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सेहतमंद भारत के लिये एक कवायद

Shahid Naqvi
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हम बचपन से ही हम सुनते आ रहे हैं कि सेहत कामयाबी की कुंजी है ।  किसी भी व्यक्ति को अगर जीवन में सफल होना है तो इसके लिए सबसे पहले उसके शरीर का सेहतमंद होना जरूरी है।इसी बात को अमली जामा पहनाने के लिये ही स्वस्थ भारत ट्रस्ट की ओर से देश मे स्वस्थ भारत यात्रा का आयोजन किया जा रहा है।प्रधानमंत्री मोदी के बेटी बचाओ अभियान को आगे बढ़ाने को मकसद से स्वस्थ बालिका स्वस्थ समाज का संदेश देने के लिये ये अपने तरह की अनोखी साईकिल यात्रा है.ये यात्रा दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क वाले स्थान खारदंगला से शुरू होगी। यात्रा मे कई साइकिल यात्री शामिल रहेगें लेकिन स्वस्थ बालिका स्वस्थ समाज का संदेश देने के लिये एवरेस्टर डा.नरिन्दर सिंह खास तौर से पूरी यात्रा मे मौजूद रहेगें। बालिका सेहत के प्रति लोगों को जागरूक करना और देश के गांवों के एक एक मजरे मे रहने वाली लड़ियां सेहतमंद रहें ,प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्टों मे से एक है। 24 अगस्त से शुरू हो कर 30 जनवरी 2017 चलने वाली ये यात्रा देश मे 16291 किलोमीटर की दूरी तय कर के देश के 140 शहरों और कई राज्यों से गुज़रेगी। 17 अगस्त को इसकी सांकेतिक यात्रा दिल्ली मे निकाली जायेगी.जिसमे करीब 300 बालिकायें भी शामिल रहेगीं। खारदंगला सबसे ऊंची सड़क वाला स्थान हैं.इस लिये यात्रा कश्मीर घाटी के कई इलाकों से गुज़रेगी.जम्मू कश्मीर मे यात्रा को सफल बनाने के लिये राज्य के भाजपा अध्यक्ष सत शर्मा और जम्मू जिला भाजपा अध्यक्ष बलदेव शर्मा ने उचित सहयोग का भरोसा दिलाया है। इस यात्रा के राष्ट्रीय संयोजक रिज़वान रज़ा बनाये गये हैं जो 54 साल के जुझारू व्यक्ति हैं। श्री रज़ा देश के पूर्वोत्तर इलाके मे काफी सक्रिय रहे हैं.राजनीतिक व्यक्ति होने के बाद भी समाजिक गतिविधियों मे भी गहरे से जुड़े रहते हैं। इस मामले मे वह पार्टी की सीमाओं को भी तोड़ देते हैं और समाज मुद्दों को हल करने के लिये किसी भी राजनीतिक दल के लोगों से मिलने मे परहेज़ नही करते हैं। इस यात्रा को सफल बनाने के लिये वह केन्द्रीय मंत्रियों से लेकर भाजपा नेताओं और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से मिल चुके हैं।

यात्रा के राष्ट्रीय संयोजक श्री रज़ा ने फोन पर बातचीत के दौरान बताया कि पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ,केन्द्रीय मंत्री डा.जितेन्द्र सिंह और सहयोग के संयोजक नवीन सिंहा ने भी पूरा सहयोग देने का भरोसा दिलाया है.स्वस्थ भारत ट्रस्ट के चेयरमैन और राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष सिंह और उत्तर भारत संयोजक ऐश्रर्या सिंह ने इस यात्रा की इबारत लिखी है। देश मे तेज़ी से बदलते सामाजिक परिवेश मे महिलाओं की भूमिका अब हर क्षेत्र मे बढ़ गयी है। खेल के मैदान से राजनीति के अखाड़े तक , सेना मे पुरूषों के साथ कदमताल ,सड़क पर आटो और बस से लेकर रेल पटरी पर रेल इंजन दौड़ाती तो आसमान मे हवाई जहाज को मंज़िल तक पहुंचाती महिलायें आपको मिल जायेगी। यानी घर की चारदीवारी से निकल कर महिला आज नयी भूमिका मे समाज को दिशा देने का काम कर रही है.यही नही मुसलिम और दलित महिलायें भी हर क्षेत्र मे अपना डंका बजा रही है। विपरीत हालातों के बावजूद महिलायें निजी और सार्वजनिक जीवन मे आगे बढ़ रही हैं।15 से49 वर्ष की महिलाओं मे साक्षरता दर भी बढ़ी है तो सिक्किम और पश्चिम बंगाल मे70 से 90 फीसदी महिलायें परिवार मे निर्णायक भूमिका निभा रही है। लेकिन चमकदार आंकड़ों की रोशनी मे कुछ स्याह पहलू भी हैं। दुनिया के कुछ संपन्न देशों में महिलाओं की स्थिति के बारे में हुए एक शोध में भारत आख़िरी नंबर पर आया है ।घरेलू हिंसा ,दहेज हत्या और बलात्कार की घटनाओं मे सालाना वृद्धि 11 फीसदी से ज़्यादा है। कहा जाता है कि भारत मे हर 20 मिनट मे एक महिला बलात्कार की शिकार होती है। बात जब महिलाओं के सेहत की आती है तो सारा उत्साह काफूर हो जाता है। देश में मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाएं उन व्यक्तियों को व्यापक और पर्याप्त पैमाने पर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हैं, जिन्हें इनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।यानी महिलाओं की स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले मे आज भी हम फिसड्डी हैं। प्रसव के समय शिशू मृत्यू दर प्रति एक हज़ार पर 52 है जबकि श्रीलंका जैसे देशों मे 15और नेपाल मे प्रति हज़ार 38 है। चिकित्सा पर व्यय 86 प्रतिशत तक लोगों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। जाहिर है कि देश मे स्वास्थय बीमा की पैठ कितनी कम है.ब्राजील जैसे विकासलील देश मे अस्पतालों मे बेड की उपलब्धता 2.3 है जबकि भारत मे ये आकड़ा महज 0.7 को ही छू पाता है.जबकि पड़ोसी श्रीलंका मे ये आंकड़ा  3.6और चीन मे 3.8 बताया जाता है।एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15-1साल की उम्र की 51.4 फीसदी महिलाएं खून की कमी से ग्रस्त हैं तथा इसी आयु वर्ग में 41 फीसदी पोषण के अभाव में कम वजन की समस्या से जूझ रही हैं।  अमेरिका की बराबरी करने को आतुर भारत  स्वास्थ्य क्षेत्र मे उससे काफी पीछे है । अमेरिका में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 5711 डॉलर खर्च किये जाते हैं वहीं भारत में मात्र 1377 रुपए (करीब 29 डॉलर) ही खर्च किये जाते हैं। अन्य विकसित देशों में इग्लैंड 2317 डॉलर, स्विट्जरलैंड में 3847 डॉलर और स्वीडन में 2745 डालर खर्च किये जाते हैं ।नागरिकों की बेहतर सेहर को परखने का पैमाना देश में उपलब्ध चिकित्सकों की संख्या तथा अस्पतालों में बिस्तरों की उपलब्धता है। अमेरिका में जहां 300 व्यक्तियों पर 1 चिकित्सक उपलब्ध है वहीं भारत में 2000 व्यक्तियों पर एक चिकित्सक उपलब्ध है।भारत मे  प्रति 1850 व्यक्तियों के लिए सिर्फ एक बिस्तर उपलब्ध है जबकि यूरोप मे प्रति 150 लोगों पर अस्पतालों मे एक बिस्तर  उपलब्ध है।

उपलब्ध आंकड़ों की अगर बात की जाये तो देश मे चार लाख डाक्टरों , सात लाख से अधिक बेड और 40 लाख नर्सों की जरूरत है। केवल 68 प्रतिशत महिलाओं को ही प्रसव पूर्व अनिनार्य तीन जांच की सुविधा मिल पाती है। यही बात देश मे महिला डॉक्टरों पर भी लागू होती है । भारत में मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के मामले में छात्राएं पीछे नहीं हैं, लेकिन पोस्ट ग्रेजुएट तक यह तादाद घट कर एक तिहाई रह जाती है. इतनी बड़ी तादाद में डॉक्टरी पढ़ने के बावजूद देश में महिला डॉक्टरों की भारी कमी है।  भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदी बाई जोशी ने वर्ष 1886 में मेडिकल की डिग्री हासिल की थी। अब कोई 130 साल बाद मेडिकल कॉलेजों में दाखिलों के मामले में महिलाओं की तादात तो बढ़ी है लेकिन देश की लगातार बढ़ रही आबादी के अनुपात मे ये कम है । भारत में स्वास्थ्य के लिए मानव संसाधन शीर्षक एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में महिला डॉक्टरों की भारी कमी है। उनकी तादाद महज 17 फीसदी है, उसमें भी ग्रामीण इलाकों में यह तादाद महज छह फीसदी है। ग्रामीण इलाकों में दस हजार की आबादी पर महज एक महिला डॉक्टर है। उनके मुकाबले हर 10 हजार की आबादी पर पुरुष डॉक्टरों की तादाद 7.5 फीसदी तक है। समाज विज्ञानी डॉ. अमित भद्र ने इंडियन एंथ्रोपोलॉजिस्ट नामक पत्रिका में स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाएं शीर्षक एक अध्ययन में कहा है कि पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टरेट के स्तर पर पुरुषों व महिलाओं की तादाद में अंतर तेजी से बढ़ता है। इस स्तर पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की तादाद महज एक-तिहाई रह जाती है।

इसके उलट पाकिस्तान व बांग्लादेश में मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली महिलाओं की तादाद भारत से बेहतर क्रमश: 70 व 60 फीसदी है।एक अजब बात ये है कि पाकिस्तान में मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वालों में 70 फीसदी महिलाएं हैं। लेकिन वहां महज 23 फीसदी महिलाएं ही प्रैक्टिस करती हैं। यानी डॉक्टरी की डिग्री हासिल करने वाली ज्यादातर महिलाएं प्रैक्टिस नहीं करतीं। बांग्लादेश में वर्ष 2013 में 2,383 पुरुषों ने मेडिकल की डिग्री हासिल की थी जबकि ऐसी महिलाओं की तादाद 3,164 थी। इससे साफ है कि वहां भी ज्यादातर महिलाएं मेडिकल की पढ़ाई के लिए आगे आ रही हैं।एक दूसरे ताजा अध्ययन में कहा है कि डॉक्टरी के पेशे में अब भी पुरुषों की प्रधानता है। इसकी मुख्य वजह ये बतायी गयी कि देश मे कामकाजी घंटों का ज्यादा और अनियमित होना है। इसी वजह से महिलाएं अपने पेशे और घरेलू व सामाजिक जिम्मेदारी के बीच तालमेल नहीं बिठा पातीं। मेडिकल पेशे में आने वाली ज्यादातर महिलाएं स्त्री-रोग या बाल रोग विशेषज्ञ बनने को तरजीह देती हैं।।अघ्ययन मे ये भी कहा गया है कि  सामाजिक व घरेलू जिम्मेदारियों के दबाव में एमबीबीएस करने वाली महिलाएं उच्च-अध्ययन या प्रैक्टिस करने से पीछे हट जाती हैं।वहीं दूसरी ओर लगातार बड़ रही कैंसर और गम्भीर बीमारी पर अपनी क्षमता से अधिक खर्च करने कारण देश मे प्रतिवर्ष पांच करोड़ के करीब लोग निर्धनता के स्तर पर आ रहे हैं।देश मे गम्भीर रोगों का सटीक इलाज आज भी सरकारी अस्पतालों मे पूरी तरह उपलब्ध नही है।देश मे सस्ती और बेहतर  स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सभी सरकारों को एक स्पष्ट नीति बनाने की जरूरत है ।बहरहाल आंकड़ों की ज़बानी के बीच प्रधान मंत्री मोदी का बेटियों की बेहतर सेहत पर ज़ोर देने का कुछ सार्थक नतीजा निकल सकता है।इसी कड़ी मे जागरूकता पैंदा करने वाली स्वास्थ बालिका स्वस्थ समाज का संदेश देने वाली यात्रायें भी सरकार के काम और मकसद को आसान बना सकती हैं।

**शाहिद नकवी**

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