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गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम तट पर बसा प्रयाग अनादि काल
से धार्मिक एवं आध्यात्मिक गतिविधियों की केन्द्र स्थली रहा है। देव और
मानव, सभी ने यहां अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए यज्ञ, तप, दान,
स्नान, दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित किया है। धर्म ग्रंथों में उल्लिखित
अतीत की उन्हीं परंपराओं और उद्देश्यों को जीवंत बनाए रखने के लिए आज भी
हर वर्ष माघ मास में पूज्य शंकराचार्य, धर्माचार्य, आचार्य तथा
साधु-संतों के साथ साधकों और श्रद्धालुओं का एक विशाल समागम होता है,
जिसे पूरा विश्व “माघमेला” के नाम से जानता और पहचानता है। इस माघ मेले
में हर वर्ष देश-विदेश के करोड़ों लोग बिना किसी आमंत्रण और निमंत्रण के
अपनी ज्ञान पिपासा शांत करने तथा मोक्ष प्राप्ति की लालसा में यहां आकर
जप, तप, दान, पुण्य करते हैं। संगम तट पर माघ मास में इस धार्मिक आयोजन
के पीछे तर्क दिया जाता है कि माघ मास में सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश
करता है तो वह पृथ्वी के बहुत करीब होता है, उसी समय चन्द्रमा भी पृथ्वी
के समीप होता है। सूर्य और चन्द्र की पृथ्वी से निकटता का अनुकूल प्रभाव
संगम के जल पर पड़ता है। इन्हीं मान्यताओं के कारण माघ पूर्णिमा तक
त्रिवेणी तट पर माघ मेले का आयोजन प्रारंभ हुआ।सो इस साल भी इलाहाबाद मे
संगम की रेती पर करीब 16 सौ बीघे मे तम्बूओं का शहर आबाद हो गया ।दो
हजार से अधिक धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं के शिविर मे एक महीने के
कल्पवास के लिए पांच लाख से अधिक श्रृध्दालुओ ने घर बार छोड़ कर
तम्बूओं की नगरी मे अपना आशियाना बना लिया है ।लेकिन एक बार फिर वह गंगा
मे आचमन के लिए साफ पानी के मोहताज हैं ।देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी की विकास और सुधार संबंधी उत्साहजनक चिंताओं मे से एक चिंता गंगा
उध्दार से जुड़ी है। गंगा को मां कहकर सत्ता में आई केन्द्र सरकार ने अब
भले ही गंगा और अन्य नदियों की सफाई का बीड़ा उठाया हो। लेकिन गंगा नदी
आज भी उतनी ही मैली है जितनी मोदी सरकार के बनने से पहले थी ।सरकार के
तमाम दावों और योजनाओं के बाद भी इस पवित्र नदी को साफ करने व
श्रृध्दालुओं को स्नान के लायक पानी देने का काम आज तक कागजों से आगे
नही बढ़ सका है । सदियों तक करोड़ों लोगों को मोक्ष का अहसास दिलाने
वाली गंगा आज खुद अपनी ही संतानों से अपने वजूद को बचाने की गुहार लगा
रही है । प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सरकारें सिर्फ माघ मेलें या इस तरह
के दूसरे आयोजनों पर गंगा मे स्वच्छ पानी के लिए अग्नि परीक्षा के लिए
तैयार रहतें है।जिससे समय पर उनका ये मंसूबा भी पूरा नही हो पाता है ।
पौष पूर्णिमा पर पहला स्नान पर्व बीत गया लेकिन गंगा अब भी असमान्य दिख
रही है वहीं साधू –संत और श्रृध्दालु अब भी आचमन के साफ पानी के लिए
परेशान दिख रहे हैं ।तमाम संतों ने गंगा की इस हालत को अपना विरोध भी
जताया है ।गंगा मे पानी की कमी के कारण श्रृध्दालुओं को खड़े – खड़े
स्नान करना पड़ा ।सरकारी आंकड़ों मे ही बताया जा रहा है कि गंगा लज
स्तर 76 मीटर के आसपास ही है । सरकारी तौर पर गंगा व युमना के किनारे
स्थापित उद्योगों को चेतावनी दी गयी थी कि सभी उद्योग जीरो डिस्चार्ज के
नियम का पालन करते हुए परिसर से किसी भी हालत में प्रदूषित उत्प्रवाह
बाहर न जाने दें। कानपुर व उन्नाव में स्थापित टेनरी उद्योगों तथा गंगा
के किनारे स्थापित शराब व चीनी मिलों को विशेष तौर पर सख्त निर्देश थे कि
कारखानों का गंदा पानी गंगा में नहीं गिरना चाहिए।सरकार के सख्त
निर्देशों के बावजूद गंगा में गंदा पानी गिराने के के पुख्ता सबूत मिलने
पर बोर्ड प्रशासन ने कड़े तेवर अपनायें हैं और उद्योगों को बंद करने का
अभियान शुरू किया है।
बताया जाता है कि कानपुर, उन्नाव सहित गंगा के किनारे स्थापित अन्य जिलों
के एक दर्जन से अधिक ब़डे उद्योगों को बंद कराने के लिए प्रक्रिया शुरू
कर दी है। जिन उद्योगों के खिलाफ बंदी आदेश जारी किए गए हैं, उन्हें सील
कराने के लिए संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों को निर्देशित किया गया है।
इसके साथ ही गंगा के किनारे के दो दर्जन से अधिक जनपदों में उद्योगों की
निगरानी के लिए जिला प्रशासन व बोर्ड के अधिकारियों की कमेटी बनाई गई है।
यह कमेटी प्रत्येक सप्ताह अपनी रिपोर्ट बोर्ड प्रशासन व शासन को भेजा
करेगी। इलाहाबाद में जब-जब गंगा नदी में पानी लाल हुआ उसके पीछे मुख्य
रूप से मुजफ्फरनगर, मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली व उन्नाव के चमड़ा
उद्योग, डिस्टीलरी, पेपर मिलें सहित 134 उद्योग जिम्मेदार पाए गए
थे।लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति की कमी के चलते कभी भी इन पर नकेल नही कसी
जा सकी और गंगा मे प्रदूषण फैलाने वाले उद्दोग सरकारों की सुस्ती का
बेजा लाभ उठानें मे लगे हैं जिसके के चलते आज तक गंगा , यमुना और तमाम
भागों में अपना आंचल खोलकर करोड़ों जीवन संवार रही अन्य नदियों की सफाई
का अभियान परवान नही चढ़ सका ।
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा
जो भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2510 किमी की दूरी तय करती हुई
उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग
को सींचती है, देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था
का आधार भी है। 2071 कि.मी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपना सफर
तय करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के
अति विशाल उपजाऊ मैदान का र्निमाण करती है। सामाजिक, साहित्यिक,
सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी
जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट की अधिकतम गहराई वाली यह नदी
भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की
जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौंदर्य और महत्व के कारण
गंगा नदी के प्रति बार – बार विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और
भावुकतापूर्ण जिक्र किया गया हैं।
इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पाई ही जाती हैं
मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं। यह कृषि पर्यटन साहसिक
खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने
तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक
स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। गंगा नदी विश्व
भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। गंगा जल में यह
शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है। जब गंगा हिमालय से नीचे उतरती है तो
इसमें कई तरह की मिट्टी कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियाँं मिल जाती
है। लंबे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी
है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु
होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने
देते हैं। नदी के जल में ऑक्सीजन की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण
क्षमता है। लेकिन गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों के नालों की
गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से गंगा का प्रदूषण पिछले कई सालों से
भारत सरकार और जनता की चिंता का विषय बना हुआ है। औद्योगिक कचरे के
साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को भी बेहद प्रदूषित किया
है। वैज्ञानिक जांच के अनुसार गंगा का बायोलाजिकल ऑक्सीजन स्तर 3 डिग्री
(सामान्य) से बढ़कर 6 डिग्री हो चुका है। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर
प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। गंगा के किनारे बसे छोटे-बड़े करीब
100 शहरों के नालों का पानी बिना ट्रीटमेंट के गंगा में डाल दिया जाता
है। 80 फीसदी कचरा गंगा नदी का सीधे नगर निगमों की नालियों के जरिये आता
है, जबकि इस नदी में फेके गए कुल कचरे का करीब 15 फीसदी औद्योगिक
स्त्रोतों से आता है। 12 से 13 अरब लीटर जल-मल हर दिन गंगा में डाला जाता
है,।
गंगा नदी में प्रदूषण भार को कम करने
के लिए 1985 में स्व राजीव गांधी द्वारा गंगा कार्य योजना का शुभारंभ
किया गया था। कार्यक्रम खूब धूमधाम के साथ शुरू हुआ था । लेकिन इस दौरान
गंगा, यमुना, गोदावरी सहित विभिन्न नदियों के संरक्षण पर 2607 करोड़
रुपये की भारी भरकम रकम भी नदियों में प्रदूषण का स्तर कम करने में विफल
रही ।यही नही भारत सरकार ने गंगा को 2009 में राष्ट्रीय नदी तो घोषित कर
दिया । गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना भी लागू की गई
।गंगा में बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए घड़ियालों की मदद ली गयी
। शहरों की गंदगी को साफ करने के लिए संयंत्रों को लगाया जा रहा है और
उद्योगों के कचरों को इसमें गिरने से रोकने के लिए कानून बने हैं। बावजूद
इसके इन नदियों में आज भी प्रदूषण का स्तर चिंताजनक है और इतना सबकुछ
होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हुए हैं । इसके साथ
ही धार्मिक भावनाएँ आहत न हों इसके भी प्रयत्न किए जा रहे हैं। 2007 की
एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति
करने वाले हिमनद की 2030 तक समाप्त होने की संभावना है। इसके बाद नदी का
बहाव मानसून पर आश्रित होकर मौसमी ही रह जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने गंगा सहित अन्य कई नदियों की सफाई को अपनी सरकार की प्राथमिकताओं
में रखा है। इसके तहत अलग मंत्रालय का गठन भी किया गया है। मंत्रालय ने
गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए सचिवों की समिति बनाकर इसका खाका
तैयार करना शुरु कर दिया है। केंद्रीय बजट 2014-15 में 2,037 करोड़
रुपयों की आरंभिक राशि के साथ नमामि गंगे नाम की एकीकृत गंगा संरक्षण
मिशन परियोजना शुरु की गई है । तमाम कवायदें चल रही हैं, पर यह बेहद
जरूरी है कि गंगा सफाई अभियान पर हो रहे खर्च की मॉनीटिरंग हो और
जबावदेही तय हो। यदि अधिकारी, मंत्री और कर्मचारी सही तरीके से ईमानदारी
से अपना दायित्व पूर्ण करते, तो आज गंगा को प्रदुषण मुक्त बनाया जा सकता
था। आज आवश्यकता है कि गंगा की निर्मलता के लिए चलाए जानेवाले अभियानों
को केवल चर्चा और विवाद का मुद्दा न बनाया जाए, वरन इस मिशन को गंगापुत्र
होने के नाते सरकार, समाज और देशवासियों को अंगीकृत करना होगा।अगर जनता
और सरकार ने अब भी सामूहिक प्रयास किये तो वह दिन दूर नहीं जब गंगा फिर
से अपने गौरव को प्राप्त करेगी और करोड़ों लोगों के लिए वास्तव में
मोक्षदायिनी बनेगी ।
** शाहिद नकवी **
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