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केजरीवाल कैसे बदलेगें दिल्‍ली की तकदीर !

Shahid Naqvi
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केजरीवाल के नेतृत्‍व मे दिल्‍ली मे आम आदमी पार्टी की सरकार ने आकार ले लिया है ।जिस तरह देश ने नरेन्‍द्र मोदी के वादों पर भरोसा कर के उन्‍हें केन्‍द्र की सत्‍ता सौपी थी उसी तरह दिल्‍ली की जनता ने केजरीवाल के लोकलुभावन घोषणा पत्र पर यकीन कर के आप को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे प्रभावी जनादेश दे दिया है ।ये कहने मे हर्ज नही कि दोनों जीतें व्‍यक्‍तित्‍व के करिश्‍में ,जनता मे उनकी छवि और बदलाव के भरोसे से मिली हैं ।मोदी दिल्‍ली के मतदाताओं मे वैसी उम्‍मीदें नही भर सके जैसी नौ महीने पहले भरी थी ।आप आदमी पार्टी जनता को उसकी जरूरत पूरा करने का भरोसा दिलाने मे कामयाब हो गयी ।इस लिए केजरीवाल अपने को जनता मुख्‍यमंत्री मानतें हैं और जिस तरह से उनको कामयाबी मिली उससे यही लगता है कि जनता ने उनको अपना मुख्‍यमंत्री मान लिया है ।लेकिन जनता ने उनको जीत के साथ चुनौतियों का ताज दिया है , इस लिए चुनावों के दौरान जो वादे किये हैं उनको जमीन पर अमल की सच्‍चाई मे उतारने की जिम्‍मेदारी भी केजरीवाल आप की है । अब उन पर जनता की उम्मीदों का भयंकर दवाब है और हर दिन यह सवाल भी खड़ा रहेगा कि वह जनता की इन उम्मीदों को कैसे पूरा करेंगे? कैसे उन सपनों को हकीकत में बदलेंगे जो उन्होंने जनता को दिखाये हैं? कैसे बदलेगें इंडिया गेट से दूर आबाद दिल्‍ली की तकदीर और तस्‍वीर? तकदीर और वह भी तब जब उन्होंने दिल्ली की जनता से एक नहीं मुश्‍किल से दिखने वाले कई वायदे किए हैं।दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री के नाते केजरीवाल के सामने ना केवल चुनावी वादों को निभाने का सवाल है वरन भाजपा के वर्चस्‍व वाली एमसीडी से अपने ऐजेन्‍डे को लागू करवाना भी बड़ी चुनौती है ।लोकपाल बिल ,बिजली कम्‍पनियों के आडिट ,दिल्‍ली को पूर्ण राज्‍य का दर्जा देने जैसे कई मुद्दों पर उनका रूख केन्‍द्र सरकार से मेल नही खाता है ।उधर हरियाणा की भाजपा सरकार ने पहले ही साफ कर दिया है कि हमारे राज्य के पानी पर ही दिल्ली की आप सरकार निर्भर न रहे ।इसका मतलब तो यही हुआ कि पानी के लिए दिल्‍ली को हिस्‍सा देने के मामले मे वह पेंच पैदा कर सकती है ।अगर ऐसा होता है तो फिर पानी के लिए कोई दूसरा विकल्‍प खोजना होगा ।दिल्‍ली की बिजली की जरूरत भी दूसरे राज्‍यों के भरोसे ही पूरी होती है ।उसे अभी ज्‍़यादातर बिजली हिमांचल और उत्‍तराखण्‍ड जैसे राज्‍यों से मिलती है ।आप पर जनता के भरोसे को चोट पहुंचाने के लिए हरियाणा की तर्ज पर ये राज्‍य सरकारें पेंच फंसा सकती हैं ।
एक साल पहले अपनी 49 दिनों की सरकार मे आप ने दिल्ली के लोगों को बिजली की दरों में जो रियायत दी थी उसके लिए बिजली कंपनियों को 200 करोड़ रुपये की सब्सिडी दिये जाने की बात कही गयी थी । अगर इस बार भी दिल्ली की केजरीवाल सरकार अपने चुनावी घोषणापत्र के मुताबिक, लोगों को बिजली और पानी पर सब्सिडी देती है तो एक अनुमान के मुताबिक एक साल में इस पर करीब 1400 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है ।आप ने चुनाव मे जनता से दिल्‍ली मे वैट की दरें देश मे सबसे कम करने का भी वादा किया है । वैट आज कल राज्‍य सरकारों की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया होता है ।अकेले पेट्रोल पर वैट से ही हर महीने दिल्‍ली को करोड़ो की आय होती है ।वैट अगर कम हो जाये तो जनता को मंहगाई से सचमुच राहत मिल सकती है ।इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र मे बिजली-पानी के अलावा फ्री वाईफाई, 500 स्कूल, 20 कॉलेज, 15 हजार कैमरे, हर बस में महिला सुरक्षा के लिए एक गार्ड, चार हजार डॉक्टरों की भर्ती, 15 हजार पैरामेडिक्स स्‍टाफ , दो लाख सार्वजनिक शौचालय , नया बिजली घर और आठ लाख युवाओं को नौकरी जैसे कई वायदे भी किये हैं ।सो इन्‍हें भी पूरा करने का दबाव जनता के मुख्‍यमंत्री पर होगा ।आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि आप की सरकार को अपने सिर्फ चार बड़े वादे पूरा करने के लिए दो हजार करोड़ रुपये से ज्‍़यादा की जरूरत होगी, जबकि सरकारी खजाने की हालत बहुत बेहतर नही है ।एक अनुमान के मुताबिक पानी मुफ्त देने के लिए 200 करोड़ , फ्री वाई फाई के लिए भी इतनी ही रकम चाहिए ।जबकि इसके अलावा सरकारी स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, रोजगार हब, यमुना के सौंदर्यीकरण, सार्वजनिक परिवहन के बेड़े में विस्तार, हजारों अवैध कालोनियों में बुनियादी सुविधाओं के विकास, किफायती आवास जैसे दीर्घकालिक कार्यक्रम को हकीकत मे बदने के लिए हजारों करोड़ की रकम खर्च होगी । महिला सुरक्षा दस्‍ते के सदस्यों के वेतन पर भी पैसा खर्च करना होगा । फिलहाल दिल्‍ली का कुल बजट 36-37 हजार करोड़ के आस पास ही है ऐसे मे सरकार के पास ज्यादा कुछ तुरंत नया करने की गुंजाइश नहीं है।
राष्ट्रीय राजधानी होने की वजह से दिल्ली का दर्जा एक अलग तरह का है और इसके कारण शहर राज्य के चार स्थानीय निकायों, दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली पुलिस जैसे प्रमुख संगठनों का नियंत्रण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के हाथ में है।दिल्ली की पूरी जमीन पर भी प्रदेश सरकार का अधिकार नहीं है, इसलिए झुग्गीवासियों के लिए स्थायी मकान देने के वादे अमल करने में दिक्कत है। केजरीवाल और उनकी टीम भी इस बात को जानती है कि दिल्ली की पौने दो करोड़ जनता से किए वायदों में से ज्यादातर को पांच साल में भी पूरा नहीं किया जा सकता। तभी तो प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक से हुई मुलाकात में दिल्ली को राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग छेड़ दी गई है ।खुद केजरीवाल ने भी चुनाव परिणाम आने के अगले ही दिन शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू से मुलाकात करना मुनासिब समझा।वह अब तक प्रधानमंत्री सहित केन्‍द्र सरकार के कई मंत्रियों से मुलाकात कर के दिल्‍ली के लिए केन्‍द्र की सहायता मांग चुकें है ।
जन आकांक्षाओं की सियासत को करीब से समझने वाले अरविन्‍द केजरीवाल ने अब सत्‍ता मिलने के बाद आम सहमति की राजनीति करने का फैसला किया है ।जबकि दिल्‍ली की विधान सभा मे इस बार उनको विपक्ष के विरोध का भी सामना नही करना पड़ेगा ।एक तरफ ज़बरदस्त चुनावी जीत के बाद आम आदमी पार्टी के विधायकों की एक बड़ी भीड़. दूसरी तरफ विपक्ष के खेमे में केवल भारतीय जनता पार्टी के तीन विधायक।।शायद सदन मे ये आप सरकार के सामने उतनी चुनौती ना पेश कर सकें ।उधर भाजपा और केन्‍द्र की मोदी सरकार पर भी करारी हार के बाद अहसमति के बावजूद आप सरकार को पूरी मदद करने का दबाव होगा ।क्‍यों कि मीडिया के जरिये केजरीवाल ने अपनी सरकार की सीमाओं को बताना शुरू कर दिया है ।आप के रणनीतिकारों का कहना है कि उनका ऐजेन्‍डा जनता की सेवा करना है ,अब ऐसे मे अगर केन्‍द्र रोड़ा अटकायेगा तो इसे भी जनता देखेगी ।शायद वक्‍त की नजाकत को समझते हुये ही अब तक केन्‍द्र की ओर से भी सकारात्‍मक बयान ही आये हैं ।प्रधानमंत्री मोदी के अलावा केन्‍द्रीय कानून मंत्री डी वी सदानंद सहित कई नेताओं ने आप को सरकार चलाने के हर सम्‍भव सहायता का भरोसा दिलाया है । अगर जितने वायदे केजरीवाल ने किए हैं अगर उसके आधे भी ईमानदारी से पूरा कर सकें तो शायद दिल्ली की जनता को नागवार ना लगेगा इसकी एक वजह यह भी है कि आम आदमी को उनमें अपना अक्स दिखाई देता है । उनका साधारण पहनावा और बोलचाल की भाषा में बात करना उस तबके को पसंद है, जिससे बड़े दल वालों ने जुड़ने की कोशिश तो खूब की, मगर सही मायने में जुड़ नहीं पाये । अन्य दलों की तरह केजरीवाल ने भी जनता को सुनहरे सपने दिखाए लेकिन देश की पारंपरिक राजनीति से हटकर , उन्होंने दिग्गज दलों को नए दौर की राजनीति सिखाई और लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती पेश की है ।बहरहाल अभी बहुत सी बातें भविष्‍य के गर्भ मे है लेकिन लगातार दूसरी बार केजरीवाल की कामयाबी से ये संकेत जरूर मिल गये कि देश की राजनीति अब मजहब ,जाति और इलाके के संकीर्ण दायरे से बाहर आ कर जनआकांक्षाओं की सियासत की तरफ चल पड़ी है । तमाम नेताओं का मानना है कि आप की जीत देश की राजनीति में बदलाव लेकर आएगी। इन नतीजों का अक्‍स उत्‍तर भारत के राज्‍यों और पश्‍चिम बंग्‍गाल पर भी पड़ सकता है ।आम आदमी पार्टी दूसरे प्रदेशों मे अपने विस्‍तार के बारे मे सोच सकती है ।बिहार मे तो चुनावी बिसात बिछ चुकी है , जहां भाजपा ने बड़ी उम्‍मीदें बांध रखी हैं ।इन चुनावों मे भी नरेन्‍द्र मोदी अपनी शैली मे ही लड़ना चाहेगें , लेकिन इस बार जब वह मैदान मे उतरेगें तो विजय गाथा वाले नायक नही होगें ।दरअसल भाजपा की हार ने समान विचारधारा वाले गैर कांग्रेसी दलों को नई ताकत दी है ।जिन राज्‍यों मे गैर कांगेसी सरकारें हैं वहां के क्षेत्रीय दल जनता को उत्‍साह के साथ विश्‍वास मे लेने की कोशिश करेगें ।आगे और बड़ा नुकसान ना उठाना पड़े इस के लिए भाजपा को अपने सहयोगी संगठनों पर लगाम लगानी पड़ेगी ।इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री जी को भी अपनी चुप्‍पी तोड़नी पड़ सकती है ।
** शाहिद नकवी **

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