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भारतीय मुसलमानों से पस्‍त हुये आतंकी संगठन

Shahid Naqvi
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देश मे एक तरफ बढ़ती असहष्णुता का शोर है और उस पर लम्‍बी बहस चल रही है, कलमकार और कलाकारों के पुरस्‍कार वापसी का लम्‍बा दौर चला तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री की इस बात मे भी दम है कि खबरों की बड़ी हेडलाइन को ही हिंदुस्तान समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।यानी इसका ये मतलब है कि भारत अलवर के इमरान खान जैसों मे ही बसता है।जिन्‍होने बच्चों की शिक्षा के लिये वेब डिजाइनिंग में अपनी लगन से तीन वर्षों में 52 शैक्षिक मोबाइल एप विकसित कर निशुल्क बच्चों को समर्पित किए है, जिन्हें तीस लाख लोगों ने संग्रहित किए है।उल्‍लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने पिछले दिनों ब्रिटेन के वेम्बले स्टेडियम में दिये सम्बोधन में इमरान की उपलब्धियों का जिक्र किया था ।उसके बाद तो मेवात क्षेत्र के अलवर के इस 37 वर्षीय शिक्षक की दुनिया ही बदल गयी और सूफी संतों और कबीर की धरती ने उन्‍हें को हातों हाथ लिया है । सवा सौ करोड़ लोगों का हिंदुस्तान आज दुनियां के सबसे बड़े और मजबूत लोकतंत्र के खिताब के साथ अपनी साझी संस्‍कृति के लिये भी बेमिसाल है और समूची दुनियां इसकी कायल है ।ये भारत की मिली जुली संस्‍कृति की ही देन है कि तमाम झंझवातों के बाद भी आज आम मुसलमान को देश के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर विश्वास है, जिसके अंतर्गत अनेकता में एकता पर ज़ोर दिया जाता है। इसके कारण भारत का मुसलमान देशभक्त है। अगर आप हज़रत निजामुद्दीन दरगाह जाएँ,हुसैन टेकरी या फिर अजमेर की दरगाह, वहां पर आपको सभी धर्मों के लोग मिल जाएंगे। सूफी और संत का इस देश में सभी सम्मान करते हैं।शायद यही बड़ी वजह है कि तमाम कोशिश के बाद भी आईएसआईएस और अलकायदा जैसे आतंकी संगठन भारत के मुसलमानों खासकर मुस्‍लिम युवाओं मे घुसपैठ नही कर पायें हैं ।हालत यह है कि भारतीय शाखा की घोषणा के एक साल बाद भी अलकायदा का कहीं नामों निशान नही है । ऐसा नही है कि आतंकवादियों ने भारत के मुसलमानों को बरगलाने की कोशिश ना की होगी ।वैश्‍विक स्‍तर पर आतंकवाद के वित्‍तपोषण पर लगाम लगाने के लिये गठित संस्‍था एफएटीएफ ने पिछले महीने पेश अपनी रिर्पोट मे खुलासा किया है कि हिजबुल मुजाहिदीन के इरादे नापाक रहे हैं ।रपट के मुताबिक इस प्रतिबंधित आतंकी गुट ने भारत को अस्‍थिर करने के मकसद से करोंडों की धन राशि जुटाई ।रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार ने आतंकवादियों को आर्थिक सहायता मुहैया कराने वाली कई संस्‍थाओं पर कार्यवाही भी की है ।देश प्रेम के जज्‍़बे ने ही आतंकवादियों के नापाक इरादों को कामयाब नही होने दिया है । पेरिस हमलों के बाद से भारतीय मुसलमान आतंकवाद के खिलाफ मुखर हो कर सड़कों पर उतर आयें हैं ।भारत में आईएसआईएस के विरोध में मुस्लिम समाज से जोरदार आवाजें उठ रही हैं। इनमें मुस्लिम स्कॉलर, मौलाना, इमाम और दूसरे दानिशमंद तथा मुस्लमानों के प्रमुख इदारे शामिल हैं। भारत ऐसा पहला देश हैं जहां के उलेमाओं ने आतंकवादियों के खिलाफ फतवा जारी कर उनके कृत्‍य को इस्‍लाम विरोधी करार दिया है ।
पेरिस हमले के बाद दुनिया भर में आतंकवाद पर छिड़ी नई बहस के बीच कई देशों के मुसलमान आईएसआईएस के खिलाफ खड़े नज़र आ रहे हैं।लेकिन हिन्‍दुस्‍तानी मुसलमान मुखर हो कर विरोध जता रहें हैं ।सुन्नी जमायत-ए-उलेमा और रज़ा अकादमी ने देश भर के मस्जिदों के इमामों से आईएसआईएस के खिलाफ तकरीरें करने की अपील की। देश भर के इमामों से गुजारिश की गयी कि तकरीरों के जरिये लोगों को बताएं कि आईएसआईएस का इस्लाम से कुछ लेना देना नहीं हैं। इससे जुड़े लोग को मुसलमान मानना सही नहीं हैं। ये लोग धर्म की आड़ में हुकूमत और पैसे का खेल खेल रहे हैं।देश भर के सभी मदरसों से भी अपील की गयी कि नयी पीढ़ी को भी गुमराह होने से रोकने के लिए उन्हें आईएसआईएस का घिनौना चेहरा दिखाया जाये। मदरसों के अलावा दरगाहों, बाकी जुलूसों और कार्यक्रमों में भी इस तरह की तकरीर करने की गुज़ारिश की गयी है। जमीयत उलेमा ए हिंद ने कहा कि मुस्लिमों के लिए भारत से बेहतर कोई देश नहीं है।मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि इस्लाम के नाम पर हमले गलत हैं । इसके अलावा देश में अलग-अलग हिस्सों में कई मुस्लिम संगठन युवाओं को राह दिखाने और आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन कर रहें हैं।शियाओं सहित हर मसलक के उलेमा आतंकवाद और इस्‍लाम के नाम पर बेगुनाहों को मारे जाने की पहले भी मुखालफत कर चुकें हैं ।अजमेर सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के वंशज ओर दरगाह के सज्जादेनशीन और मुस्लिम धर्म प्रमुख दरगाह दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन अली खानं ने कहा कि दुनिया भर के मुसलमानों को आतंकवादी और चरमपंथी तत्वों के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। ये तत्व मानवता और इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन हैं। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को इस्लाम के बारे में व्यापक समझ और कुरान की शिक्षाओं की गलत व्याख्या से बचाने की जरूरत है। दुनिया भर में आतंकवाद और चरमपंथ की चुनौतियों से मुकाबले के लिए इमामों, धार्मिक नेताओं और अन्य विद्वानों को बड़ी भूमिका निभानी होगी । हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। कुछ भ्रमित लोगों की गतिविधियों से इस्लाम के वास्तिवक संदेश, दया, एकता और शांति को तोड़ मरोड़कर पेश किया जा रहा है।
ये बात हमेशा से कही जा रही है कि आतंकवाद और कट्टरपंथ मानवता तथा इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन हैं। तमाम मुसलमानों का मानना है कि एक्रुाुट होकर समाज में आतंकवाद फैला कर इस्लाम की छवि खराब करने वालों को अलग-थलग किया जाये । यहां की सांस्कृतिक एकता और लोकतंत्र की वजह से आतकंवाद देश में अपनी जड़ें जमाने में असफल रहा है।ये मुसलमानों का कर्तव्य है कि आगे आकर आतंकवाद और कट्टरपंथ को जड़ से उखाड़ फेंकने की दिशा में काम करें क्‍यों कि ये तत्व मानवता और इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन हैं।दरअसल सातवीं सदी में इस्लाम सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता, लैंगिक समानता और राज्य व्यवस्था के लोकतंत्रीकरण के सिद्धांतों के आधार पर आधुनिकता की श्रेणी में आगे था मगर इस्लामिक आतंकवादी संगठन आईएसआईएस ने इस्लाम की गलत तस्वीर पेश करके दुनिया के साने भ्रम के हालात पैदा कर दिए हैं।मुसलमानों के पहले खलीफा हजरत अबू बकर द्वारा 7वीं सदी की शुरुआत में लिखे गए जिहाद और खिलाफत के नियमों के अनुसार मासूम लोगों को निशाना बनाना इस्लाम के खिलाफ है। जिहाद के दौरान फसलों को तबाह करना, निहत्थे लोगों, बुजुर्गों और महिलाओं का कत्ल करना भी इस्लाम की तौहीन है। लेकिन 21वीं सदी मे अपने नाम के आगे इस्‍लामिक शब्‍द नत्‍थी किये हुये आईएसआईएस किसी को नहीं बख्शता। इन हत्यारों ने ईसाइयों, कुर्दों, शियाओं, यजीदियों और दूसरे हजारों अल्पसंख्यकों को मौत के घाट उतारा है । अपने कब्जे वाले इलाके में उसने मस्जिदें तक एक ही मौज में तोड़ी और सदियों पुरानी ऐतिहासिक इस्‍लामी धरोहरों तक को कीमती वस्‍तुऐं निकालने के लिये नष्‍ट कर दी ।
दरअसल भारत में इस्लाम के प्रचार व प्रसार में सूफियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस्लाम के प्रसार में उन्हें काफी सफलता प्राप्त हुई, क्योंकि कई मायने में सूफियों की विश्वास प्रणाली और अभ्यास भारतीय दार्शनिक साहित्य के साथ समान थी, विशेष रूप से अंहिंसा और अद्वैतवाद। ख्वाजा मुईन-उद-द्दीन चिश्ती, कुतबुद्दीन बख्तियार खुरमा, निजाम-उद-द्दीन औलिया, शाह जलाल, आमिर खुसरो ने भारत के विभिन्न भागों में इस्लाम के प्रसार के लिए सूफियों को प्रशिक्षित किया। इस्लामी साम्राज्य के भारत में स्थापित हो जाने के बाद सूफियों ने स्पष्ट रूप से प्रेम और सुंदरता का एक स्पर्श प्रदान करते हुए इसे उदासीन और कठोर हूकुमत होने से बचाया। सूफी आंदोलन ने इस्लाम और स्वदेशी परंपराओं के बीच की दूरी को पाटने में अहम भूमिका निभाई। भारत ऐसे कई प्रख्यात मुसलमानों का गढ़ है जिन्होंने कई क्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है । ये कम नही है कि स्वतंत्र भारत के 12 राष्ट्रपतियों में से तीन मुसलमान थे । डॉ॰ ए० पी० जे० अब्दुल कलाम को सारा देश आज भी बतौर मिसाईल मैन आज भी सलाम करता है ।बड़े पैमाने पर भारत के मुसलमान ये मानते हैं कि असली हिंदू धर्म का पालन करने वाले लोग मुस्लिम विरोधी नहीं हैं और हिंदू समाज में ऐसे ही लोगों की संख्या अधिक है। भारत का मुसलमान अपने पूर्वजों का शुक्र अदा करता है कि वो बंटवारे की गरम हवा में नहीं बहे और अपने देश में रहने का फ़ैसला किया ।आज भारत के मुसलमानों का बड़ा तबका पाकिस्तान में चरमपंथी सरगर्मियों, हिंसा और वहां के कट्टरवाद को हिक़ारत से देखता है। भारत के मुसलमानों को इस बात पर इत्मीनान है कि उसे अपने मज़हब पर चलने की पूरी आज़ादी है। देशभर में मस्जिदें रोज़ बन रही हैं, मदरसे रोज़ खुल रहे हैं और यहाँ तक कि आज़ान की आवाज़ हिंदू बहुल इलाक़ों में भी दिन में पांच बार गूंजती है।साझी संस्कृति का असर है, जिसके कारण यहाँ का मुसलमान इस्लामिक चरमपंथ से दूर रहता है।यही कारण है कि देश मे बुर्का पोश मुस्लिम औरतों के हाथों में ऐसी तख्तियां भी दिख जाती है जिन पर आतंकवाद मुर्दाबाद के नारे लिखे होतें हैं ।सत्‍ता सम्‍भालने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी और राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी कई बार ये कह चुकें हैं कि भारत के मुसलमान देश भक्‍त हैं । कश्मीर में पिछले कुछ महीनों के दौरान हुए विरोध प्रदर्शनों में आईएस का झंडा लहराने की खबरें निश्चित तौर पर चिंता पैदा करने वाली हैं।भारतीय सुरक्षा ऐजेंसियां मुस्‍तैद तो है साथ ही इसके लिये ये भी जरूरी है कि हर स्‍तर पर ऐसा माहौल भी बनाया जाये जिससे वह भारतीय मुसलमानों को बरगलाने के बारे मे सोच भी ना सकें । बस अभी यही कहा जा सकता है कि भारत के मुसलमानों के लिए भारत से अछा देश और हिन्दू से अच्छा पड़ोसी नहीं मिल सकता। लेकिन दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवाद संगठन बन चुके आईएसआईएस के समूल नाश के लिए ताकतवर देशों को अपने हितों से ऊपर उठना होगा। आईएस के समूल नाश के लिए उन्हें अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर एक साथ प्रभावी और निर्णायक पहल करनी होगी। इसके लिए उन्हें दोहरा रवैया छोड़ना होगा। दोहरा रवैया अपनाकर आतंकवाद के खिलाफ जंग नहीं जीती जा सकती। भारत यह बात शुरू से कहता आया है और आज भी कह रहा है। आतंकवाद, आतंकवाद है वह अच्छा और बुरा नहीं हो सकता। यह बात सभी को समझनी होगी तभी जाकर आईएसआईएस नाम की बला का कुछ हो सकता है, नहीं तो आज पेरिस कल दुनिया का कोई और शहर होगा जहां मानवता कराह रही होगी और बड़े देश बड़ी-बड़ी बातें कर रहे होंगे।
** शाहिद नकवी **

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