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बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए दो दौर का मतदान हो चुका है। अब आखिरी तीन दौर के चुनाव के लिए कोई भी पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती । राजधानी पटना सहित नालंदा, वैशाली, भोजपुर, बक्सर और सारण जिलों में 28 अक्टूबर को एक करोड़ 45 लाख से अधिक मतदाता 808 उम्मीदवारों के बारे मे अपना फैसला देगें । इसके बाद 1 और 5 नवंबर को अगले दो चरणें के लिये मतदान होना है ।तीसरे चरण मे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव की अपने –अपने इलाकों मे लोकप्रियता की परख होगी ।नालंदा जहां नीतीश का गृह जिला है तो सारण को लालू की कर्मभूमि कहा जाता है ।वह साल 1977 मे पहली बार सारण से लोकसभा चुनाव जीते थे , इसके बाद उन्हें तीन बार और सारण की जनता ने चुना था ।सारण की दस मे से सात सीटों पर महागठबंधन की ओर से राजद के उम्मीदवार हैं ।वहीं नालंदा जिले की सात मे से छह सीटों पर जदयू के प्रत्याशी मैदान मे हैं ।उधर तीसरा चरण सही मायनों में भाजपा के लिए भी नाक आउट मैच से कम नही है ।क्यों कि पहले दो चरणों में दलितों व पिछड़ों की एकजुटता ने भाजपा को हैरान कर दिया है ।ऐसे में भाजपा की तरफ से पीएम मोदी ने दोबारा मोर्चा संभाल लिया है।आने वाले दिनों मे वह बिहार मे कम से कम 17 रैलियों को संबोधित करने वाले हैं। पहले दो चरण के लिए प्रधानमंत्री ने 9 रैलियां की थीं।स्टार प्रचारक मोदी की तूफानी रैलियों और महागठबंधन के पक्ष मे दूसरे राज्यों के नेताओं की सक्रियता का साफ संकेत है कि अब बिहार में आर-पार की लड़ाई है, और कोई भी पार्टी यहां खतरा नहीं मोल लेना चाहेगी।तीसरे चरण मे सत्ता तक पहुंचने के लिये राजनीतिक दलों ने बाहुबलियों का भी सहारा लेने मे परहेज नही किया ।जाति का कुचक्र ,विकास का नारा ,कुछ दिग्गज नेताओं वा कई नेता पुत्रों का राजनीतिक भविष्य , युवाओं की उम्म्ीद और बाहुबलियों की ताकत सब कुछ इस चरण मे दांव पर है ।
दो चरणें के मतदान के बाद भाजपा को ये बात समझ मे आ गयी है कि बिहार मे चुनाव जीतने का रास्ता जाति के क्षेत्रिय सूबेदारों के बीच से ही हो कर जाता है ।इसी लिये भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में भारी बदलाव किया है। एक तरफ जहां पोस्टर और नारों के जरिए स्थानीय नेताओं को तरजीह दी है, तो वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी पहले से ज्यादा आक्रामक नजर आ रहे हैं।वह अब रैली में नीतीश से ज्यादा लालू पर हमलावर दिखे और वह भी उन्हीं की शैली में। मतलब साफ है कि बीजेपी आरक्षण और दलित समुदाय पर लगातार हो रहे हमलों से हुए नुकसान की भरपाई की कोशिश में जी जान से जुट गई है।इसी रणनीति के तहत भाजपा ने दूसरे चरण के बाद रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के जरिए छोटी छोटी जनसभाएं करके प्रधानमंत्री को खुल कर अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले नेता के रूप में पेश किया। यही नहीं मोदी खुद भी रैली में संकेतों में अपने आप को ओबीसी बताने से नहीं चूक रहे हैं। दूसरे और तीसरे चरण के बीच की लंबी अवधि ने दोनों गठबंधनों को सम्भलने और नये सिरे से रणनीति बनाने का मौका दे दिया जिसका भाजपा ज़्यादा फायदा उठाती दिख रही है ।
इसमें कोई शक नहीं कि बिहार में जातीय मुद्दा हमेशा से ही हावी रहा है, लेकिन इस चुनाव में अब तीसरे दौर मे इसके अलावा भी कुछ मुद्दे हैं जो बिहार के राजनीतिक भाग्य के फैसले मे र्निणायक हो सकते हैं।पिछले लोकसभा चुनावों मे जिस तरह युवा मतदाताओं ने बड़ी हिस्सेदारी करके चुनाव नतीजे प्रभावित करने मे अहम भूमिका अदा की थी , वैसी ही एक भूमिका की उम्मीद बिहार विधान सभा चुनावों मे भी उनसे से की जा रही है ।लम्बे समय से विकास की किरण के प्रति आशान्वित बिहार के नवजवान बदलाव के प्रति संवेदनशील है ।देश के दूसरे अंचल के युवाओं की तरह यहां के युवा भी मानते हैं कि उनका भविष्य भी विकास से ही तय होगा ।इसी लिये कई चुनावी विश्लेषज्ञ मानते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन और राजग का भविष्य ऐसे युवा मतदाताओं पर भी निर्भर करेगा जो पहली बार मताधिकार का उपयोग करेंगे। इस समय बिहार मे युवा मतदाता 50 फीसदी से अधिक हैं यानी करीब 2 करोड़ मदताता 30 साल के नीचे के हैं।जबकि 26 लाख के करीब ऐसे वोटर हैं जो पहली बार मतदान करेगें । विधानसभा के हिसाब से देखें तो सूबे की हर सीट पर ऐसे करीब 11 हजार मतदाता हैं ।पुराने आंकड़ों के मुताबिक बीते विधानसभा चुनाव में करीब 80 फीसदी सीटों पर जीत हार का अंतर 10 हजार से भी कम था। ऐसे में इन युवाओं के वोट की अहमियत पहचानी जा सकती है।राजग जहां लैपटॉप, स्कूटी और बेहतर अवसर उपलब्ध कराने का वादा कर रही है, वहीं नीतीश एक कदम आगे बढ़कर युवाओं को अंग्रेजी से लैस करने की भी बात कर रहे हैं।वहीं पीएम मोदी ने बिहार के लिए छह सूत्रीय कार्यक्रम तय किया है । पीएम ने कहा, भारत का सदियों तक मार्गदर्शन करने वाली बिहार की धरती के लिए मेरा 3 सूत्रीय कार्यक्रम ‘बिजली, पानी और सड़क’ है। बिहार के परिवारों के लिए भी मेरा तीन सूत्रीय कार्यक्रम युवकों को पढ़ाई, कमाई और बुजुर्गों को दवाई है। यह छह सूत्रीय कार्यक्रम बिहार का भाग्य बदलेगा । हालांकि कड़ुवी सच्चाई यह है कि युवाओं को चुनावी लॉलीपॉप में अब दिलचस्पी कम और बेहतर भविष्य के लिए भावी योजनाओं में दिलचस्पी ज्यादा है।बीते डेढ़ साल मे केन्द्र से युवाओं को ठोस शुरूआत के बदले नेताओं के जहरीले बोल ज़्यादा मिले हैं । यही कारण है कि इस वर्ग को न तो लालू पसंद आते हैं और न ही ओवैसी , गिरिराज या किसी दूसरे बड़बोले नेता की बयानबाजी । दोनों ही गठबंधनों के लिए इन युवा मतदाताओं को प्रभावित करना आसान नहीं है।युवाओं के एक सर्वे मे ये बात साफ तौर से सामने आयी है कि तमाम युवाओं का माना है कि बड़बोले नेता पीएम मोदी की छवि खराब कर रहे हैं और विकास के रास्ते से सरकार का ध्यान भी बांट रहे हैं । बहरहाल जाहिर तौर पर निर्णायक भूमिका अदा करने वाले इन युवाओं को लुभाने के लिए दोनों ही ओर से जी तोड़ कोशिशें हो रही हैं।
अगर हम तीसरे दौर मे साटों के गणित पर गौर करें तो जिन 6 जिलों में वोटिंग होनी है उनमें सबसे ज्यादा पटना जिले में विधानसभा की 14 सीटें हैं। सारण में 10, वैशाली में 8, नालंदा और भोजपुर में 7-7 और बक्सर जिलों में विधानसभा की 4 सीटें हैं। 2010 के विधान सभा चुनाव में इन सीटों मे से जेडीयू को 23, बीजेपी को 20 और आरजेडी को 7 सीटें मिली थी ।वहीं तीसरे चरण मे लालू के वारिसों का भी राजनीतिक भविष्य तय होगा । लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप वैशाली जिले की महुआ सीट से और छोटे बेटे तेजस्वी राघोपुर की सीट से मैदान में हैं। लालू के इन दोनों बेटों के अलावा बीजेपी सांसद सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर बक्सर की ब्रह्मपुर सीट से , बीजेपी नेता गंगा प्रसाद चौरसिया के बेटे संजीव चौरसिया पटना की दीघा सीट से, आरजेडी के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के बेटे रंधीर सिंह छपरा सीट से और पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी आरजेडी के टिकट पर शाहपुर सीट से मैदान में हैं।तीसरा चरण कई दिग्गज नेताओं की भी किस्मत का फैसला करेगा ।इनमे विधानसभा में विपक्ष के नेता नंद किशोर यादव जो पटना जिले की पटना साहेब सीट से बीजेपी के उम्मीदवार हैं। नीतीश सरकार के संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार नालंदा से और खाद्य आपूर्ति मंत्री श्याम रजक फुलवारी सीट से जेडीयू के उम्मीदवार हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री वृषण पटेल हम के टिकट पर वैशाली से मैदान में हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश सिंह तरारी से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।इस मे चरण ये भी तय होगा कि बिहार मे तीसरे मोर्चे और हैदराबाद के औवैसी का कितना क़द है ।
एक दिलचस्प बात ये भी है कि सबसे ज्यादा बाहुबली या फ़िर उनके रिश्तेदार इस चरण में चुनाव मैदान मे हैं । लालगंज से जेडीयू के टिकट पर बाहुबली मुन्ना शुक्ला मैदान में हैं तो शाहपुर सीट से विशेश्वर ओझा बीजेपी के उम्मीदवार हैं।एकमा से मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल सिंह जेडीयू के टिकट पर फिर से लड़ रहे हैं।तो वहीं मोकामा से अनंत सिंह इस बार निर्दलीय लड़ रहे हैं। अनंत का मुकाबला बाहुबली सूरजभान सिंह के भाई और एलजेपी उम्मीदवार कन्हैया सिंह से है।तरारी विधान सभा सीट से बाहुबली सुनील पांडे की पत्नी गीता पांडे की भी किस्मत का फैसला इसी दौर के मतदाता करेगें ।बिहार मे तीन दशक पहले तक चुनावों मे बूथ पर कब्ज़ा और वोटरों को डराने धमकाने का ठेका बाहुबलि लिया करते थे ।लेकिन वक्त बदला तो बाहुबली भी हाथ जोड़े घर-घर घूमने लगे। अब ये भी लोगों से आशीर्वाद लेते हैं और उनका दुख दर्द सुनते हैं। ज्यादातर मामलों में आपराधिक इतिहास वाले बाहुबली खुद को कानून से बचाए रखने के लिए राजनीति में आते हैं। ऐसे ही एक दबंग सूरजभान की पत्नी एलजेपी सांसद हैं और इस बार उन्होंने अपने छोटे भाई कन्हैया को मोकामा से उतारा है।तो वहीं लालगंज के छोटे से गांव में भी एक दबंग आवाज़ गुंज रही है। ये आवाज बाहुबली मुन्ना शुक्ला की है जिन्हें डॉन का खिताब अपने बड़े भाई छोटन शुक्ला से विरासत में मिला। मुन्ना लालगंज से जेडीयू के उम्मीदवार हैं।इसी तरह 1991 से 2014 तक पांच बार सांसद बने पप्पू यादव का भी का नाम है । ये कहना गलत नहीं होगा कि तीसरे चरण मे लड़ाई बुलेट से बैलेट के बीच की भी है।इसी लिये चुनाव आयोग में 20 ऐसे बाहुबलियों की पहचान कर उनके इलाके में खास बंदोबस्त किए हैं।
** शाहिद नकवी **
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