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जिंदगी रोज आधुनिक होती है और रोज बदलती जाती है।यही वजह है कि हम अपनी कला, संस्कृति को भूलते जा रहे हैं।अपनी संस्कृति और विरासत की उपेक्षा करना एक तरह की आधुनिकता बन गयी है। आधुनिकता की चकाचौंध ने भारतीय परंपरा और त्यौहारों के को तहस-नहस कर दिया है।यही कारण है की सदियों से चली आ रही पुरानी रिवायती वस्तुएं अपने वजूद से कोसो दूर भाग रही है।आधुनिकता का असर दिपावली जैसे पर्वों पर भी पड़ा और वह रिवायतों से दूर होती जा रही है।यही वजह है कि मिट्टी के दीपों की जगह बिजली के बल्बों और मोमबत्तियों ने ली है।दीयों को रंगों से चमकाने वाले कुम्हार भी आधुनिकता और मशीनीकरण की चपेट में आ गए हैं। क्योंकि कभी यही उनकी आय का जरिया था।समय का फेर देखिए दीयों के बजाय मोमबत्तियों को लोगो ने महत्व देना शुरू कर दिया और रंगबिरंगी रोशनी से सजावट का चलन इतना ज्यादा हो गया है कि दिये घरों से गायब होने शुरू हो गये।लोग शायद भूल रहे है कि पर्यावरण को शुद्ध बनाने में घी या तेल के दीयों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है।इन्हीं दियों के चलते कईयो के घर में दो जून की रोटी बनती है। आधुनिक परिवेश में मिट्टी को दीए का आकार देने वाला कुम्हार बदहाल है।जिस मिट्टी की सोंधी खुश्बू के बीच हम पल बढ़ कर बड़े हुए हैं उसी मिट्टी से हमारा मोह कम होता जा रहा है।यानी बदलते वक्त के साथ हमारी तहजीब और संस्कृति पर आधुनिकता का मुलम्मा चढ़ गया है।लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मेकइन इंडिया का नारा इस दिवाली उन लोगो के चेहरे पर मुसकान ला सकता है जो इस माटी से जुड़े लोंग हैं और उसी माटी से दिये बना कर हमे उसी माटी से जोड़े रखना चाहते हैं।हमें नफा-नुकसान को भूल कर इस भावना को सही अर्थों मे समझने का ये सही अवसर है।सस्ते चीनी माल की वजह से हमारी पारम्परिक दिवाली के असल प्रतीक मिट्टी के दिये और इस व्यवसाय से जुड़े लाखों परिवार प्रभावित हो रहें हैं।इस लिये दिवाली के अवसर पर मेकइनइंडिया का मतलब केवल चीनी उत्पादों के बहिष्कार से ही नही लगाया जाना चाहिये,वरन इस के पीछे छिपी इस भावना से कि हर घर मे रोशन होने वाली दीपावली से लगाया जाना चाहिये।
भारत त्यौहार और मेलों का देश है। पूरे विश्व की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा त्यौहार मनाए जाते हैं।प्रत्येाक त्यौहार अलग अवसर से संबंधित है और सभी त्यौ्हारों में सबसे सुन्दार दीवाली प्रकाशोत्सहव है।दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति और इस दीपों की पंक्ति को दीपोत्सव भी कहते हैं।दीपावली का संबंध राम-रावण युद्ध की समाप्ति, समुद्र मंथन, दुर्गा की विजय, राम की अयोध्या वापसी से है।अन्याय पर न्याय की अधर्म पर धर्म की और नैतिकता वा मर्यादा की विजय का पर्व है।दीपावली भारत में मनाया जाने वाला एक ऐसा त्यौहार है जिसका केवल धार्मिक ही नही बल्कि सामाजिक महत्व भी है। वैसे तो दीपावली को हिंदुओं का पर्व कहा जाता है लेकिन आज के दौर में इसे भारत के हर धर्म के लोग मनाते हैं।दीपावली असत्य पर सत्य की जीत सहित रोोशनी का भी त्यौहार है, लेकिन एक सत्य यह भी है की हमारी माटी की महक पर चाईनीज सामान भारी पड़ गए हैं। इसी लिये दीपावली शब्द ही जिस दीप से बना है, उसके अस्तित्व पर आज ख़तरा मंडरा रहा है।जैसे-जैसे ज़माने का चलन परिवर्तित हो रहा है मिट्टी के दीए की कहानी आखिरी चरण पर है।कभी उत्सवों की शान समझे जाने वाले दीपों का व्यवसाय आज संकट के दौर से गुजर रहा है।वास्तव मे कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं लेकिन बदलती जीवन शैली और आधुनिक परिवेश में मिट्टी को आकार देने वाला कुम्हार आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है और दो जून की रोटी का मोहताज हो रहा हैं।समय की मार और मंहगाई के चलते लोग अब मिट्टी के दीये उतने पसंद नहीं करते।चीन में निर्मित बिजली से जलने वाले दीये और मोमबत्ती दीपावली के त्योहार पर शगुन के रुप में टिमटिमाते नजर आते हैं।शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक चायनीज दीये की मांग हर साल बढती ही जा रही है।आज हमारे दिये ही नही लक्ष्मी-गणेश भी चीन से आयात हो रहे हैं।क्या ये हमारा विश्वबंधुत्व है कि वे कहीं से भी आएं और उन्हें कोई भी बनाए, हम उन्हें उसी तरह सिर माथे पर बिठा रहे हैं। हमें किसी से कुछ सीखने और उसे प्राप्त करने में गुरेज नहीं है।
दीपावली के बारे मे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहा जाता है कि वर्षा ऋतु के समय पूरा वातावरण कीट-पतंगों से भर जाता है। दीपावली के पहले साफ-सफाई करने से आस-पास का क्षेत्र साफ-सुथरा हो जाता है।कई प्रकार के कीड़े-मकोड़े एवं मच्छर नष्ट हो जाते हैं तथा दीपावली के दिन दीपों की ज्वाला से बचे हुए कीट-पतंगें भी मर जाते हैं। वही सामाजिक नजरिये से देखा जाए तो ये बात सामने आती है कि कार्तिक मास के अमावस्या से पहले ही किसान की फसल तैयार हो चुकी होती हैं और फसल काटने के बाद उनके पास आनंद एवं उल्लास का पूरा समय होता है। साल 2016 मे मानाई जानेवाली दिवाली बहुत अहम है,उनके लिये भी जो केवल सामाजिक समरसता के लिये दीपोत्सव मे शरीक होतें हैं।हमें तय करना है कि नफरत और अज्ञान के अंधेरे मे हमारी बुध्दिमत्ता और सहिष्णुता का दीपक सदा कैसे टिमटिमाता रहे और खुशी वा समभाव के मौके कैसे पैदा कियें जायें।हमें अटूट भारत और अपार देश भक्ति का सबूत भी इस दिवाली देना है।क्यों कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में लोगों से अपील की है कि वे इस दिवाली पर मिट्टी के दीपक का उपयोग करें जिससे गरीब कुम्हारों के घरों में समृद्धि आए।हमसे भारी मुनाफा कमाने वाले चीन को भी ये बात समझ मे आ जाये कि वह हमसे नफरत और मुनाफा कमाने का काम एक साथ नही कार सकता है।साथ ही इससे पर्यावरण का तो लाभ होगा ही होगा और हजारों कुम्हार भाइयों को रोजगार का अवसर मिलेगा।दीपावली में मिट्टी के दीप अवश्य जलाएँ, बस हमे एक प्रण लेना है ये दिवाली देश के लिये दिवाली और देशी दिवाली है।हमें भारतीय परम्परा को जि़ंदा रखने का जूनून पैदा करना है।इस जुनून में आप भी अपने भारतीय होने की भूमिका जरूर निभायें।चीन का सामान कम से कम खरीदें जिससे भारत के गरीबों द्वारा बनाये गए सामान खरीदने का पैसा बच सके।यकीन जानिये आप अगर हम अब भी नही चेते तो शायद कुम्हार का घूमता हुआ चाक रुक जाएगा,मंहगाई और मरता हुआ व्यापार कहीं कुम्हारों को कहानी न बना दे।हजारों कुम्हारों के घरों मे दीपक क्या चूल्हे भी नहीं जल पायेंगे। कुम्हारों की ज़िंदगी की रोशनी टिमटिमाने लगेगी। कुम्हारों को राहत देनी तो दूर की बात है सरकार भी अभी तक कोई ठोस कदम भी नही उठाई है।अब समय आ गया है कि सरकार केवल अपील से काम ना चलाये वरन इस कुनबे के लिए गम्भीर हो कर सोचे।बहरहाल अब ये देखना है कि जिस मेड इन इंडिया की बात प्रधानमंत्री कर रहे है उनसे इन कुम्हारों का चाक फिर कब से घुमना शुरु करेगा।क्यों कि यह त्यौहार हमें बताता है कि यदि हम सामूहिक प्रयास करें तो इस समाज से अंधकार रूपी बुराई को भी मिटाया जा सकता है।
** शाहिद नकवी **
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