीं नाकामी का डर भी
सता रहा है इस लिए नाकामी की किसी भी गुंजाईश को समाप्त करने के लिए वह
इस तरह के मुद्दे उठा कर सियासी माहौल गर्म रखना चाहतें हैं ।उनका मानना
है कि उत्तर प्रदेश की सियासत का असर बिहार मे भी पड़ेगा ,जहां उत्तर
प्रदेश से पहले विधान सभा चुनाव होने हैं ।
वहीं भाजपा की राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि
मोदी सरकार का ऐजेंडा विकास हो या विकास और हिंदुत्व दोनों साथ-साथ चले
। इस पर संघ भाजपा और सरकार के बीच अंदरखाने बहस शुरू हो चुकी है ।इस बीच
संघ परिवार दूरा शुरू किया गया हिंदुवादी ऐजेंड़ से उपजे विवाद ने इस बहस
को गम्भीर रूप दे दिया है ।विहिप , बजरंगदल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक
संघ से हाल मे भाजपा मे भेजे गये ज्यादातर नेता विकास और ह्रिदुत्व
दोनों को ऐजेन्डे मे शामिल करनेके पक्षधर हैं । जबकि मोदी सरकार के
वरिष्ठ मंत्री और भाजपा नेता फिलहाल ह्रिदुत्व के ऐजेन्उे को किनारे
रख कर 2017 तक प्रधानमंत्री के विकास ऐजेन्डे पर काम करना चाहतें हैं
।खास बात ये है कि हिदायतों और चिंताओं के बाद संघ अपने हिंदुत्व के
ऐजेन्डे पर विचार करने पक्ष मे है ।लेकिन विहिप और बजरंगदल फिलहाल अपने
घर वापसी या धर्मांतरण के मुद्दे से फिलहाल हटने को तैयार नही है ।माना
जा रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र की समाप्ती के बाद समन्वय बैठक मे
इस मसले को हल किया जा सकता है ।उधर धर्मपरिवर्तन के मसले ने समूचे
विपक्ष को खासा सक्रिय कर दिया है ।मोदी सरकार के कार्यकाल मे पहली बार
उसके पास मौका आया है जिसे भुना कर वह अपने को सवांरना चाहता है । ऐसे
में देखना दिलचस्प होगा कि आखिर भाजपा धर्मांतरण के मसले पर आरएसएस और
बजरंग दल पर काबू कैसे पाती है? अगर ऐसा करने में जरा भी कोताही हुई तो
उत्तर प्रदेश और बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले तक उसके
सारे किए-कराए पर पानी फिर सकता है । क्योंकि देश की जनता धार्मिक दर्शन
और सियासत के बीच के बारीक अंतर को बहुत संजीदगी से समझती है।भाजपा को
देश दुनियां मे प्रधानमंत्री मोदी की बदलती क्षवि का भी ख्याल रखना होगा
वर्ना उनको वोट देने वाले 26 करोड़ मतदाताओं को उनके विकासकर्ता के
स्वरूप पर शक होने लगेगा ।
** शाहिद नकवी **
Read Comments