Menu
blogid : 17405 postid : 1141591

अब जनता के मन की बात सुनने का समय

Shahid Naqvi
Shahid Naqvi
  • 135 Posts
  • 203 Comments

मोदी सरकार अपना तीसरा आम बजट पेश करने की तैयारी मे है ।सरकार के पहले दो बजट तब आये थे जब वह लगातार सफलता के शिखर पर पैर जमाकर खड़ी थी ।लेकिन अब हालात तेजी से बदलें हैं और 21 महीने का सफर तय कर चुकी सरकार को संसद से सड़क तक की राजनीति, देश के आर्थिक स्वास्थ्य और प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर अनेक गंभीर सवालों के जवाब देने हैं । पहले दिल्ली और फिर बिहार ने पहले ही वादों की अनदेखी का पाठ पढ़ा दिया है, सो नए बजट मे लालकिले की प्राचीर से लगातार दिये गये चमकदार भाषणों से देशवासियों ने जो आशाएं लगा रखी हैं वह कैसे पूरी होगीं इसका जवाब भी सरकार को देना होगा ।दरअसल देश का एक बड़ा तबका लाल किले से और उसके बाद अलग-अलग मौकों पर दिए गए नरेंद्र मोदी के भाषणों से स्वयं को काफी उत्साहित महसूस करता रहा है और उसे लगता है कि देश के लिए एक नए रास्ते की दिशा नरेंद्र मोदी ने दिखाई है वह अब तक किसी राजनेता ने नही दिखायी है ।लेकिन नरेन्द्र मोदी देशवासियों को चमकदार मुस्तेकबिल दिखाने वाले पहले राजनेता नही है और इसके पहले भी लालकिले की प्राचीर से खुश होने वाले भाषण दिये गयें हैं ।बात अगर श्रीमती इंदिरा गांधी से ही की जाये तो उस समय और उनके बाद देशवासियों ने अपनी तकदीर-तस्वीबर बदलने का सपना देखा था।इंदिरा गांधी ने जब ग़रीबी हटाओ का नारा दिया और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था तो बहुत से लोग खुश हुये थे । तब लगा था कि अब बैंक इस देश के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों की जिंदगी ही बदल देगें और गरीबी का अभिशाप हमेशा के लिये मिट जायेगा । राजीव गांधी के इस खुलासे से कि सरकार की ओर से जनता के लिये जारी रकम का बड़ा हिस्सा बीच मे ही हड़प लिया जाता है,लोगो मे उम्मीरद जागी थी कि अब हमारा हक नही मारा जायेगा। विश्व़नाथ प्रताप सिंह के बगावती तेवरों मे भी उन लोगो को सब कुछ बदलने की तस्वीर दिखी जो हर नये सवेरे मे रोशनी की नई किरण की उम्मीद करतें हैं ।
मंदिर-मस्‍जिद और भगवा सियासत से अलग हट कर सोचने वाले तमाम देशवासी अटल बिहारी वाजपेयी के सत्ता में आते ही यह सोच कर खुश हो गये कि अब देश मे वाद और टकराव की राजनीति भी ख़त्म हो जाएगी और सचमुच मे इंडिया शाईनिगं का सपना पूरा हो जायेग।फिर जब सत्ता अर्थशास्त्रियों के हाथ मे आयी तो देश इस लिये खुश हो गया कि सौ दिन मे गरीबी और महंगाई दूर हो जानेसे जीने की राह आसान हो जायेगी । रोजगार के साधन उपलब्ध होने से हर साल लाखों मे बढ़ने वाली युवा बेरोजगारों की तादात नही बढ़ेगी।पार्टी की मुखिया एक महिला के होने से ये लगा कि सड़कों पर महिलाऐं बेखौफ रहेगीं । इस आस मे देश ने पूरे दस साल गुजार दिये और रोजगार की आस मे वोट देने वाला नौजवान नौकरी के लिये तय उम्र की सामा ही पार कर गया ।इसी से उपजी निराशा से ही तमाम विरोधाभासों और शंकाओं के बावजूद अब तक बैसाखी के सहारे रहने वाली भाजपा की ताकतवर सरकार बन गयी ।साल 2014 मे लालकिले से जो आशा जगाई गयी है उससे बदलाव की आस मे देश एक बार फिर खुश हो गया है ।इस बार अशाओं की सीमा बढ़ गयी है और आम लोगों की समस्याओं को बेहतर तरीके से समझने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ ऐसे सवालों पर भी सोचने की राह दिखयी जिन पर अब तक गम्भीरता से सोचने की जरूरत ही नही समझी गयी ।जिसमे सवच्छ भारत ,नदियों की सफाई , भ्रूण हत्या , सदियों पुरानी मैला ढोने की अमानवीय प्रथा और खुले मे शौच जैसी समस्याओं का नाम लिया जा सकता है ।नरेन्द्र मोदी के भाषणों से ये भी उम्मीद जागी कि अब सबका साथ होगा ,सबके विकास का रास्ता खुलेगा ।यानी अब देश के 125 करोड़ लोगों कों मेकइन इंडिया ,स्किल इंडिया और र्स्टा टरअप इंडिया का सपना एक साथ देखना चाहिये ।बातें और हैं ,सपने भी और हैं, ये भी बहस का मुद्दा नही है कि ये आशाऐं दिल से जगाई गयीं हैं या केवल नेताओं के आदतन बोल ही हैं ?लगभग हर महीने लाई जा रही एक नई योजना और रेलवे सहित अन्य क्षेत्रों मे लगाए जा रहे अतिरिक्त शुल्कों से क्या जमीनी हकीकत बदली है ? पिछले दो बजटों और 21 महीने के सफर को देख कर यही लगता है कि हिंदुस्तान के लोगों को स़िर्फ और स़िर्फ अच्छे शब्द, अच्छे वाक्य, अच्छे सपने ही मिलें हैं ।तो फिर सवाल खड़ा होता है कि नरेंद्र मोदी हमारे लिये एक अलग तरह के प्रधानमंत्री कैसे हुये ? आर्थिक मोर्चे पर सरकार के कुछ फैसलों से बढ़ी जटिलता ने सरकार के आर्थिक दर्शन के सम्बंमध मे भ्रामक संकेतों का प्रसार किया है ।सत्ता मे आने के पूर्व नरेन्द्र मोदी समेत तमाम भाजपा नेताओं ने 100 दिन के अंदर काला धन वापस लाने का ऐलान किया था ।लेकिन सरकार मे आने के बाद सब के सुर बदल गये ।
दरअसल ढाई दर्जन के करीब स्कीमों के मिशन और अभियानों से लदी-फदी सरकार उस जमीनी असर की तलाश में बेचैन है जो इतनी कोशिशों के बाद नजर आना चाहिए था। विदेशी निवेश भी उम्मीद के अनुरूप न आए और न ही विनिवेश की गाड़ी ही उस रफ्तार में आगे बढ़ पाई। जबकि सरकार के ऊपर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। केवल सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए सरकार को एक लाख करोड़ रूपयों से ज्यादा की रकम चाहिए। रेल और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर अब तक मोदी सरकार ने पानी की तरह पैसा बहाया है, जबकि ग्रामीण भारत की सुध लेने की जहमत नहीं उठाई गई है। आने वाले समय में यूपी, पष्चिबम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं, जहां का हर 10 में से 6 वोटरों गांवों में रहता है।कहा जा रहा है कि सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था के और बिगडऩे का इंतजार किया । कृषि बीमा की पहल का का हृदय से स्वागत लेकिन अगर खेती की चुनौतियों को वरीयता में रखना हो तो शायद कुछ और ही करना होगा। फसल बीमा जरूरी है और नई स्कीम पिछले प्रयोगों से बेहतर है, फिर भी भारत में फसल बीमा का अर्थशास्त्र, स्कीमों की जटिलताएं और तजुर्बा, इनकी सफलता को लेकर बहुत मुतमइन नहीं करता।खेती को लेकर पिछले छह दशकों की नसीहतें बताती हैं कि बहुत सारे मोर्चे संभालने की बजाए खेती के लिए समयबद्ध कदम पर्याप्त होंगे। अगर अगला बजट खेती के प्रति संवेदनशील है तो उसे सिंचाई क्षमताओं के निर्माण को मिशन मोड में लाना होगा।क्यों कि सिर्फ 35 फीसदी सिंचित भूमि और दो-तिहाई खेती की बादलों पर निर्भरता वाली भारतीय कृषि, बाजार तो क्या किसान का पेट भरने लायक भी नहीं रहेगी।दरअसल बारहवीं योजना के दस्तावेज के मुताबिक देश में करीब 337 सिंचाई परियोजनाएं लंबित हैं। जिनमें 154 बड़ी, 148 मझोली और 35 विस्तार व आधुनिकीकरण परियोजनाएं हैं।किसानों का असली भला तब होगा जब मोदी सरकार कृषि लाभकारी कैसे हो, इसका आसान खाका पेश करे ।जिसमे किसान को उसकी उपज का सही मूल्य मिले या उसकी कृषि लागत सस्ती हो जाये ।

पिछले वर्ष सरकार के अच्छे दिन लाने के वादे के चलते करदाताओं ने इंकम टैक्स स्लैब में 5 लाख रुपए तक की राशि पर टैक्स में छूट की उम्मीद की थी। लेकिन, सरकार ने इस सीमा को 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख कर दिया थां ।अब भी कारोबारी और कर्मचारी भी टैक्स स्लैब में किसी परिवर्तन की उम्मीद लगायें हैं । एनडीए के सत्ता में आने के महीने भर बाद जून, 2014 में कच्चा तेल एक बैरल 110 डॉलर पर बिक रहा था, जो 2015 के मध्य तक गिरकर 60 डॉलर पर आ गया। साल के अंत से अब तक यह 28 से 35 डॉलर प्रति बैरल की दर से बिक रहा है। भारत अपनी जरूरत का तकरीबन सारा तेल आयात करता है। यह बात सरकार के लिए बड़ी लाभकारी रही है, साथ ही कोयले से लेकर जिंक और तांबा तक अन्य जिंसों की कीमतों में भी गिरावट आई है जिसने सरकार को सहारा दिया है।अकेले तेल की कीमतों में आई गिरावट ने सरकार को आयात के मद में एक साल में 2 लाख करोड़ रु. बचा लेने का मौका दिया है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के दौरान पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने के चलते इस वित्‍तीय वर्ष मे सरकार के राजस्व में अतिरिक्त 3,700 करोड़ रु. का फायदा हुआ है।लेकिन अच्छेट दिन का लगातार सपने देख रही जनता को इसका लाभ सबकुछ बदलने वाली सरकार ने नही दिया ।इस लिये अब ये कहने मे हर्ज नही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जो आशाएं लगा रखी थीं, वे पूरी तरह से पूरी होती नहीं दिखाई दे रहीं । शेयर बाजार, जो मोदी के आने के बाद अचानक उछला था, अब गोते खा रहा है और लगातार लाल निशान पर खुल रहा है।औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, खेती की उपज, शेयर बाजारों में गिरावट की तल्ख हकीकत सामने आ चुकी है। आधुनिक इकोनॉमी यानी स्टार्ट-अप,पुरानी इकोनॉमी यानी मेक इन इंडिया और खेती अब तीनों सरकार से मंदी का इलाज करने वाला ड्रीम बजट चाहते हैं क्या वित्त मंत्री बड़ी परियोजनाएं, खर्च में तेज बढ़ोतरी और टैक्सों में कमी दे सकेंगे? अगर यह साहस नहीं दिखा तो वास्तविक अर्थव्यवस्था की ढलान स्टार्ट-अप इंडिया को बढऩे की तो छोड़िए, पांव टिकाने का मौका भी नहीं देगी ।दरअसल जेटली जो बजट पेश करेंगे, उसी से उनकी सरकार को आंका जाएगा और इसी बजट से शायद उन्हें सबसे ज्यादा याद भी रखा जाएगा।क्यों कि सरकार बदलने से सब कुछ बदल जाने के ख्यालीपुलाव की खुशबू अब खत्म हो रही है ।प्रधानमंत्री अब तक अपने मन की बात करते रहें हैं लेकिन अब समय आ गया है कि वह जनता के मन की बात भी सुनें ।
** शाहिद नकवी **

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh