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नदियों की धारा को रोकने मे नाकाम हैं बांध

Shahid Naqvi
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आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश को उर्जा सम्पन्न बनाने के लिये उर्जा के कई विकल्पों पर जोर दिया था।शयद इसी लिये उन्होने बड़े बांघों का सपना दिखाया ,जिसे देश की तरक्की और किसानों की खुशहाली का जरिया बताया था।राजनीतिक तौर पर ना देखें तो इसे पंडित नेहरू की प्रेरणा का ही नतीजा माना जाना चाहिये कि आजादी के 69 सालों में दुनिया में बड़े बांधों के निर्माण के मामले में भारत अमरीका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गया है।बड़े बांधों से बिजली उत्पादन और उनसे होने वाले सिंचित क्षेत्र के रकवे के आंकड़े देखने मे बहुत उत्साहित भी करतें हैं।इसी के चलते तकनोलॉजी को अभिशाप मानने वाले पर्यावरणविदों के तमाम विरोध के बावजूद देश मे एक अनुमान के मुताबिक 4500 से अधिक बांधों का र्निमाण हो गया।यहां तक कि अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर जब भी वाशिंगटन के ग्रैंड कोली, स्विट्जरलैंड में बना लूजोन डैम और चीन के हुबेई प्रांत में यांग्तजी नदी पर बने थ्री जॉर्ज्स डैम की बात की जाती है तो भारत के विशाल टिहरी बांध बांध, भाखड़ा नांगल बांध, महानदी पर बने ओडीशा के हीराकुद जो दुनिया के सबसे लंबे बांधों में से एक है और मध्य प्रदेश के बाणसागर बांध का भी नाम लिया जाता है।लेकिन इसका नकारात्मक पक्ष यह भी है कि आज भी देशभर के किसानों के लगभग 50 फीसदी खेतों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं है।सरकारी आंकड़े और विषेज्ञों की रपट इस बात की दलील है कि देश के तमाम बांधों का 33 फीसदी से अधिक पानी हर साल प्रयोग मे ही नही आ पाता है।जाहिर है कि हम लगातार बांधों का र्निमाण तो करते जा रहे हैं लेकिन अब तक बांध प्रबंधन का सलीका नही सीख सके।जिसके चलते देश मे बड़े बांध अपने मकसद मे खरे नही उतर रहे हैं।बांधों की एक खासियत ये भी गिनायी जाती है कि बांध से बाढ़ को रोका जा सकता है।ये सही है कि बांध सालाना बाढ़ को अक्सर रोक सकते हैं, लेकिन से भी उतना सच है कि बांध से अचानक पानी छोड़ने की वजह से कई इलाकों में बाढ़ आती है।मौजूदा मानसून के दौरान ऐसे हालात देश के कई राज्यों मे पैदा भी हुये।यहां पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस धारणा को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि बिहार में बाढ़ के कारण हर साल होने वाली तबाही की मुख्य वजह फरक्का बांध है।नीतीश कुमार ने ये बात दिल्ली जा कर कही और दलील दी कि इस बांध की वजह से अत्यधिक सिल्ट जमा हो जाने से गंगा उथली हो गई है, लिहाजा अपस्ट्रीम में पानी का डिस्जार्च बढ़ते ही बाढ़ आ जाती है।कुछ विशेषज्ञ भी यूपी और बिहार की सालाना तबाही के लिए इस बांध को ही जिम्मेदार मानतें हैं।अगर हम पिछले कुछ वर्षों के बाढ़ के दिनो के हालात पर गौर करें तो हमें पता चलेगा कि सबसे अधिक विनाशक और जानलेवा बाढ़ प्रायः वहॉं आई है जहॉं तटबंध टूटे हैं, बांध से बड़े पैमाने पर पानी छोड़ा गया है या बांध टूटे हैं या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं।. बाढ़ की एक वजह है अधिक वर्षा को भी माना जा सकता है।लेकिन पिछले कुछ सालों के आंकड़ें गवाह हैं कि बारिश कम हुई, लेकिन बाढ़ से तबाह हुए इलाके में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। बांग्लादेश के बाद भारत दुनिया का सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित देश है।गृह मंत्रालय की एक रपट के अनुसार 35 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में से 23 राज्य बाढ़ की दृष्टि से अति संवेदनशील है।देश की सभी नदी घाटियां बाढ़ के दृष्टि से संवेदनशील हैं। एक अध्ययन के अनुसार देश मे हर साल बाढ़ से औसतन साढ़े बारह सौ लोग मरते और पचहत्तर हजार से ज्यादा मकान गिरते हैं। ये आंकड़े जहां लगातार बिगड़ती स्थिति का संकेत देते हैं, वहीं प्रकृति से छेड़छाड़ के गुनाह के परिणामों से निपटने की दिशा में सही तैयारी का अभाव भी उजागर करते हैं।साल 2016 की मानसूनी बारिश और देश के तमाम इलाकों मे आयी बाढ़ के रूख , बाढ़ग्रस्त भूमि के बढ़ते क्षेत्र को देख कर कुछ विषय विशेषज्ञों की इस राय से सहमत हुआ जा सकता है कि बांध भी बाढ़ लाते हैं!जिन बांधों का एक फायदा कभी बाढ़ नियंत्रण गिनाया जाता था, अब वही बाढ़ के कारण बनते जा रहे हैं. मध्य प्रदेश का ही उदाहरण लें, तो नर्मदा पर कई बांध बन गए हैं। बरगी बांध, इंदिरा सागर बांध और ओंकारेश्वर बांध से पानी छोड़ने और उसके बैकवाटर के कारण नर्मदा में मिलने वाली नदियों का पानी आगे न जाने के कारण गांवों या खेतों में घुस जाता है। सितंबर 2010 में टिहरी बांध के बैराज खोलने से हुए नुकसान की यादें आज भी ताजा हैं।कुछ साल पहले मच्छू बांध टूटने पर मोरवी शहर के तहस-नहस होने की तस्वीर भी बहुत से लोगों के जेहन मे होगी।बरसों पहले पंजाब के एक बड़े भाग में आई प्रलयंकारी बाढ़ मे भारी धन,जन और फसलों के नुकसान के बाद जब बाढ़ के कारणें की पड़ताल की गयी तब भी सही तथ्य सामने आये थे कि भाखड़ा व उसके सहायक बांधों से अधिक पानी छोड़े जाने की इस बाढ़ में महत्वपूर्ण भूमिका थी। दामोदर घाटी कारपोरेशन के बांधों के रिकॉर्ड भी यही बताते हैं कि बाढ़ नियंत्रण में उन्हें भी दिक्कत होती रही है।चलीये बांधों को लेकर एक और आंकड़े पर गौर करते हैं, सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 1951 में बाढ़ग्रस्त भूमि की माप एक करोड़ हेक्टेयर थी!लेकिन 1980 आते आते ये आंकड़ा चार करोड़ पर पहुंच गया था जो लगातार साल दर साल बढ़ ही रहा है।इसमे से 8 लाख हेक्टेयर भूमि प्रत्येक साल बाढ़ से प्रभावित होती है।अगर बांध बाढ़ रोकते तो ये रकवा कम होना चाहिये।एक गैर सरकारी आंकड़े के मुताबिक आजादी के बाद से अब तक बाढ़ पर सत्तर हजार करोड़ से अधिक की रकम खर्च की जा चुकी हैंबाढ़ नियंत्रण उपाय के रूप में तटबंधों की एक तो अपनी कुछ सीमाएं हैं तथा दूसरे निर्माण कार्य और रखरखाव में लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण हमने इनसे जुड़ी समस्याओं को और भी बहुत बढ़ा दिया है। तटबंध द्वारा नदियों को बांधने से जहॉं कुछ बस्तियों को बाढ़ से सुरक्षा मिलती है वहीं कुछ अन्य बस्तियों के लिए बाढ़ का संकट बढ़ने की संभावना भी उत्पन्न होती है। अधिक गाद लाने वाली नदियों को तटबंध से बांधने में नदियों के उठते स्तर के साथ तटबंध को भी निरंतर ऊँचा करना पड़ता है। जो आबादियों, तटबंध और नदी के बीच में फंसकर रह जाती हैं, उनकी दुर्गति के बारे में जितना कहा जाए कम है। । देश मे बाढ़ से गंगा घाटी का उत्तरी हिस्सा सर्वाधिक प्रभावित होता है। इसके लिए उसकी सहायक नदियां जिम्मेदार हैं। इस घाटी के सर्वाधिक प्रभावित राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल हैं। गंगा के अलावा शारदा, राप्ती, गंडक और घाघरा की वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ़ आती है। यमुना की वजह से हरियाणा, दिल्ली प्रभावित होता है। बढ़ी, बागमती, गंडक और कमला अन्य छोटी नदियों के साथ मिल कर हर साल बिहार में बाढ़ का खौफनाक मंजर पेश करती हैं। बंगाल की तबाही के लिए महानंदा, भागीरथी, दामोदर और अजय जैसी नदियां जिम्मेदार हैं। ब्रह्मपुत्र और बराक घाटियों में पानी की अधिक मात्रा होने से इन नदियों के आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ आती है। ये अपनी सहायक नदियों के साथ पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों असम और सिक्किम को प्रभावित करती हैं।इस की वजह से बना डेल्टा क्षेत्र बेहद घनी आबादी का है बड़ी तबाही की वजह भी यही है।बिलकुल ताज़ा उदाहरण देखिये, साउथ एशिया नेटवर्क आन डेम्स, रिवर्स एंड पीपुल ने हाल ही में बताया कि वास्तव में बांध भी बाढ़ का बड़ा कारण हैं।उत्तर प्रदेश और बिहार में क्या हुआ?बरसात मध्य प्रदेश मे हुयी लेकिन वहां के साथ ही इन प्रदेशों मे भी तबाही हुयी।बिहार मे तो तब तक सामान्य से 14 प्रतिशत बारिश कम हुई थी, फिर भी गंगा नदी में बाढ़ आई और पटना डूबने लगा।दोनो राज्यों मे 25 लाख के आसपास लोग बाढ़ से हलाकान रहे।उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, बनारस, गाजीपुर, मिर्जापुर आदि जिलों मे तो कई दिनों तक पानी कम ही नही हुआ।हजारों मकानों की एक मंजिल पानी मे डूबी रही।जबकि उस दौरान इन इलाकों मे बहुत कम बारिश हुयी या हुयी ही नही। बिहार में आई बाढ़ को पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर बने फरक्का बांध ने और यूपी की बाढ़ को मध्यप्रदेश में सोन नदी पर बने बाणसागर बांध ने विकराल रूप दिया , क्योंकि लाखों घन मीटर पानी इकठ्ठा करके छोड़ देने के कारण पानी नदी के तटों-किनारों से बाहर निकल आया।अगर हम आजादी के बाद पं. नेहरू के दिखाये सपनों की बात करें तो कह सकते हैं कि बांध तो विकास के लिए बनता हैं।लेकिन ये कैसा विकास जिसने लाखों लोगों का घर, सुकून, सामान, मंदिर, पेड़, आजीविका, फसल क्यों छीन ली? देश मे बांधों के संचालन में लापरवाही के तमाम आंकड़ें हैं लेकिन विकास विशेषज्ञों को ये कभी दिखती नही इस लिये जांच भी नही होती।अगर बेहतर संचालन होता तो बाणसागर बांध से 10 लाख क्यूमेक पानी छांड़ने की जरूरत ही ना पड़ती। विकास विशेषज्ञों को यह अंदाजा कभी नहीं होता है कि जब पानी छोड़ा जाएगा, तब वह कहां और कितनी तबाही ला सकता है।वह तो केवल आंकड़ों की कहानी जानते हैं और हर बार उसे पेश कर के अपना बचाव कर लेतें हैं।दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि बड़े बांधों की सबसे बड़ी मुसीबत है कि ये अपने निर्माण के एक दशक के बाद पानी देना कम कर देते हैं। कारण कि उनमें बड़ी मात्रा में ंगाद भर जाती है। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, उसी मात्रा में तेजी से बांध में गाद की मात्रा का भी भराव बढ़ते जाता है और इसके चलते पानी का संग्रह कम होता जाता है।अंत में ये बड़े बांध सफेद हाथी बन कर रह जाते हैं।नीतीश कुमार ने भी यही बात कही है। यह माना जाता रहा है कि गाद निकालने की लागत बांध के निर्माण से भी अधिक आती है।इसी लिये अब तक राज्य से लेकन केंद्र सरकार ने बड़े बांधों से गाद निकालने की पहल नहीं की है।बड़ी तबाही के बाद अब पहली बार केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश सहित देश के सात राज्यों के सवा दो सौ बड़े बांधों का पुनरुद्धार करने और गाद निकालने का निर्णय लिया है।यह देखने वाली बात होगी गाद निकालने के बाद इन बांधों की सिंचाई की आयु और कितने साल बढ़ती है।यहां पर ये कहा जा सकता है कि देश मे बाढ़ महज प्राकृतिक प्रकोप नहीं, बल्कि मानवजन्य त्रासदी भी है। इस पर अंकुश लगाने के लिए गंभीरता से सोचना होगा,दरअसल हमारे सहां नदियों के प्राकृतिक बहाव, तरीकों, विभिन्न नदियों के ऊंचाई-स्तर में अंतर जैसे विषयों का निष्पक्ष अध्ययन किया ही नहीं गया है।इस लिये नदियों के जल-भराव, भंडारण और पानी को रोकने और सहेजने के परंपरागत ढांचों को फिर से खड़ा करना होगा। पानी को स्थानीय स्तर पर रोकना, नदियों को उथला होने से बचाना, बड़े बांध पर पाबंदी, नदियों के करीबी पहाड़ों के खनन पर रोक और नदियों के प्राकृतिक मार्ग से छेड़छाड़ रोक कर ही हम बाढ़ की विभीषिका का मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं।वर्ना कुछ घंटे की बारिश मुंबई,दिल्ली,भोपाल,गुड़गांव,चेन्नई और श्रीनगर जैसे शहरों को बाढ़ में डुबोती रहेगी है।
*** शाहिद नकवी ***

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