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अदनान सामी की नागरिकता सत्‍ता का उदार चरित्र

Shahid Naqvi
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गायक कलाकार अदनान सामी का पाकिस्‍तानी से हिन्‍दुस्‍तानी बनने की खबर बाद की घटनाओं के कारण ज्‍़यादा सुर्खीयां नही बटोर सकी और इसी लिये केन्‍द्र सरकार की इस उदारता पर चर्चा भी नही हुयी ।शिवसेना के विरोध को दरकिनार करके के देखा जाये तो पिछले दिनों असहिष्‍णुता के आरोपों और पुरस्‍कार वापसी के लम्‍बे सिलसिले से दो चार होने वाली मोदी सरकार ने उन्‍हें भारत का अधिकृत नागरिक बनाकर सत्‍ता के उदार चरित्र को सामने रखा है ।अदनान पाकिस्‍तानी थे इस लिये उन्‍हें भारत की नागरिकता न दी जाये ये बात देश की साझी संस्‍कृति की पुरातन परम्‍परा से भी मेल नही खाती है । ऐसा राष्ट्र विष्व में कदाचित दूसरा नहीं है, जिसने अभ्यागत से जोखिम की आशंका को दरगुजर करके स्वागत किया। हिन्दुस्तान में मुगल, अंग्रेज, इसाई, पारसी जो भी आये सभी ने भारत को अपना आश्रय स्थल बनाया। शानदार ऐतिहासिक इमारतें, भवन, मस्जिदें, चर्च, गिरिजाघर इसकी मिसालें है।कहा जाता है कि विदेशियों ने भारतीय अस्मिता को भी आहत करके अपना वर्चस्व स्‍थापित किया फिर भी मुल्क के निवासियों ने उन्‍हें अपना बनाया। गायक व संगीतकार अदनान सामी ने भारतीय नागरिकता मिलते ही जय हिंद का नारा यूं ही नही बुलंद किया है ।वह इस खूबसूरत पल का इंतजार पिछले 16 बरस से कर रहे थे ।वह ये जानते हैं कि उनकी यह इच्छा उस पार्टी की सरकार ने पूरा की है, जो विपक्ष में होने पर उनके वीजा अवधि को बढ़ाये जाने का विरोध करती थी । हालांकि ये सियासत का दस्‍तूर रहा है कि कई बार विपक्ष में रहने पर कोई पार्टी सरकार के जिन फैसलों का विरोध करती है, वही सत्ता में आने पर उन फैसलों को लेकर पुरानी सरकार की राह अपनाती है। ऐसा कई मामलों में देखा गया है और अदनान सामी के मामले में भी यही बात लागू होती है।
अदनान सामी को भारतीय नागरिकता देना एक आईने की तरह भी है, जिसमें सहिष्ष्णुता के सवाल को देखा जा सकता है। इससे यह संदेश भी जाता है कि भारत अब भी दुनिया के दूसरे देशों से अधिक सहिष्णु है, जिसके कारण दुनिया भर के लोगों का आकर्षण इस देश के प्रति बना हुआ है। यहां हर धर्म, संप्रदाय, नस्ल, जाति के लोगों को बराबर स्वतंत्रता हासिल है। भारत में न्यायपालिका सर्वोच्च है और संविधान के शासन में कोई वलात आस्था लादी नहीं जा सकती। कानून की रूह में सब समान है। सबके लिए कानून न्याय सुनिश्च‍ित करनें के लिए मौजूद है।यही भावना पाकिस्तान के मशहूर गायक अदनान सामी ने पिछले दिनों एक जलसे में व्यक्त करते हुए कहा था कि यदि भारत में असहिष्णुता होती तो वे स्वंय भारत में नागरिकता लेने के लिए ऐड़ी-चोटी का ज़ोर नहीं लगाते।सहिष्णुता से जुड़े मुद्दों पर बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान व आमिर खान के बयान पर हंगमा बरपा हुआ था । ऐसे में पाकिस्तानी मूल के अदनान को नागरिकता देकर मोदी सरकार ने एक खामोश संदेश सबों को दे दिया है ।ये एक गलत परिपाटी है कि किसी फैसले को केवल इस लिये कठघरे मे खड़ा किया जाये कि उसे मोदी, भाजपा और संघ के ने लिया है ।अगर कोई बदल रहा है तो उसे उसी बदले हुये स्‍वरूप मे ही स्‍वीकार किया जाना चाहिये। दरअसल सियासत और कला दोनों की राहें अलग – अलग हैं ।यहां अदनान सामी कला की उस परम्‍परा के वाहक जिसका कोई मजहब नही होता है ।उनके जेहन मे ये बात जरूर रही होगी कि जिस देश की मूल संगीत की महान धरोहर को तमाम मुसलमान संगीतकार संभाले बैठे हुए हैं उस देश मे कभी ये नही सोचा जा सकता कि कमसकम यहां का समाज असहिष्‍णु हो सकता है ।इसे समझने के लिये ये मिसाल काफी है कि हमारी प्राचीन विरासत ध्रु्पद गायकी आज भी मुसलमान डागर बंधुओं के हाथ मे महफूज़ है ।यहां तक की भगवान शंकर की रूद्र वीणा को बजाने वाले संगीतज्ञ भी संयोग से मुसलमान ही हैं ।यहां ये कहा जा सकता है कि तमाम मुसलमान संगीतकार भारतीय संस्‍कृति के यकीनी ध्‍वजवाहक हैं।भारत मे संगीत के पुजारी को सम्‍मान मजहब देख कर नही बल्‍कि उसकी कला के लिये मिलता है ।मोहम्‍मद रफी, शमशाद बेगम, उस्‍ताद बिस्‍मिल्‍लाह खां, उस्‍ताद जाकिर हुसैन, अमजद हुसैन जैसे कलाकारें की लम्‍बी फेहरिस्‍त है जिन्‍हें हर वर्ग का एहतराम हासिल है । ये भी काबिलेगौर है कि राजस्‍थान के वह मांगनहार मुसलमान और जोगी भारतीय संस्‍कृति की लोक प्रचलित काव्‍य गाथाओं के गायक हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी को इसे विरासत मे देतो रहतें हैं ।यही तो हमारी वह हजारों साल पुरानी ताकत है जिसे विविधा मे एकता के रूप मे आज भी जाना जाता है ।ऐसे देश की आबोहवा पर कौन पाकिस्‍तानी फिदा न हो जायेगा क्‍यों कि साझी संस्‍कृति का इससे बड़ा नमूना दुनियां के किसी दूसरे देश मे मिलना मुश्‍किल है ।फिर वह उस पाकिस्‍तान से आयें हैं जिसका मकसद हमेशा से भारत की मिट्टी की सुगंध को ही मिटाना रहा है।करगिल से लेकर पठानकोट तक ऐसी दर्जनों मिसालें मिल जायेंगी जब भारत के दोस्‍ती के लिये बढ़े कदम को पड़ोसी की ओर से आतंकवाद की घटनओं को अंजाम दे कर रोकने की कोशिश की गयी ।पाकिस्‍तान की सीमा से महज 20 किलो मीटर दूर पंजाब के पठानकोट के एयर फोर्स बेस पर 2 जनवरी 16 को हुये आंतकी हमले मे देश को जवानों की शहादत के हिसाब से हाल के हमलों मे सबसे अधिक जान का नुकसान उठाना पड़ा है ।फिर भी भारत की उदारता से ही पेश आ रहा है ।
दरअसल भारतीय नागरिकता अधिनियम के तहत किसी विदेशी को विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य, विश्व शांति और मानव प्रगति के क्षेत्रों में असाधारण सेवा देने पर नागरिकता दी जा सकती है और अदनान संगीत के क्षेत्र में काफ़ी समय से भारत में रह कर ही काम कर रहे हैं।उनका आख़िरी गाना ‘भर दो झोली’ फ़िल्म बजरंगी भाईजान में था और काफ़ी लोकप्रिय हुआ था ।अदनान सामी को देश का नागरिक बनाना उस अवधारणा को भी स्‍थापित करता है, जो आजादी की लड़ाई में हमारे महान नेताओं ने स्थापित की थी।इतिहास गवाह है कि पाकिस्‍तान के संसथापक मुहम्मद अली जिन्ना की सोच यह थी कि मुसलमान भारत के साथ सुरक्षित नहीं रह सकते । लेकिन महात्‍मा गांधी और बाकी स्वतंत्रता सेनानियों का सोचना था कि भारत सभी धर्मों, संप्रदायों और समुदायों की साझा संस्कृति वाली राष्ट्रीयता है।बंटवारे के करीब 68 साल बाद आज अदनान सामी, तारिक फतह अली खान , तस्लीमा नसरीन और ऐसे ही कई बड़े नाम नागरिकता के लिए भारत सरकार को अर्जियां दे रहे हैं, तो वे एक तरह से गांधी और देश की पुरानी सोच पर ही मुहर लगा रहे हैं।हो सकता है कि अदनान सामी का भारत प्रेम के पीछे उनका व्‍यवसायिक हित भी जुड़ा हो क्‍यों कि भारत का बाजार गीत – संगीत के मामले मे पाकिस्‍तान से ज्‍़यादा व्‍यापक है ।दरअसल अदनान सामी की मां जम्मू कश्मीर की रही हैं, जबकि उनके पिता पाकिस्तान के एक डिप्लोमेट थे। सामी का जन्म लंदन में हुआ जबकि वह 2001 से भारत में रह रहे हैं। वे यहां के मनोरंजन उद्योग से जुड़े रहे हैं और एक तरफ, उन्होंने भारत में अच्छी व्यावसायिक सफलता पाई है और दूसरी तरफ भारत के मनोरंजन व्यवसाय को भी समृद्ध किया है।
वे आरंभ में यहां एक साल के टूरिस्ट वीजा पर आये थे. उन्होंने गृह राज्य मंत्री किरण रिजेजू से नागरिकता का दस्तावेज हासिल करने के बाद कहा 16 साल से मैं यहां रह रहा हूं, यह मेरा घर है। लेकिन ये भी सच है कि जब भी कोई आर्थिक शक्ति उभरती है, तो वह दुनिया भर की तरह-तरह की प्रतिभाओं को आकर्षिक करती है।जैसे यूरोप, अमेरिका और कनाडा के प्रति भारतीय आकर्षिक होतें हैं ,इसी लिये इनके विकास में प्रवासी भारतीयों की भूमिका को नकारा नही जा सकता है ।आज चाहे क्रिकेट का मैदान हो या फिर दूसरा क्षेत्र इग्‍लैण्‍ड से लेकर आस्‍ट्रेलिया तक मे दूसरे देशों के खिलाड़ी अपने मूल देश के खिलाफ खेल कर सफलता का इतिहास रच रहें हैं ।इसमे मोईन अली, हाशिम अमला , इमरान ताहिर , उसमान ख्‍वाजा और संधू जैसे खिलाड़ियों का नाम लिया जा सकता है ।इन देशों मे जो दशकों पहले से हो रहा है वह देश मे अब शुरू हुआ है ।लेकिन ये तभी सफल होगा जब देश की सरकारें और वह तमाम संगठन जो अक्‍सर अपनी गतिविधियों से परेशानी पैदा करतें हैं , राष्ट्रवादी और गैर राष्‍ट्रवादी आक्रामकता को छोड़कर उदार बने । उन सभी लोगों को समाज का हिस्सा बनाए, जो इसमें सकारात्मक भूमिका निभाने को तैयार हैं। अदनान सामी को देश की नागरिकता देना नरेन्‍द्र मोदी सरकार का इस दिशा मे आगे बढ़ना माना जा सकता है और सरकार के इस कदम का स्‍वागत किया जाना चाहिये । लेकिन इस तस्‍वीर का एक रूख ये भी है कि पाकिस्तान से उत्पीडऩ का शिकार होकर आए हजारों शरणार्थी कई साल से भारत की नागरिकता पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। वे आए तो बेहतर जिंदगी की तलाश में थे, लेकिन यहां उनकी तकलीफों से किसी को सरोकार नहीं। राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़, दिल्‍ली, उत्‍तर प्रदेश,पंजाब और हरियाणा मे ऐसे हजारों शरणार्थी भारत की नागरिकता मिलने का इंतजार कर रहें हैं।बरसों बाद भी इनके दर्द को नही समझा जा सका है। वर्ष 2004, 05 और 2006 में भारत सरकार ने राजस्थान में पाक विस्थापितों के दर्द को समझते हुए जिलाधीशों को नागरिकता देने के लिए विशेष अधिकार दिए थे। करीब तीन साल जिलाधीशों के पास यह अधिकार रहा।जानकारी के मुताबिक इसी विशेषाधिकार के कारण 2007 में राजस्थान में सैकड़ों लोगों को भारत की नागरिकता मिल गई।इस लिये जरूरी है कि देश मे इस तरह से नागरिकता देने के कुछ स्पष्ट नियम-कायदे बनाये जायें ताकि चुनिंदा ढंग से चंद लोगों को नागरिकता देने की गलत परिपाटी न चल पड़े ।तथा विस्थापन का दर्द झेल रहे लोगों को ये एहसास न हो कि वे अदनान की तुलना में अदने से रह गए।
** शाहिद नकवी **

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