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उम्‍मीदों की बुलंदी पर भारतीय गणतंत्र

Shahid Naqvi
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जन और तंत्र ने भारतीय गणतंत्र का जो पौधा रोपा था वह आज वट वृक्ष बन कर शान से खड़ा है ।साढ़े छह दशक के गणतंत्र के ठाठ और उसकी ताकत देख कर आज हर भारतीय का सीना चौड़ा और सिर गर्व से ऊंचा है । 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान ने अपनी प्रथम अंगडाई ली थी, इस जबरदस्त उम्मीद के साथ कि भारतीय संविधान अपने निर्माताओं की कसौटी पर खरा सिद्ध होगा।हर भारतीय का गौरव गायन है।हमारा संविधान इतिहास की दावात से स्याही लेकर, भूगोल की कलम से वक्त की स्लेट पर भविष्य के पाठ लिखता है और लिखता रहेगा । इस राष्ट्रीय किताब में सभी धर्मों, विचारधाराओं और अनुभवों का अक्स है, द्वन्द्व नहीं है । भारतीय संविधान देश के मनीषियों और असाधारण देशभक्तों की देन है। संविधान की संरचना एक लम्बे, जीवन्त तथा सार्थक संघर्ष के नतीजे रूप मे आयी है । संविधान की लचीली और सर्वजनिक व्यवस्थाओं में हर उस प्रश्न का उत्तर मौजूद है जिसकी व्यवस्था हमारी अपेक्षाकृत अधिक योग्य तथा देशभक्त बुजुर्ग पीढ़ी ने कर रखी है ।
राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी, कूटनीतिक व सामरिक दृष्टि से भारत अब काफी सक्षम भी हो गया है। विदेशी पूंजी निवेश का दरवाजा खुलने या कहें उदारीकरण की नीति से तो भारत में जबरदस्त बदलाव आया है। सूचना क्रांति, सेवा क्षेत्र का विस्तार, खाद्यान्न उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भरता, सैन्य ताकत में विकसित राष्ट्रों के हम बगलगीर है। अंतरिक्ष मे तो हम मंगल पर छलांग लगा कर अपनी ताकत पर इतराने वाले चीन और अमेरिका को भी चुनौती दे चुके हैं । भारतीय गणतंत्र ने अत्यंत कामयाबी के साथ 16 आम चुनाव आयोजित किए। संवैधानिक भारतीय गणतंत्र के तहत हमारा राष्ट्र, विश्व पटल पर एक जबरदस्त आर्थिक ताकत के तौर पर स्थापित हुआ। आतंकवाद की बर्बर चुनौतियों का मुकाबला करते हुए स्वयं को न केवल विखंडित होने से बचाया और बल्कि मजबूत और मुस्तहक़म बनाया।पिछले साढ़े छह दशक मे देश को अनेकों आंतरिक और बाहरी आपदाओं से जूझना पड़ा है ।इस दौरान हमें अपने पड़ोसियों सं बड़े खट्टे अनुभव मिले और उनकी बदनियत के चलते देश को चार लड़ाईयां भी लड़नी पड़ी ।कई अलगाव वादी संगठनों का सामना करना पड़ा और अनेकों नाकाम आतंकवादी हमलों का मुहं तोड़ जवाब दिया ।भारतीय सेना के वीर सपूतों ने सीमाओं पर अपना लहू बहा कर सीमाओं के भीतर जीवन को मुस्‍कराने और फूल खिलने का अवसर दिया है ।ऐसे सपूतों को गर्व के साथ समाम ।यही वजह है कि भारत की सेनाओं की ताकत का जब आंकजन किया जाता है तो वह दुनियां के दस ताकतवर देशों के साथ खड़ी नजर आती है ।आर्थिक क्षेत्र मे भी देश ने काफी तरक्‍की की है ।करीब बीस सल पहले देश मे विदेशी मुद्रा की कमी थी लेकिन आज हमारे पास करीब तीन सौ बिलिसन डालर्स का विदेशी मुद्र का भण्‍डार है ।तकनीकि क्षेत्र मे भारत दुनियां के अग्रणी देशों मे गिना जाता है ।पिछले कई सालों से जब विश्‍व के अनेक देश आर्थिक झंझवातों का सामना कर रहे हैं तो भारत तरककी के रास्‍ते पर आगे बढ़ता जा रहा है ।
जोश और प्रतिभा से भरी युवा शक्तियों से लैस , देश अपनी आंकाक्षाओं की पूर्ति के लिए अब किसी भी सीमा को तोड़ने को आतुर है। वे तेजी के साथ नए-नए विषयों पर काम कर रही है, जिसने हर क्षेत्र में एक ऐसी प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील पीढ़ी खड़ी की है, जिस पर दुनिया अचम्‍भित और हलाकान है। सूचना प्रौद्योगिकी, फिल्में, कृषि और अनुसंधान से जुड़े क्षेत्रों या विविध प्रदर्शन कलाएँ हर जगह भारतीय प्रतिभाएँ विश्‍व पटल पर अपनी जगह बना रही हैं। शायद यही कारण है कि भारत की तरफ देखने का दुनिया का नजरिया पिछले एक दशक में बहुत बदला है। ये चीजें अनायास और अचानक घट गईं हैं, ऐसा भी नहीं है। देश के नेतृत्व के साथ-साथ आम आदमी के अंदर पैदा हुए आत्मविश्वास ने विकास की गति बहुत बढ़ा दी है। भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता की तमाम कहानियों के बीच भी विश्वास के बीज धीरे-धीरे एक वृक्ष का रूप ले रहे हैं।शायद इसी का नतीजा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भारतीय गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में चार साल के अंतराल पर दूसरी बार नई दिल्ली का दौरा करने जा रहे हैं।जबकि आजादी के इन 67 सालों में सिर्फ छह अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने ही भारत का दौरा किया है।वैसे तो विश्व के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र के बीच शीर्षस्तरीय बातचीत भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के 1949 में किए गए अमेरिकी दौरे से शुरू हुई थी। लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति को भारत दौरा करने में 10 साल लग गए। डेविट डी. आइजनहॉवर दिसंबर 1959 में भारत आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे।
इस सबके बावजूद ये नही कहा जा सकता कि सब कुछ अच्छा है और करने को अब कुछ बचा ही नहीं। अपनी स्वभाविक प्रतिभा से नैसर्गिक विकास कर रहा यह देश आज भी एक भगीरथ की प्रतीक्षा में है, जो उसके सपनों में रंग भर सके। उन शिकायतों को हल कर सके, जो आम आदमी को परेशान और हलाकान करती रहती हैं। हमारा यह गणतंत्र, अब तक किन आकांक्षाओं पर खरा उतरा और कौन सी आकांक्षाएँ अधूरी रह गईं यह जानने का समय अब आ गया है।आजादी के बाद महात्मा गांधी ने ‘मेरे स्वप्नों का भारत’ की कल्‍पना की थी, यानी “ऐसा भारत जिसमें गरीब से गरीब भी यह समझेगा कि यह उसका देश है, जिसके निर्माण में उसका भी हाथ है…. वह भारत जिसमें सभी समुदाय पूर्णतया समरस हो कर रहेंगे. ऐसे भारत में अस्पृश्यता के शाप या नशीले पेय और जहरीले द्रव्यों के लिए कोई स्थान नहीं होगा. स्त्री और पुरुष समान अधिकारों का उपभोग करेंगे.’’।बस यहीं से देश के तंत्र से सवालों का सिलसिला शुरू होता है । गणतंत्र का प्राण जनमत है, लेकिन आज अगर गम्‍भीरता से देखें तो गण पर तंत्र पूरी तरह हावी है ।यहां तंत्र की नजर मे जनमत अमूमन भीड़तंत्र की मानसिकता लिए हुए दिखता है ।इसी लिए भारतीय जनमत अब तक उन मूल्यों से शासित और सिंचित नहीं है जो ज़म्हूरियत की ज़िंदगी के लिए ज़रूरी है।
आजादी के इन 67 सालों के शानदार और लमबे सफर मे बड़ी कामयाबियों के बाद भी कई समस्‍याऐं जस की तस है । कृषि क्षेत्र में हम पिछड़ रहे हैं। वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति कृषि जोत उपलब्धता 0.46 हेक्टेयर थी, जो मौजूदा समय कम हो गयी है । देश में आज भी करीब 53 प्रतिशत आबादी भुखमरी और कुपोषण की शिकार है। भारत के डेढ़ करोड़ बच्चे कुपोषित होने के कगार पर हैं।दुनियां की करीब 27 फीसदी कुपोषित आबादी भारत में है। देश में 58 हजार करोड़ का खाद्यान , भण्डारण और आधुनिक तकनीक की कमी की वजह से बरबाद हो जाता है। यह कैसी विडम्बना है कि कृषि आधारित व्यवस्था वाले देश , भुखमरी और कुपोषण में विश्व में 119 देशों में 94 वाँ स्थान रखता हो। गरीबी और विषमता घटने के बजाय बढ़ गई है।एक रपट के मुताबिक भारत में 37.2 प्रतिशत लोग बहुत गरीब हैं। पिछले वर्षों में करीब 11 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं।वहीं आज भी करीब 45 करोड़ लोग महीने भर का गुजारा 447 रुपये के आसपास पर कर रहे है। अब तक गांवों का विकास नही हो सका और ग्रामीण भारत के केवल 29.20 फीसदी लोगों को ही पक्‍के मकान नसरब है ।जबकि देश के शहरों मे 77.70 फीसदी लोग पक्के मकान में चैन की नींद सोतें हैं ।वहीं शहरों के 80 फीसदी से अधकि लोगों को पीने का पानी उपलब्ध है।लेकिन गांव जहां भारत का दिल बसता हैं वहां केवल 55 फीसदी लोगों को ही पीने का पानी नसीब हो रहा है।ग्रामीण भारत का एक बड़ा हिससा आज भी अंधेरे मे रात गुजारता है ।देश की साकारें अखबारों के जरिये दावा करती हैं कि प्राथमिक कक्षाओं में 90 फीसदी दाखिले हो रहे हैं लेकिन उसके उलट युवाओं का एक तिहाई हिस्सा अनपढ़ है और प्राथमिक स्तर की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पा रहा है। जिस युवा भारत की तस्वीर पेश की जा रही है वह सूचना तकनीक कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, मैनेजमेंट आदि की शहरी दुनिया में जीने वाले युवाओं की तस्वीर है। भारत के गाँवों तथा शहरों की झोंपडपट्टियों में रहने वाले 90 फीसदी युवाओं से इसका कोई वास्ता नहीं है।सेहत के मामले मे भी हम जनसंख्या मानदंडों के अनुसार 20 हजार से अधकि उपकेंद्रों पांच हजार के करीब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और करीब ढ़ाई हजार समुदाय स्वास्थ्य केंद्रों की कमी से जूझ रहें है।यही नही देश भर के अस्‍पतालों मे आज भी डॉक्टरों एवं नर्सों की भारी कमी है। जिस देश में प्रतिदिन एक हज़ार लोग रोग से मरते हों, उस देश की सरकार जीडीपी के कुल खर्च का केवल एक फीसदी ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है।
देश की जनता एक ओर महंगाई का शिकार है तो दूसरी तरफ सरकारें जनता की कमाई से अपना खजाना भर रही है ।वहीं आज देश की अखंडता को खुली चुनौती देश के भीतर और बाहर से दी जा रही है। माओवादी भारत को आंखें दिखा रहे हैं तो कई राज्यों में नक्सली सुरक्षाबलों पर हमले कर नृशंस हत्याएं कर रहे हैं। पाकिस्तान आतंकवाद के दानव के रूप मे सक्रिय हैं। चीन, पाकिस्तान से सांठगांठ हमारी भूमि पर अनाधिकृत कब्जा करके हमें खुली चुनौती दे रहा है।देश की सत्‍ता मे आये बड़े बदलाव के बाद आज हर कोई एक नई सुबह और नई उम्‍मीद के साथ देश के नेतृत्‍व की ओर देख रहा है।करूों कि आज भारतीय लोकतंत्र जहां खडा है वहां से उसे बहुत आगे जा कर विश्‍व की महा शक्‍ति बनने तक का सफर तय करना है ।
** शाहिद नकवी *

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