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पाकिस्तान से लेकर फ्रांस , सीरिया ,इराक ,आफगानिस्तान और नाईजीरिया
सहित दुनियां के तमाम देशों मे बहता खून आखिर क्या कह रहा है ? इंसानियत
के दुश्मन पंथ का नकाब पहन कर हर ओर इंसानों के खून की होली खेल रहे हैं
। 21 वीं सदी जो तरक्की की सदी मानी जा रही है उसमे आंतकवाद का खतरा और
गहरा हो रहा है। अपने ही संप्रदाय बंधुओं का खून बहाने की वृत्ति भी देखी
जा रही है। वे राजसत्ता और समाज दोनों को चुनौती दे रहे हैं।इंसानियत
खड़ी सिसक रही है।इस मामले मे दुनियां के कई देशों की तस्वीर हैरान करने
वाले हैं लेकिन इससे निजात पाना कठिन दिखता है। पाकिस्तान में तो आतंकवाद
एक श्राप बन चुका है और किसी को नहीं मालूम कि इसका अन्त न जाने कहां जा
कर होगा । पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने सत्ता संभालने के
बाद आतंकवाद के सफाए को अपनी सरकार की प्राथमिकता घोषित करते हुए कहा था
कि आर्थिक विकास के लिए शांतिपूर्ण वातावरण का होना बहुत आवश्यक है
।लेकिन उनकी सरकार बनने के बाद से वहां आये दिन जिस आतंकवादी कत्लेआम कर
रहें है या पेशावर मे मासूम बच्चों का जो कत्लेआम हुआ और अब सिंध
प्रांत के शिकारपुर मे जो कुछ हुआ उससें तो लगता है कि शरीफ जो कुछ कहतें
हैं उस पर अमल नही होता है ।इससे जाहिर होता है कि पाकिस्तान मे अब
राष्ट्रीयता पर पंथ का विचार भारी पड़ रहा है। पंथ की इसी उग्रता ने
राष्ट्रों को शर्मशार किया है।पेरिस मे तो कार्टून छापने की सजा दी गयी ।
लेकिन इसका जवाब कौन देगा कि पेशावर के स्कूली बच्चों का और शिकारपुर
मे अल्लाह की इबादत करने जा रहे नमाजियों का क्या कसूर था ? वह तो जुमे की नमाज अदा करने के लिए एकत्र हुये थे ।जहां 60 से अघिक लोगों को उन्ही हाथों ने मौत के घाट उतारा जो खुद इबादत अल्लाह वाले होने का दावा करतें हैं
।आखिर वह कौन से और किस इस्लाम की रक्षा कर रहे हैं ? क्यों कि
इस्लामी दर्शन और पवित्र किताबों मे बेगुनाहों का खून बहाने की साफ
मनाही की गयी है ।इंसान की जिंदगी की भी बड़ी अहमियत बतायी गयी है ।फिर
भी वह कबीलाई युग की तरह बर्बरता पर उतारू हैं ।इसका जवाब मुस्लिम
उग्रपंथियों दूारा गढ़ी इस्लाम की राजनीतिक व्यंजना है जो हर समय काल
मे की जाती रही है ।ऐसे व्यंजना करने वाले इस्लामी चरित्र से दूर सिफ्र
सत्ता और अपना मकसद हल करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार
रहते है ।
दरअसल इस समय दुनियां मे जितने धर्म और
धार्मिक संगठन ,धर्म के नाम पर राजनीतिक रूप से सर्किय हैं ,उन सब का एक
ही नारा है कि यह धार्मिक पुर्नजागरण का दौर है ।यह नारा चूंकि
लगानेवालों के चरित्र और धर्म के प्रारम्भिक उपदेशों के चरित्र से मेल
नही खाता है । इस लिए उन्हें धार्मिक क्षितिज पर सवेरे की लालिमा पैदा
करने के लिए अपने खून की सुर्खियों के बजाय दूसरों के खून की सुर्खी की
जरूरत होती है ।लगता है कि इन तथाकथित मजहब के पैरोकारों को शायद ये नही
मालूम की महापुरूषों को अपने धर्मो को फैलाने के लिए बड़े कष्ट सहने पड़े
हैं ।ईसा मसीह सूली पर चढ़े तब ईसाई धर्म के सवेरा का उदय हुआ । हजरत
मोहम्मद पत्थरों से लहूलुहान हुये तब इस्लाम धर्म के सवेरा उदय हुआ
।गौतम बुध्द ने राजपाठ छोड़ कर जंगलों की खाक छानी तब जा कर बौध्द धर्म
का सवेरा उदय हुआ ।इसी तरह रामचंद्र जी की पूरी जिंदगी कुर्बानी और
परीक्षा की थी तब जा कर ह्रिदू धर्म का सवेरा उदय हुआ । भैतिक आपूर्ती के
लिए चाहे धर्म के नाम पर सिध्दांत गढ़े जायें या व्यवस्था के नाम पर
,सब का लक्ष्य एक ही है यानी इंसान पर इंसान की सत्ता और उसके पर्दे मे
अपने लिए सुविधा ।ऐसे तमाम दर्शन और तरीकों से इंसानियत को ही नुकसान
पहुंचता है ।इस्लाम का वास्तविक रूप वह है जो सूफी संतों के यहां आज
भी नजर आता हैं ।जहां सत्ता के लिए दौड़ तो दूर की बात है ,सत्ता से
निकटता भी नही देखी जा सकती है ।वहां नैतिकता है, चरित्र है और भेदभाव
रहित मानव सेवा है ।इसी लिए सूफी संतों के यहां न तो किसी प्रकार की
आस्था का टकराव है और न ही संस्कृति का ।वहां हर प्रकार की इंसानी
विभिन्नताऍ नतमस्तक नजर आती हैं ।इसकी मिसाल सूफी संतों की वह खानकाहें
हैं जिनका आदर मुस्लिमों से ज़्यादा गैर मुस्लिमों के दिलों मे है और
उनकी रक्षक भी गैर मुस्लिम सरकारें ही हैं ।
जहां तक सवाल पाकिस्तान का है तो वहां की
आवाम से लेकर सियासत तक आतंकवाद को तौलने के तराजू अलग अलग हैं । अच्छे
और बुरे आतंकवाद के पलड़ों में तोलने की मानसिकता है ।आतंकवादी जब
पाकिस्तान सरकार और हुक्मरानों को नुकसान पहुंचाऐं तो वह आतंकवाद हुआ ।
अगर भारत या किसी दूसरे देश मे जा कर यही आतंकी बर्बता करें तो मुसलमानों
के हक की लड़ाई कहा जाता है ।दरअसल पाकिस्तान में राजनीति, नस्लवाद और
आतंक आपस में गुंथे हुए हैं। आतंकियों से फायदे या नुकसान के बिना पर
उनकी अच्छाई और बुराई मापी जाती है। आतंकी गुटों को किसी ना किसी वजह से
एक तबके से सामाजिक मंजूरी मिल जाती है जो उनके लिए आक्सीजन बनती है।
यहां तक की पाकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी पॉलिसी की एक पुरानी रिपोर्ट
में भी उग्रवादियों को स्थानीय समर्थन की बात मानी गई है। इस बात से कतई
इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान में आवाम का बड़ा हिस्सा धर्म और
नस्ल के नाम पर बांटने वालों का शिकार है। फिरका परस्ती की इसी आबो हवा
में वहां आतंकी संगठन फल फूल रहे हैं । ना सिर्फ अतिवादी संगठन बल्कि
वहां की राजनीति पार्टियों में भी ये छाप देखी जा सकती है।इलाकों के आधार
पर राजनीतिक पार्टियां का आतंकी गुटों से भी एक अलिखित समझौता है. पेशावर
धमाके से पहले इमरान खान ने तहरीक ए तालिबान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई जरब
ए अजब का विरोध किया था। तहरीक ए तालिबान पश्तून संगठन है और खैबर
पख्तूनख्वा और आदिवासी इलाके फाटा में मजबूत है। ये बात छिपी नहीं है कि
तहरीक ए तालिबान भी इमरान खान पर मेहरबान रहा है।
दुनिया का आठवां सबसे खतरनाक देश पाकिस्तान अब
अपनी ही लगाई आग की लपटों मे झुलस रहा है । भारत को मात देने के लिए जनरल
जिया उल हक ने जिस कट्टरवाद को बढ़ावा दिया वह अब वहां की जनता के खून का
प्यासा हो गया है । वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भारत में धमाकों की
जो साजिश रचनी शुरू की वह आज उसे भारी पड़ती जा रही है । इतिहास गवाह है
कि पाकिस्तान को सन 1947 के बाद से ही भारत की सरहदें खटकने लगी थी और
तभी से सीमा पार से घुसपैठ की कोशिशें भी शुरू हो गयी थी ।कहा जाता है कि
पाकिस्तान ने सोवियत संघ को मात देने के लिए कट्टरपंथियों की एक जमात
बनाई जिसे तालिबान का नाम दिया , शुरू में तो ये आतंकी संगठन पाकिस्तान
के साथ था लेकिन अब पूरी तरह से अलग हो गया है और वहां आतंक का पर्याय बन
गया है । पाकिस्तान के बलूचिस्तान ,पेशावर ,वजीरिस्तान आादि प्रान्त
आंतरिक आतंकवाद के शिकार है और सुरक्षा बल तहरीक ए तालिबान और लश्क ऐ
तोइबा जैसे आतंकी संगठनों से मुकाबलें मे व्यस्त हैं ।खबरों के मुताबिक
इस समय पसकिस्तान मे दो दर्जन के करीब ताकतवर आतंकी संगठन सक्रिय हैं
।यानी बारूद के ढ़ेर पर बैठे होने और बार – बार आतंकी हमलों का शिकार
होने के बाद भी पाकिस्तानी हुक्मरान और राजनीति मे गहरी दिलचस्पी रखने
वाली सेना की रीति नीति मे बदलाव नही आया है । आज भी उस पर आतंकवाद और
आतंकी संगठनों को खाद पानी देने का आरोप लगता है । हर साल हजारों नागरिक
और सेना के जवान गवांने के बाद भी वह आतंकवाद का प्रयोग विदेश नीति के
हथियार के रूप मे करने से बाज़ नही आ रहा है ।आकंड़ों के मुताबिक पिछले
दस सालों में यानी 2001 से 2011 तक 35 हजार पाकिस्तानी आतंकियों के शिकार
होकर जान से हाथ धो बैठे । आज पाकिस्तान में आतंकियों के कई गिरोह हैं जो
हथियारों से लैस हैं और बेगुनाहों की जान लेने में जरा भी नहीं हिकते ,
वे जिहाद के नाम पर खूनखराबा करते हैं और धमाके करते हैं । पाकिस्तान में
साल 2014 मे ही आतंक की घटनाओं की 367 वारदात सामने आईं जिनमें 719
नागरिक और 320 फौजी मारे गए और 1959 लोग जख्मी हुए ।पिछले साल भी पहली
जनवरी से शुरू हुयी आतंकी घटनाऐं साल के आखिरी महीने तक जारी रहीं ।साल
2015 मे तो हालात और खतरनाक नजर आ रहे हैं ।अब तक पाकिस्तान मे आतंकवाद
की कई घटनाओं मे सैकड़ों लोग कत्ल किये जा चुकें हैं ।
हालांकि पाकिस्तानी सेना ने भी
आपरेशन जर्ब ए अज्ब के जरिये पिछले छह महीनों मे 1800 से अधिक आतंकी मार
गिराये हैं और पेशावर हादसे के बाद धरपकड़ भी शुरू हुयी है ।आतंकवादियों
का खातमा करने के लिए बने ‘नेशनल एक्शन प्लान’ भी बनाया गया है । कई
आतंकियों को फांसी भी दी गयी ।लेकिन इससे जेहाद के नाम पर जुनूनी आतंकी
संगठनों के हौसले पस्त नही हुये हैं ।दरअसल पाकिस्तान मे आतंकवाद और
जेहाद मे फर्क ना किये जाने के कारण वहां आतंकवाद की जमीन काफी उपजाउू है
। बहरहाल आलोचनाओं के साथ यह समय मंथन और समझाईश का भी है ।लेकिन सबसे
अधिक आत्ममंथन तो पाकिस्तान को ही करना है ।क्यों कि मजहबी कट्टरता को
बढ़ावा देने वाले तत्व पूरी दुनिया में फैल चुके हैं और इनसे सामान्य
तौर-तरीकों से मुकाबला नहीं किया जा सकता।आतंक के इस रूप से सैन्य स्तर
पर तो लडऩा ही होगा, बल्कि विचारधारा के स्तर पर भी इसके खिलाफ ठोस लड़ाई
छेडनी होगी। जब तक हर तरह की कट्टर विचारधारा पराजित नहीं होगी, तब तक
आतंकवाद को पस्त नहीं किया जा सकता। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए
उदारवादी इस्लामिक वर्ग को भी आगे आना होगा ।आतंकवाद के क्रूरूर चेहरे को
देखते हुए केवल निंदा-आलोचना के स्वरों से काम चलने वाला नहीं है । लोगों
को यह बताया जाए कि कोई भी लड़ाई आतंकवाद के जरिए नहीं लड़ी जा सकती।
आतंकवाद एक विध्वंस है, जो किसी को नहीं छोड़ेगा।उसका पोषण करने वाले को
भी नही बख्शेगा ।
** शाहिद नकवी *
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