- 135 Posts
- 203 Comments
प्रकृति का असंतुलन और बिगड़ता पर्यावरण आज समूचे विश्य के लिये एक अहम समस्या है।बिगड़ती आबोहवा के दुष्परिणम मे हम ऐसी घटनाऐं देख रहें हैं जो मानव जाति के लिये खौफनाक मंजर पैदा कर रही हैं।बावजूद इसके हम बरसों से केवल चिंता कर रहे हैं,धरातल पर जो प्रयास होना चाहिये उसका प्रतिशत काफी कम है।आने वाली पीढ़ी के लिये हम रूपया और सम्पत्ति कमा कर रख्रना तो चाहतें हैं लेकिन उनके लिये खुशनुमा वातावरण और जीने लायक आबोहवा नही छोड़ना चाहते हैं।क्या हमने कभी ये सोचा है कि जब कुदरत ही हमसे रूठ जायेगी तो ये धनदौलत किस काम आयेगी।हर बड़े पर्व के बाद और खासकर सर्दियों मे पर्यावरण पर चिंतन-मनन होता है,समाधान के लिये कदम बढ़ते हैं लेकिन रस्म अदायगी के बाद वह थम जाते हैं।अगर ऐसा नही होता तो करीब 44 साल पहले दुनियां ने पर्यावरण प्रदूषण पर चिंता जाहिर की थी और संयुक्तराष्ट्र संघ ने स्काटाहोम मे पहला विष्य पर्यवरण सम्मेलन आयोजित किया था।शामिल होने वाले 119 देशों मे भारत भी था और तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व. इंद्रिरा गांधी ने प्रभावशाली भाषण दिया था। लेकिन इसके बावजूद इन साढ़े चार दशकों मे हम जंगल,जल,जमीन और पहाड़ को उसी स्वरूप मे नही रख सके जिस तरह प्रकृति ने हमें उन्हें सौपा था।शायद ये आंकड़ा आपको चौका दे कि आज दुनियां के देशों मे 50 करोड़ से अधिक आटोमोबाइल का प्रयोग हो रहा है।एक पुराने सर्वे के मुताबिक इनमे उपयोग हो रहा ईंधन प्रदूषण का एक बड़ा कारण है।इसी सर्वे मे कहा गया है कि पर्यावरण नियंत्रण के सभी नियमों के बाद भी विकसित देशों में 150 लाख टन कार्बनमोनो ऑक्साइड 10 लाख टन नाइट्रोजन ऑक्साइड और 15 लाख टन हाइड्रोकार्बन प्रति वर्ष वायुमंडल में पहुँचते हैं।
ईंधनों के जलने से कार्बन मोनो ऑक्साइड की जो मात्रा वायुमंडल में आती है, वह अरबों टन प्रतिवर्ष है। संसार में 70 प्रतिशत वायुमंडल प्रदूषण विकसित देशों के कारण हो रहा है। पूरी दुनिया तेजी से बढ़ते प्रदूषण और उसके मानव जीवन पर पड़ते प्रतिकूल प्रभाव से परेशान हैं तो भाला भारत के जनसामान्य मे अभी तक क्यों नहीं वह बेचैनी दिख रही है जो दुनियां के दूसरे देशों मे दिख रही है? ये सवाल इस लिये जायज है क्योकि पूरी दुनिया में स्टाकहोम से लेकर जिनेवा तक पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर समझौतें हो रहे हैं पर सवाल है कि भारत कब इस ओर ध्यान देना शुरू करेगा क्योकि दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर कहीं और नहीं बल्कि खुद भारत में मौजूद हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती हैं कि शीर्ष 20 में 13 शहर अकेले भारत में मौजूद हैं।भारत में वायु प्रदूषण का भयावह स्तर अमेरिका के येल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन की रिपोर्ट में हाल ही में बताया गया है कि दिल्ली ने वायु प्रदूषण के मामले में विश्व के कई देशों को मात दे दी है।साफ जाहिर है कि वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों में सबसे खस्ताहाल है।यानी प्रदूषण के मामले में भारत के मुकाबले पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका की स्थिति बेहतर है। वायु प्रदूषण से फेफड़े का कैंसर अस्थमा, श्वसनी शोथ, तपेदिक आदि अनेक बीमारियाँ हो रही है। आज दिल की बीमारी के बाद फेफड़ों और कैंसर सबसे बड़ी घातक बीमारी है। लगभग 80 प्रतिशत कैंसर प्रदूषित वातावरण के कारण है।हानिकारक रासायनिक पेट्रोल, डीजल, कोयला, लकड़ी, उपलों, सिगरेट आदि का धुआँ कैंसरकारी है।माना जाता है कि इसी कारण भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या लगभग 20 लाख हैं।
राष्ट्रीय पर्यावरण यांत्रिकी अनुसंधान संस्थान यानी नीरों के आंकड़े भी हमारे वर्तमान और भविष्य के लिये के लिये डरावने हैं।नीरों के मुताबिक मुंबई और दिल्ली में कार्बन मोनो ऑक्साइड की सांद्रता 35 पी.पी.एम. तक अधिक है, जबकि इसकी 25 पी.पी.एम. जहरीलेपन के लिये पर्याप्त है और 9 पी.पी.एम. स्वीकृत सीमा है। नीरों का ये भी मत है कि विषैली गैसें दिल्ली के नजफगढ़, राजस्थान के पाली, महाराष्ट्र के चेंबूर,बिहार के धनबाद,उत्तर प्रदेश के सिंगरौली और पंजाब के गोविंदगढ़ में विनाशकारी सिद्ध हो रही हैं।एक अन्य अध्ययन के अनुसार जो लोग प्रदूषित गंगा में नहाते हैं उनमें पानी से होने वाले रोग अधिक हैं।सर्वे के अनुसार बनारस की आबादी में सेंपिल जाँच में 14.4 प्रतिशत लोग डायरिया से पीड़ित रहते है।आंकड़े बताते है कि देश मे पिछले तीन साल मे बच्चों मे फेफड़े की बिमारी बहुत तेजी से बढ़ी है।इस खतरनाक हालात के बावजूद भी दीपावली,शबेबरात जैसे त्योहारों और शादी के मौके पर आतिशबाजी में संयम बरते जाने की केन्द्र और राज्य सरकारों की सभी कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं।लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री की गयी स्वच्छ भारत-सेहतमंद भारत की अपील का भी देशवासियों पर खास असर पड़ता नही दिख रहा है।दिवाली की आतिशबाजी से दिल्ली,मुम्बई सहित देश के तमाम शहरों की आबोहवा जहरीली हो गई है।दीवाली की रौनक ख़त्म होने के बाद उससे जुड़ी परेशानियां सामने आती हैं। वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के चलते हर साल की तरह इसा साल भी लोग परेशान नज़र आये।दीवाली के पटाखे रौशनी के साथ धुआं और शोर लेकर आतें हैं।बताया जाता है कि पिछले पांच वर्षो मे पटाखों की मांग 10 गुना बढ़ी है।जिसके चलते इस बार वायु प्रदूषण का रिकार्ड टूट गया और आतिशबाजी से हवा में खूब जहर समाया। हमेशा की तरह इसका सबसे ज्यादा असर मरीज़ों, बच्चों और बुज़ुर्गों पर पड़ा. डॉक्टर कहते हैं कि हर साल इसी तरह दीवाली के बाद लोगों की सेहत पर असर पड़ता है।बीमार तो क्या स्वस्थ्य लोग भी प्रदूषण की चपेट में आने से बीमार पड़े जा रहे है।उत्तर भारत के राज्यों और महाराष्ट्र के साथ इस बार पूर्वोत्तर राज्यों मे भी प्रदूषण का खासा असर दिखा।पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी कभी सांस से परेशान लोगों की सेहत ठीक करने के लिए जाना जाता था।यही कारण था कि अंग्रेजों ने दार्जिलिंग जिले को स्वास्थ्य लाभ के लिए चुना था।लेकिन कटते जंगलों,बढ़ते वाहनों के साथ आतिशबाजी से यहां की भी आबोहवा जहरीली बनती जा रही है।पर्यावरण के क्षेत्र में सक्रिय संस्था नैफ के मुताबिक दार्जिलिंग जिले के कई इलाकों मे अब दृश्यता 110 से 142 के बीच दर्ज की गई।जबकि पहले ये 100 के आसपास होती थी। नैफ का दावा है कि दृश्यता का सही मानक को देखे तो यह 50 से अधिक नहीं होना चाहिए। इससे अधिक होने का अर्थ है कि वायु का प्रदूषित होना।यानी अब साफ हवा सिलीगुड़ी वालों का भी साथ छोड़ रही है।
देश राजधानी की क्या बात की जाये, दिवाली के बाद दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर माना जा रहा है। दूसरे नंबर पर फरीदाबाद फिर लखनऊ,कानपुर,पटना,मुम्बई और आगरा जैसे शहरों का नाम लिया जा सकता है।आज कल सुबह से दिल्ली एनसीआर में नुकसानदेह स्मॉग की चादर दिखने लगती है।समूची दिल्ली में हानिकारक रासायनों और धूल कणों यानी पीएम 10 व 2.5 का स्तर मानक से काफी ऊपर रहा।वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछली बार की तुलना में मौसमी दशाएं खराब होने से हालात बदतर रहे।वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि अब दिल्ली का वायु प्रदूषण सूचकांक बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है।हाल मे ही प्रदूषण सूचकांक 445 दर्ज होने के साथ दिल्ली देश की सबसे प्रदूषित शहर बना।दरअसल पटाखे सल्फर समेत कई जहरीले तत्वों के मिश्रण से बनाए जाते हैं। इनमें सल्फर की मात्रा सबसे अधिक रहती है लिहाजा जितना ज्यादा पटाखे छोड़े जाते हैं, हवा में सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर भी उतना ही बढ़ता जाता है।खास बात यह कि प्रधानमंत्री मोदी की महत्वकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान को जोर शोर से लागू करने के दावे के बावजूद लोगों ने दिवाली पर जमकर पटाखे छोड़े, जिसका असर अब सामने आ रहा है।विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में प्रत्येक वर्ष प्रदूषण जनित कारणों से करीब 6 लाख लोग असमय काल के गाल समा जाते हैं।
हालांकि, भारत में बहुत कम ही लोग इसकी भयावहता से परिचित हैं। इसलिए लोगों को जागरुक करने के मकसद से केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में इसे प्राथमिकता दी है और उन्हें यह बताना शुरू किया है कि वे जिस इलाके में निवास करते हैं, वहां की वायु गुणवत्ता कैसी है। इससे लोग खुद इस बारे में सजग हो सकते हैं और प्रदूषण को फैलने से रोकने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।इसी पर एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि फिलहाल देश के करीब 247 शहरों में कुछ हद तक एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग मेकेनिजम है जिससे आसपास की रोजाना की वायु गुणवत्ता को आसानी से जाना जा सकता है।बहरहाल हमारे लिए यह सब हैरानी भरा है।क्योंकि हमें लगा था कि तमाम प्रयासों के बाद जागरूकता बढ़ गई है और युवा भी पर्यावरण से प्रेम करने लगे हैं और पर्यावरण को नष्ट कर रहे पटाखों को न जलाने की लाख अपील की गई थी।उसके बाद भी पिछले वर्ष का रिकॉर्ड टूट गया।दरअसल पर्यावरण किसी एक के समझने से नहीं सुरक्षित रहेगा। इसके लिए सभी को सहयोग करना होगा। युवाओं के साथ परिजनों की सोच है कि एक दिन पटाखे जलाने से क्या होता है।जानकारों के मुताबिक जबकि पटाखों से सल्फर डाइआक्साइड, कार्बनडाइआक्साइड, मोनोडाइआक्साइड जैसी जहरीली गैस निकलती हैं, जो पृथ्वी पर जीव को नुकसान पहुंचाती हैं।वजह साफ है कि जीवन के लिए प्राणवायु आवश्यक हैं और जीवन में सांसों का क्रम सतत चलने वाली प्रक्रिया हैं।इसलिए जब हवा में जहर घुला हो तब आप इस जहर से बच नहीं सकते।डाक्टरों का कहना है कि सल्फर नाइट्रस के साथ-साथ लोहे के बारीक कणों से घुली हवा में जब आप सांस लेते हैं तब ये जहरीले कण फेफड़े में ही रह जाते हैं, जो आपके फेफड़ों को बहुत कमजोर कर देते हैं।यही कारण हैं कि शहरों में लोगों को अक्सर बलगम की शिकायत रहती हैं।
**शाहिद नकवी **
Read Comments