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सऊदी अरब के हालिया हज हादसे ने सुरक्षा इंतजाम को लेकर सऊदी अरब के अल सऊद शासकों के लिए राजनीतिक रूप से काफी बेचैन करने वाले और कई गम्भीर सवाल खड़े कर दिये हैं । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सऊदी शासन खुद को कट्टर इस्लाम का पालक और मक्का, मदीना जैसे पवित्र धार्मिक स्थलों का संरक्षक मानता है ।इस लिये ये मुद्दा और संवेदनशील बन गया है ।ये हादसा कोई छोटा मोटा नही है , ताजा हादसे की भयावहता इसी से जाहिर है कि इसमें आठ सौ से अधिक लोग मारे गए और नौ सौ से ज्यादा घायल हो गए। हज के लिए हर साल दुनिया के कोने-कोने से मुस्लिम श्रद्धालु आते हैं। जान गंवाने वालों और घायलों में भी दुनियां के कई देशों के लोग शामिल हैं।ये स्वाभाविक ही है कि राष्ट्राध्यक्षों समेत तमाम देशों के लोगों ने इस घटना पर शोक जताया है। पर इसी के साथ हज के आयोजन के इंतजामात को लेकर भी ईरान सहित कई देशों ने सवाल भी खड़े किये हैं।हर साल हज के दौरान इस्लामी धर्मावलंबियों के सबसे बड़े तीर्थस्थल मक्का में लाखों की भीड़ जुटती है। और भीड़ कई बार उतावली या बेकाबू हो जाती है। मगर यही कह कर सऊदी प्रशासन को बरी नहीं किया जा सकता।क्यों कि हज यात्रियों की भीड़ आकस्मिक नहीं होती और न उनकी तादाद अप्रत्याशित कही जा सकती है।करीब साल भर पहले ही विभिन्न देशों से आने वाले ज़ायरीनों की तादात तय कर दी जाती है ।फिर ये संख्या और कोई देश नही खुद सऊदी सरकार तय करती है ।हर मुल्क में हर एक हज़ार मुस्लिमों पर एक को हज करने का मौका मिलता है ।माना कि आबादी बढ़ने से हर वर्ष हज यात्रियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, लेकिन सऊदी अरब शासन और हज प्रबंधन को इस संख्या की सही-सही जानकारी रहती है। ऐसे में उसे जरूरी प्रबंध करते हुए एहतियाती कदम भी उठाने चाहिए थे। हादसा गवाह है कि वैसा नहीं किया गया। इसमें दो राय नहीं कि सऊदी अरब ने साल-दर-साल हज प्रबंधन और यात्रियों की सुविधाओं को बेहतर बनाने का काम किया है, लेकिन लापरवाही ने उस सब पर पानी फेर दिया लगता है। इसलिए जो कुछ हुआ, उसकी जवाबदेही से सऊदी अरब की सरकार पल्ला नहीं झाड़ सकती।
हज के सुरक्षा बंदोबस्त और दूसरे इंतजामों को लेकर सऊदी अरब की अल सऊद राजशाही की काबलियत भी आज सवालों के घेरे मे है ।दरअसल आस्था के दौरान हुये हादसे कुछ ज़्यादा ही आहत करतें हैं ।बेशक वहां की सरकार ने इसकी जांच के आदेश देने के साथ ही तत्काल इसकी रिर्पोट प्रिंस को देने का निर्देश दिया है ।लेकिन हज पर गये जायरीनों के परिजनों की बातचीत और प्रारम्भिक सूचनाओं के आधार पर ये कहा जा सकता है कि आस्था और उल्लास के मौके को गम में तबदील कर देने वाला यह हादसा अतीत के हादसों से जरूरी सबक नहीं सीखने का ही परिणाम है। सदियों से मुस्लिम कैलेन्डर का ये सबसे बड़ा आयोजन होता रहा है ।हर साल तकरीबन 18 से 20 लाख लोग हज करने के लिये सऊदी अरब पहुंचतें हैं ।इस लिये भारी भीड़ को कोसा जाये या उसे ही भगदड़ की मुख्य वजह माना जाये सही नही लगता ।ऐसे मे प्रभावित कई देशों का ये प्रश्न वाजिब लगता है कि राजशाही के हुक्मरानों ने सुरक्षा बंदोबस्त की सटीक समीक्षा नही की थी ।क्यों कि इस महीने की शुरुआत में ही मक्का में क्रेन गिरने सें 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे। जबर्दस्त भीड़ के अलावा इस पवित्र शहर में जारी निर्माण कार्य, कमजोर संचार तंत्र और अपर्याप्त आपात योजना, सभी की इस हादसे में भूमिका है। सऊदी शहरों में नागरिक जागरूकता का भारी अभाव है और अधिकारियों में भी जिम्मेदारी की कमी है।
सनद रहे कि पिछले 25 सालों मे हज के दौरान विभिन्न हादसों मे चार हजार से अधिक लोग मारे जा चुकें हैं । साल 1990 में हुआ हादसा संगठनों और अधिकारियों की विफलताओं का नतीजा था। लंबी सुरंग में कुचलने और दम घुटने के कारण 1426 लोग मारे गए थे। इस हादसे के बाद सुरक्षा के इंतजाम कड़े किए गए लेकिन सफलता सीमित ही रही। इसके अलावा मीना में एक धार्मिक रिवाज के दौरान कई छोटे बड़े हादसे हो चुके हैं। मीना में “शैतान को कंकर मारने” की परंपरा है. 1998 में करीब 110 लोग इस तरह के हादसे में मारे गए और करीब 180 हज यात्री गंभीर रूप से घायल हुए थे। मीना में कंकर मारने के दौरान काफी अफरा तफरी का माहौल होता है। साल 2001 और 2002 में हुए हादसों में 30 से अधिक लोग मीना में अपनी जान गंवा चुके हैं। साल 2003 में एक भगदड़ में वहां 244 तीर्थयात्रियों की मौत हुई थी। साल 2006 में 363 यात्री कभी लौट कर घर नहीं जा पाए.
सिर्फ भगदड़ ही हादसे की वजह नहीं है। साल 1997 में मीना में टेंटों में लगी आग के कारण 340 लोगों की मृत्यु और 1400 से अधिक घायल हुए। 1991 में सऊदी अरब से नाइजीरिया जा रहा हज यात्रियों का विमान हादसे का शिकार हुआ, इसमें 261 यात्रियों की मौत हुई थी।अपने मजहब की पांच बुनियादी अपेक्षाओं में से इस एक को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या मे मुस्लिम हज़ारों साल से अरब के दुर्गम रेगिस्तान को पार करते हुए रोगों और डाकुओं से मुकाबला करते हुये सऊदी अरब जाते रहें हैं । पवित्र धार्मिक परंपरओं का पालन करते हुए उनका जानलेवा खतरों और प्राकृतिक आपदाओं से सामना हुआ करता था ।सैकड़ों इसके शिकार हो जाते या थकान के कारण मर जाते थे। लेकिन आवागमन के साधनों के विकास के साथ ही सहुलियतें बढ़ी तो रास्ते की तकलीफें कम होने के साथ ही जोखिम भी कम हुये ।एक रिकॉर्ड के मुताबिक सन 1920 में महज़ 58 हज़ार के करीब जायरीनों ने हज किया था ।लेकिन सन 1973 के बाद से हज पर जाने वालों की तादात बढ़ने लगी । सस्ती हवाई यात्रा और विभिन्न देशों से मिलने वाली सुविधाओं के कारण भी हाजीयों की संख्या मे इज़ाफा हुआ । कहा जा रहा है कि इस साल तो 2013 के मुकाबले कम ही भीड़ थी।आकंड़ों के मुताबिक तब 31 से 33 लाख के बीच जायरीन उमड़ आए थे । इसे देखते हुये तब सऊदी सरकार ने देशों के लिए कोटा तय करने की प्रणाली को दोबारा शुरू किया था। आलम यह है कि तमाम देशों मे हज पर जाने की अरजी लगाने वालों की संख्या पिछले 17 सालो मे लगातार बढ़ती जा रही है ।भारत मे ही हज के हज पर जाने के ऐसे हज़ारों ख्वाहिशमंद हैं जिनकी हज पर जाने की तमन्ना तीन साल मे भी पूरी नही हो सकी है ।एक तरह से देखा जाये तो हज सऊदी अरब सरकार की आमदनी का भी जरिया है ।जिससे मक्का में विशाल इमारत बनाने और यातायात-मार्गों को विस्तार देने का काम चल रहा है, ताकि श्रद्धालु तेजी से अपनी मजहबी रवायतें पूरी कर सकें। हो सकता है कि इन विकास गतिविधियों ने अधिकारियों को जायरीनों की तादाद बढ़ाने और सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया हो।ज़ायरीनों के मुताबिक वहां की सरकार धन खर्च करने मे यूं तो कोताही नही बरत्ती है ।लेकिन सऊदी अरब के अधिकारी प्रशिक्षित नहीं हैं और आपातकालीन तैयारियां मौजूदा स्तर के हादसों के लिहाज से पर्याप्त नहीं हैं। कहा जाता है कि उनमें पेशेवर गुणवत्ता की भी कमी है।
हज के लिए मुख्य जगह है मीना शहर है, यह एक सीमित क्षेत्र है और धर्म के अनुसार जो लोग हज करने आते हैं उन्हें इसी क्षेत्र में रहना होता है । मुश्किल यह कि आप इस जगह में कोई विस्तार नहीं कर सकते और बहुत ज़्यादा लोगों को नहीं रखा जा सकता । इसलिए कई देशों के जो हाजियों को मीना से कुछ दूरी पर रखा जाता है ।इस वजह से इनमें से कई नाराज़ भी हो जाते हैं क्योंकि धर्म के अनुसार उन्हें मीना में ही ठहरना होता है । ऐसे में यह एक बहुत बड़ी चुनौती है ।यह इलाका दो ऐतिहासिक पहाड़ों के बीच में है ऐसी स्थिति में यहां ज़्यादा कुछ बदलना भी मुमकिन नहीं है ।ऐसे में ज़ाहिर है कि अगर समझदारी से काम नहीं लिया गया तो आने वाले समय में मुश्किलें और भी बढ़ेंगी, जो बड़ी राजनीतिक चुनौती है । इस बात को तय करना होगा कि यहां अधिकतम कितने लोग आ सकते हैं और उतने ही लोगों को आने की अनुमति दी जाए ।खुद हिन्दुस्तान में डेढ़ लाख लोग हैं जिन्होंने पिछले तीन साल में हज के लिए आवेदन किया है लेकिन उनमे से ज़्यादातर अभी तक वो नहीं आ पाए हैं ।
अब अगले साल भी लोग यहां बड़ी संख्या में फिर से पहुंचेंगे ऐसे में उन्हें इन ग़लतियों को दूर करना होगा । सऊदी शासक ने जांच के लिए एक समिति के गठन का आदेश दिया है। पहले के हादसों की भी जांच के आदेश दिए गए थे। उनका क्या नतीजा निकला और क्या सबक लिए गए? असल बात यह है कि भीड़ प्रबंधन का सबक सऊदी प्रशासन ने ठीक से अब भी नहीं सीखा है। यों हज के मौके पर आग लगने या दूसरी वजहों से भी हादसे हो चुके हैं, पर सबसे ज्यादा लोग भगदड़ के कारण मारे गए हैं। यह सिलसिला तभी थम सकता है जब भीड़ के प्रबंधन और नियंत्रण के कारगर उपाय किए जाएं। लेकिन व्यवस्थित तरीके से रस्म अदायगी के लिए इस भीड़ को अगर नियंत्रित किया गया होता तो हादसा टल सकता था। जाने वाले मार्ग से ही लोग रस्म अदा कर लौट भी रहे थे—ये सूचनाएं तो प्रबंधन तंत्र पर ही सवालिया निशान लगा देती हैं। जैसा कि अन्य धार्मिक स्थलों पर होने वाले ऐसे हादसों में सामने आया है, भीड़ का उतावलापन भी एक बड़ा कारण बनता है। सवाल उठता है कि जब लोग देश-दुनिया से लंबा सफर तय कर ऐसे पवित्र स्थलों पर पहुंचते हैं तो, तब उन्हें आस्था के संग अनुशासन का भी ध्यान क्यों नहीं रखना चाहिए? समझदारी का तकाजा है कि न सिर्फ प्रबंधन तंत्र, बल्कि ऐसे धार्मिक स्थलों पर जाने वाले श्रद्धालु भी भविष्य के लिए जरूरी सबक सीखें। तभी ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति रोकी जा सकेगी। –
** शाहिद नकवी **
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