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बिहार चुनाव के अंतिम चरण मे छोटे दलों की तगड़ी चुनौती

Shahid Naqvi
Shahid Naqvi
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बिहार विधानसभा चुनाव अब अंतिम और र्निणायक मोड़ पर है ।पांचवे चरण का मतदान नतीजे के दृष्‍टि से भाजपा और महागठबंधन दोने के लिये अहम माना जा रहा है । पहले चार चरण के मतदान के बाद दोनों गठबंधनों के बारे में जो फीडबैक है, उस आधार पर यह चरण निर्णायक माना गया है। माना जा रहा है कि 5 नवंबर को सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल के नौ जिलों की 57 विधानसभा सीटों पर होने वाला मतदान बिहार की भावी सरकार के गठन मे सबसे महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करेगा ।दरअसल कोसी-सीमांचल इलाके का चरित्र समूचे बिहार से अलग है ,शायद इसी को बूझते हुए एनडीए और महागठबंधन ने अपनी रणनीति में भी परिवर्तन किया है। मौटे तौर पर मतदाताओं में जोश औसत से अधिक है और लोगों ने ठान कर वोट डाला,यही नही पिछले विधानसभा चुनाव से अधिक वोट डाला। अभी तक के मतदान में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी चौंकाने वाली है। उस नाते बिहार का लाख टके का सवाल है कि जब प्रदेश की राजनीति जातिवादी है तो युवा और महिला वोट भी क्या जातियों में बंध कर वोट डाल रहे है या इनका सरोकार विकास व चेहरे विशेष पर है? नरेंद्र मोदी की सभाओं में युवाओं का जन सैलाब साफ दिखलाई देता है लेकिन महिलाओं का नहीं। 2010 के विधान सभा चुनावों में महिलाओं ने नीतीश कुमार को वोट दिया था लेकिन जब लोकसभा चुनाव हुये तो ये वोट भाजपा के पाले मे चला गया ।सनद रहे कि पिछला चुनाव नीतीश और भाजपा ने साथ – साथ लड़ा था लेकिन 2014 के आम चुनाव मे दोनों के राह अलग थी ।इसी लिये ये दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि महिलाओं का वोट किसको मिल रहा है।अब तक के मतदान मे महिलाओं ने पुरूषों से अधिक वोट डाला है इसी लिये सरकार के दोनो दावेदार इसे अपने हक मे मान रहे हैं । असल मे बिहार में मुकाबला कड़ा और उलझा देने वाला है इसी लिये तस्‍वीर भी साफ नही है । मतदाताओं ने अपने रूझान का आभास नहीं दिया है, थोड़े से मतदाताओं को छोड़ कर ज्यादातर मतदाता खामोश हैं। पहले माना जा रहा था कि भाजपा और उसका गठबंधन लड़ाई में बहुत आगे है। जब महागठबंधन में टूट-फूट हो गई और समाजवादी पार्टी, एनसीपी दोनों इससे बाहर हो गए तो कहा जाने लगा कि अब भाजपा के सामने कोई चुनौती नहीं है लेकिन जैसे-जैसे प्रचार आगे बढ़ा, वैसे-वैसे तस्वीर बदलती गई।इन चुनावों पर पुरे देश का ध्यान है क्‍यों कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा को जैसे दांव पर लगा दिया है ।
एक करोड़ 55 लाख मतदाताओं वाले इन 57 विधान सभा क्षेत्रों मे सीमांचल का वह इलाका भी है जहां 45.9 फीसदी मुसलमान वोटर सीधे नतीजे को प्रभावित करतें हैं। चार जिलों अररिया ,किशनगंज , पूर्णीया और कटिहार में बंटा यह क्षेत्र राज्य का पूर्वोत्तर क्षेत्र है जो नेपाल की सीमा से सटा हुआ है ।माना जा रहा है कि सीमांचल क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को तगड़ी चुनौती मिलने वाली है, क्योंकि साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद वह लोकसभा की चारों सीटों पर चारों खाने चित्त हो गई थी।राष्‍ट्रीय राजनीती को कई बड़े नामवर मुस्‍लिम नेता देने वाला ये क्षेत्र पिछड़े बिहार मे विकास के पायदान पर सबसे नीचे खड़ा है ।रोजगार के साधनों की कमी के चलते यहां अपराध के रूप मे गरीबी का तांडव भी देखने को मिलता है ।शिक्षा का बड़ा सहारा आज भी यहां मदरसा ही हैं ।ये हालात तब है जब ये इलाका लालू यादव की ताजपोशी मे हमेशा अहम भूमिका निभाता रहा है ।दरअसल किशनगंज में मुस्लिम आबादी 67 फीसदी, जबकि कटिहार में 43 फीसदी, अररिया में 40 फीसदी व पूर्णिया में 37 फीसदी है। जबकि यादव मतदाताओं की संख्‍या भी काफी है इसी एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के बूते बिहार में लंबे समय तक लालू प्रसाद यादव सत्तारूढ़ रहे ।लेकिन अब एमवाई का दांव उनके लिये उल्टा पड़ सकता है।क्‍यों कि इस बार जदयू, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन को भाजपा और उसके सहयोगियों से ही नहीं बल्कि असदुद्दीन ओवैसी की मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एमआईएम) जैसी छोटी पार्टियों से भी परेशानी महसूस हो रही है। ओवैसी की पार्टी सीमांचल की छह सीटों पर ताल ठोक रही है, जिनमें पूर्णिया जिले का बायसी, किशनगंज का कोचाधामन व किशनगंज, अररिया का रानीगंज व कटिहार जिले का बलरामपुर निर्वाचन क्षेत्र है।उधर महागठबंधन से समाजवादी पार्टी के अलग होने के बाद तीसरे मोर्च के रूप में नए विकल्प से महागठबंधन को ही अधिक नुकसान की आशंका है । इसमें तीसरे मोर्चे में शामिल जन अधिकार पार्टी के मुखिया पप्पू यादव अहम भूमिका निभा सकतें है। बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की ओर से सीटों के बंटवारे में पर्याप्त सम्मान नहीं मिलने से नाराज समाजवादी पार्टी ने किनारा करते हुए तीसरे मोर्चे में शामिल होने के साथ ही मुस्‍लिम वोटों में बिखराव की संभावना बन रही है। वहीं परिवाद के मुद्दे पर राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव से अलग अपनी राह चुनने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की सीमांचल क्षेत्र में यादव मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ है। एमआईएम सांसद असउद्दीन आवैसी के चुनावी अखाड़े में उतरने के साथ ही एम-वाई समीकरण के बूते चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में लगे महागठबंधन के नेताओं पर माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई है। यहां की अधिकांश सीटें महागठबंधन के पास हैं। यही वजह है कि सीमांचल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी पूरा जोर लगा रहें हैं ताकि मुस्लिम वोटों को महागठबंधन के पक्ष में रखा जा सके।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव में इन छोटे दलों से बहुत बड़े रिजल्ट की उम्मीद तो नहीं है, लेकिन यह महागठबंधन के मनसूबों पर पानी जरूर फेर सकते हैं। यह माना जा रहा है कि यदि तीसरे मोर्चे से महागठबंधन का खेल बिगड़ता है तो इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके गठबंधन को मिलना तय है।सीमांचल मे ओवैसी के आने से राजद को भारी नुकसान की आशंका है। इस क्षेत्र में ओवैसी की पार्टी विकास के नाम पर जबर्दस्त प्रचार कर रही है। युवाओं में भी ओवैसी का जबर्दस्त क्रेज भी है। बाहुबली राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का राजनीतिक सफर लगभग ढाई दशक पुराना है। इस दौरान वे कई पार्टियों में आते-जाते रहे। बिहार के कोसी क्षेत्र में श्री यादव का अच्छी पकड़ हैं। राजनीतिक दल आज पप्पू यादव को बिहार में सबसे बड़े वोट कटवा के रूप में देख रहे हैं। यादव पांच बार मधेपुरा से सांसद रह चुके हैं जबकि उनकी पत्नी रंजीता रंजन सुपौल से कांग्रेस सांसद हैं। यही वजह है कि पप्पू यादव की सीमाचंल क्षेत्र में जबर्दस्त पकड़ है। यादव वोटों का ध्रुवीकरण होने से फायदा भाजपा को मिल सकता है।उधर शरद पवार की राकांपा का भी इस इलाके मे असर है । तारिक अनवर बिहार में राकांपा के एकमात्र सांसद हैं और पांच बार कटिहार लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं। राकांपा चाहती तो तीन सीटों के साथ बिहार में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। कटिहार लोकसभा सीट में विधानसभा की कटिहार, कदवा, बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी और बरारी सीटें आती हैं। 2010 के चुनाव में भाजपा को चार सीटें मिली थीं।जबकि जदयू और निर्दलीय ने एक – एक सीट जीती थी। तब राकांपा दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी। ऐसा माना जा रहा है कि राकांपा यहां कम से कम एक सीट जीत सकती है और बाकी सीटों पर समीकरण बिगाड़ सकती है। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा मिल सकता है।लेकिन बिहार चुनाव के अंतिम पड़ाव पर भाजपा को 25 सीटों पर वोटों के धुर्वीकरण का डर भी सता रहा है ।इसी लिये पीएम मोदी के नेतृत्‍व मे भाजपा नेता बार बार महागठबंधन पर दलितों और पिछड़ी जातियों के लिये सुरक्षित आरक्षण को अल्‍पसंख्‍यकों के साथ बांटने की कोशिश का आरोप लगा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि इस बार के विधान सभा चुनाव में महागठबंधन ने 33 मुस्लमानों और 64 यादव वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया है वहीं भाजपा गठबंधन ने नौ मुस्लमानों और 25 यादव समुदाय के लोगों को टिकट दिया है।बहरहाल सब को पता है कि बिहार के नतीजे का असर राष्ट्रीय राजनीति पर होना है इसी लिये बाजी जीतने के लिए सारे दांव आजमाए जा रहे हैं।
** शाहिद नकवी **

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