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जनतंत्र के लिये चलनी चाहिये संसद

Shahid Naqvi
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लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद का शीतकालीन सत्र 26 नवम्‍बर से शुरू हो रहा है ।ये वही तारीख है जब साढ़े छह दशक पहले देश का संविधान अस्‍तित्‍व मे आया था। लोकतांत्रिक गणराज्‍य भारत की संसद मे जनता के नुमाईंदे इस सत्र मे कैसे पेश आतें हैं ये सवाल हर खास और आम के ज़ेहन मे है । मॉनसून सत्र में हम तमाम नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ते देख चुके हैं। कई मुद्दों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध तथा दोनों के अपने अपने रुख पर अड़े रहने के कारण मानसून सत्र का काफी बड़ा हिस्सा हंगामे की भेंट चढ़ गया था। पूरे सत्र के दौरान जनता के मुद्दे और जनता कहीं दिखी नही केवल सियासी दलों के सियासी अहम के चलते जनता के 250 करोड़ रुपये बर्बाद होने का अनुमान है ।लेकिन इसके बावजूद भी जन का प्रतिनिधित्‍व करने वाले नेताओं के तेवर मे तब से लेकर अब तक कोई बदलाव नही दिखा है ।मानसून सत्र मे जो कुछ हुआ उससे सबक लेने या भूलने के बजाय सरकार और विपक्ष इसके लिये दोनों एक दूसरे को कसूरवार ठहरा रहें हैं ।इधर असहिष्णुता जैसे मुद्दों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कड़वाहट और बढ़ गयी है ।फिर बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों से विपक्ष तरोताज़ा होने के साथ एक जुट हो गया है जिससे देश का राजनीतिक परिदृश्य ही बदला – बदला सा दिख रहा है ।इस सबके मद्देनजर लग रहा है कि गुरुवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के हंगामेदार रहने के आसार हैं ,सदन को सुचारूरूप से चलाना मोदी सरकार के लिये बेहद चुनौतीपूर्ण होगा ।जबकि विकास को गति देने के लिए आर्थिक सुधारों से जुड़े कदमों को आगे बढ़ाने के लिहाज से यह सत्र काफी महत्वपूर्ण है और सरकार चाहेगी कि इसका हश्र पिछले मानसून सत्र जैसा न हो। बिहार चुनाव के नतीजों से इसका राजनीतिक रूप से महत्‍व बढ़ गया है ।
मोटे तौर पर देखा जाए तो इस वक्त लोकसभा में करीब आठ और राज्यसभा 11 विधेयक लंबित हैं। सरकार को सत्र के दौरान वस्तु एवं सेवाकर – जीएसटी विधेयक, अचल संपत्ति विधेयक, भूमि अधिग्रहण विधेयक सहित कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराने हैं। सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती जीएसटी विधेयक के रूप में आने वाली है। जीएसटी एक ऐसा टैक्स है, जो राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी सामान या सेवा की मैन्युफैक्चरिंग, बिक्री और इस्तेमाल पर लगाया जाता है। इस सिस्टम के लागू होने के बाद चुंगी, सेंट्रल सेल्स टैक्स (सीएसटी), राज्य स्तर के सेल्स टैक्स या वैट, एंट्री टैक्स, लॉटरी टैक्स, स्टैप ड्यूटी, टेलीकॉम लाइसेंस फीस, टर्नओवर टैक्स, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाले टैक्स, सामान के ट्रांसपोटेर्शन पर लगने वाले टैक्स इत्यादि खत्म हो जाएंगे।

सरकार बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए इस विधेयक का पास होना ज़रूरी मानती है। यह लोक सभा में पास भी हो चूका है। लेकिन राज्यसभा में पास करने के लिए सरकार को विपक्ष के सहयोग की ज़रुरत है।इसके अलावा अन्य अहम लंबित विधेयकों में सचेतक संरक्षण (संशोधन) विधेयक, निरसन और संशोधन (तीसरा) विधेयक, बेनामी लेनदेन (निषेध) (संशोधन) विधेयक, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्ते) संशोधन विधेयक व माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास (संशोधन) विधेयक भी शामिल हैं। सरकार को लेखकों, कवियों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों सहित बुद्धिजीवी समाज के लोगों का लेखकों की हत्याओं, गोमाँस के मुद्दे पर हुए दादरी कांड, फरीदाबाद अग्निकांड में दलित बच्चों की हत्या आदि मुद्दों पर विपक्ष की घेरेबंदी का सामना करना पड़ेगा।कथित असहिष्णुता के विरोध में साहित्यकारों,वैज्ञानिकों की ओर से पुरस्कारों को लौटाना या कथित तौर पर सांप्रदायिक माहौल खराब होने जैसे मुद्दों पर भी विपक्ष के मुखर रहने के संकेत हैं। इससे जीएसटी समेत कुछ महत्वपूर्ण सुधार संबंधी विधेयकों को जल्द पारित करने के सरकार के प्रयास बाधित हो सकते हैं।उधर कांग्रेस के ने ललितगेट विवाद में केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के इस्तीफे और व्यापम घोटाले को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग भी नहीं छोड़ी है।यही नही संसद के आगामी सत्र में कांग्रेस का हमला केंद्रीय मंत्री वीके सिंह पर भी हो सकता है, जिन्होंने हरियाणा में एक दलित परिवार के दो बच्चों की जलने से मौत के मामले में कुत्ते वाला बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया था। दलित आंदोलन के आदर्श पुरुष और संविधान सभा के अध्यक्ष बाबा साहिब डा. अम्बेदकर की 125वीं जयंती भी सत्र के शुरूआती दिनों मे मनायी जायेगी ।जानकारों का कहना है कि एक रणनीति के रूप में सरकारी पक्ष ने संसद मे डा. अम्बेडकर की जयंती मनाने का बड़ा फैसला लिया है ।आखिर जब सबसे बड़े दलित आदर्श पुरुष को श्रद्धांजलि दी जा रही होगी तो कोई भी हंगामा खड़ा करने की कोशिश नहीं करेगा। अम्बेडकर के स्मृति समारोह में किसी प्रकार का व्यवधान डाला गया तो इसका दलित मतदाताओं पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। पिछले सत्र में सरकार अलग – अलग मुद्दों पर पंगा खड़ा करने वालों को निष्प्रभावी करने में विफल रही थी। लेहाज़ा संसद का यह सत्र राजनीतिक और विधायी कामकाज के लिहाज से बेहद रोमांच भरा होगा ।
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद बदले माहौल में हो रहे इस सत्र में विपक्ष एक बार फिर कांग्रेस की अगुआई में लामबंद होने की तैयारी में है जिससे सरकार के लिए संसद की कार्यवाही सुचारु रूप से चलाना आसान नहीं होगा।कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया है कि मानसून सत्र में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ललित मोदी प्रकरण में इस्तीफे की उसकी मांग अभी पूरी नहीं हुई है। इन मुद्दों के साथ साथ वह दादरी कांड तथा फरीदाबाद के सुनपेड में आगजनी की घटनाओं को संसद में जोर-शोर से उठाएगी।बिहार में जीत से उत्साहित कांग्रेस, जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल इस बार संसद में भी एकजुट होकर सरकार को घेरेंगे। इन तीनों दलों के जहां लोकसभा में 50 तो वहीं राज्यसभा में 80 सदस्य हैं। सरकार को विशेष रूप से राज्यसभा में विधेयकों को पारित कराने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।सत्र शुरू होने से ऐन पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुली चुनौती देते हुए भाजपा द्वारा उन पर लगाए जा रहे आरोपों की जांच कराने तथा दोषी पाए जाने पर जेल में डाल देने की बात कही है, उससे साफ है कि उनकी पार्टी सत्र के दौरान घमासान के लिए तैयार है।भाजपा की ओर से उनकी दोहरी नागरिकता तथा कांग्रेस नेताओं सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर के पाकिस्तान में दिए गए बयानों को मुद्दा बनाने की भरसक कोशिश की जा रही है।बताया जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस तथा वामपंथी दलों ने असहिष्णुता के मुद्दे पर संसद में बहस कराने के लिए नोटिस है और उन्हें उम्मीद है कि इस मुद्दे पर समूचा विपक्ष उनके साथ खड़ा होगा। इस मुद्दे पर देश के कई साहित्यकारों और कलाकारों ने अपने पुरस्कार वापस लौटा दिए। यहां तक कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को भी इस मुद्दे पर परोक्ष रूप से टिप्पणी करनी पड़ी।

लोकसभा में शानदार बहुमत के साथ सत्ता संचालन की जिम्मेदारी लिए मोदी सरकार करीब डेढ़ साल बीतने के बावजूद जमीनी तौर पर ऐसा कोई काम नहीं कर पाई जिसे बदलाव की नींव माना जा सके।आंकड़ों से इतर मंहगाई ने खासकर दालों की कीमतों ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं । जीएसटी, भूमि बिल अब भी संसद से हरी झंडी के इंतजार में हैं। नेताओं के रवैये की वजह से कछुआ चाल से चल रही संसद की कार्यवाही को देखकर लगता है इन विधेयकों को कानून की शक्ल अख्तियार करने में अभी लंबा वक्त लगेगा। मोदी सरकार को राज्यसभा में बहुमत मिलने की निकट भविष्य में कोई उम्मीद नजर नहीं आती और देशहित पर पार्टीहित हावी होने के चलते विपक्ष से किसी प्रकार के रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा करना निरर्थक है।क्‍यों कि बिहार चुनाव परिणाम आने के बाद लालू और राहुल के विजय भाषण को देखकर किसी तरह के रचनात्मक और सार्थक कर्त्तव्य निर्वहन के आसार नजर नहीं आते। सत्र के शुरुआती दो दिन संविधान रचयिता बाबा साहेब अंबेडकर के सम्मान में विशेष बैठक होने वाली है। कम से कम इन दिनों अच्छे से संसद चलने की उम्मीद की जा सकती है।दरअसल संसद होती ही इसलिये है कि बहस के जरिये तर्क-वितर्क किया जाए ना कि वॉक आउट और स्‍थगन के जरिये कार्यवाही ठप की जाये और बहस से बचा जाए। जनतंत्र की उम्‍मीदों पर पानी फेरने वाली हरकतों के लिये सिर्फ विपक्ष ही कसूरवार नहीं है बल्‍कि काफी हद तक सत्ता पक्ष भी जिम्मेदार है। दरअसल, नरेंद्र मोदी की लहर में हंगामा रस पर यकीन रखने वाले ऐसे तमाम नेताओं को भी उभरने का मौका मिल गया है जिन्हें ना तो संसद की मर्यादा की चिंता है और ना देश की जनता की। उन्हें सिर्फ इस बात की चिंता है कि कहीं बयानबाजी में पिछड़ने के चलते वे मीडिया मे अपनी अहतियत कम ना कर बैठें । काश, बदलाव,सुधार और युवा भारत के र्निमाण की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी सभी राजनीतिक दलों के विवादित बयान देने वाले नेताओं पर मौन रहने के बजाय कोई कदम उठाते।यानी विवादित बयानों पर कानून बना दिया जाये जिससे बार-बार के विवाद, खेद, सफाई, खंडन और माफी की परंपरा पर हमेशा के लिये लगाम लग सके। ऐसे में शीत सत्र में संसद में फिर से वही सब देखने को मिल सकता है यानी शोर मचाते, कागज फाड़ते और तख्तियां लहराते जनप्रतिनिधि। बात-बात पर इस्तीफे की मांग करती आवाजें। लेकिन इस सब के बावजूद देश की जनता को इंतजार है उन जमीनी सुधारों और विकास का जिसका वादा उनके अपने प्रधानमंत्री ने किया है।उसे असहिष्णुता’ और विवादित बयानों पर हंगामे से कुछ लेना देना नही है ।वहीं देश के किसानों को इंतजार है कृषि संबंधी उनकी समस्‍याओं के समाधान का ।उन्‍हें उस उस मुआवजे का इंतजार नही है जो जान गंवाने के बाद ऐलान किया जाता है ।कांग्रेस की सत्‍ता को जड़ से उखाड़ फेंकने वाली युवा शक्ति को इंतजार है उस सम्मानजनक रोजगार का जिसका सपना डेढ़ साल पहले निराले अंदाज़ मे दिखाया गया था ।
** शाहिद नकवी **

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